नई दिल्ली- पीएम नरेंद्र मोदी ने संसद के मौजूदा सेशन में चल रहे हंगामे पर पहली बार बयान दिया है। उन्होंने गुरुवार को कहा, ” इस बार संसद न चलने से गरीब का हक अटका पड़ा है। आज देश के सामने दो खतरे हैं। मनतंत्र और मनीतंत्र। मनतंत्र से देश नहीं चलता। मनीतंत्र से भी लोकतंत्र को बचाना होगा। ” मोदी यहां एक मीडिया समूह के प्रोग्राम में बोल रहे थे।
पार्लियामेंट चल नहीं रही है इसके कारण गरीब का हक अटका पड़ा है। जीएसटी जब होगा तो होगा, संसद तो चले। अगर हम संसद को ही नकार देंगे तो यह सवालिया निशान होगा मनतंत्र से देश और लोकतंत्र नहीं चलता। व्यवस्था से जनतंत्र को जोड़ना पड़ता है। सबको साथ लेकर चलना पड़ता है।
पहले चुनाव का मतलब लोकतंत्र का कॉन्ट्रैक्ट देना था। लोकतंत्र की सबसे पहली अनिवार्यता है जागरूकता। जागरूकता के लिए हर प्रकार के प्रयास निरंतर आवश्यक होते हैं। जितनी मात्रा में जागरूकता बढ़ती है उतनी मात्रा में समस्याओं के समाधान के रास्ते अधिक स्पष्ट और निखरते हैं, जनभागीदारी सहज बनती है और वहां जनभागीदारी का तत्व बढ़ता है।
जाने-अनजाने में पता नहीं कैसे, हमारे देश में लोकतंत्र का एक सीमित अर्थ रहा चुनाव। लोगों को लगने लगा कि हमें लोकतंत्र में सरकार को चुनना है। लोकतंत्र अगर वोट तक सीमित हो जाता है, सरकार के चयन तक सीमित हो जाता है तो वह लोकतंत्र ठीक नहीं रहता। लोकंतत्र सामर्थ्यवान तब होता है जब जनभागीदारी बढ़ती है।
ऐसा नहीं है कि इस देश में आजादी के लिए मरने वालों की कोई कमी रही। देश जबसे गुलाम रहा, तब से कोई दशक ऐसा नहीं रहा होगा जहां देश के लिए मर मिटने वाले न रहे हों। लेकिन गांधी जो बदलाव ले आए वो ये था कि आजादी के आंदोलन को जन आंदोलन बनाकर सामान्य लोगों को आजादी का सिपाही बना दिया।
आजादी के बाद अगर देश के विकास का मॉडल गांधी से प्रेरणा लेकर जनभागीदारी वाला बनाया गया होता तो आज जो बन गया है कि सबकुछ सरकार करेगी, ऐसा नहीं होता। स्थिति यह बन चुकी है कि सरकार सबकुछ करेगी, जबकि गांधी जी का मॉडल था कि सबकुछ जनता करेगी।