इलहाबाद – इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शुक्रवार को शादी के मकसद से धर्मांतरण को अवैध ठहराया है। उत्तर प्रदेश इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को एक एतिहासिक फैसले में शादी के मकसद से धर्मांतरण को अवैध ठहराया है और एसे विवाहों को कानूनी मान्यता देने से इन्कार कर दिया है। न्यायमूर्ति एस पी केसरवानी की एकल पीठ ने नूरजहां और अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह फैसला दिया है। न्यायालय ने कहा कि इस्लाम में विश्वास क आधार पर धर्मपरिवर्तन किया जा सकता है लेकिन मुस्लिम युवकों से शादी करने के लिए इस्लाम कबूूल करना अवैध है। न्यायालय ने इस्लाम में आस्था नहीं होने और केवल मुस्लिम युवकों से शादी करने लिए धर्म परिवर्तन करने वाली पांच हिन्दू लड़कियों के विवाह को कानूनी मान्यता देने संबंधी याचिकाएं खारिज कर दी।
न्यायालय ने यह फैसला मंगलवार को दिया था लेकिन न्यायालय की वेबसाइट पर इसे विलम्ब से अपलोड किया गया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की पीठ स्थापित करने के विरोध में यहां वकीलों की हडताल भी इन दिनों चल रही है। न्यायालय ने इस्लाम धर्म कबूल करके मुस्लिम युवकों से शादी करने वाली लड़कियों से जब उनके मजहब के बारे में पूछा तो उन्होंनेे अनभिज्ञता जाहिर की। ये लडकियां सिद्धार्थनगर, देवरिया, कानपुर, संभल और प्रतापगढ जिलों की हैं।
न्यायालय ने कहा कि कोेई भी स्वस्थ और बालिग पैगम्बर मोहम्मद में आस्था के आधार पर धर्म परिवर्तन कर सकता है। न्यायालय की एक सदस्यीय पीठ ने कहा कि जिसे अल्लाह और कुरआन में विश्वास हो, जिसका ह्रदय परिवर्तन हुआ हो और जिसकी धार्मिक आस्था में बदलाव हुआ हो वही व्यक्ति इस्लाम धर्म कबूल कर सकता है। एकल पीठ ने कहा कि बिना विश्वास, आस्था और वास्तविक बदलाव के धर्म परिवर्तन मान्य नहीं है। शादी के लिए धर्म परिवर्तन शून्य है। धर्म की प्रत्येक मान्यता और सिद्धांत को अपनाकर ही धर्मान्तरण किया जा सकता है। न्यायालय ने कहा कि कोई गैर मुस्लिम बिना ह्वदय परिवर्तन के और एक शादी के झंझट से बचने या दूसरी शादी करने के लिए यदि धर्म परिवर्तन का सहारा लेता है तो इसे सही मायने में धर्मान्तरण नहीं माना जा सकता।