लखनऊ : लखनऊ हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए, चुनाव आयोग को जमकर फटकार लगाई । हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि नोटा का प्रचार प्रसार उन्होंने क्यों नहीं किया, चुनाव आयोग को इसका जवाब ना दे पाने पर हाईकोर्ट ने फटकार लगाई और जवाब 24 घंटे के अंदर पेश करने के निर्देश दिए । ये जनहित याचिका लखनऊ के अरविंद शुक्ल ने लगाई ।
याचिकाकर्ता अरविंद शुक्ल ने कहा कि उन्होंने कोर्ट में नोटा को प्रभावी करने जैसे कई बेहद अहम मसलों को लेकर ये याचिका लगाई थी, इतना ही नहीं कोर्ट ने इस मामले में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, केंद्र सरकार और राज्य सरकार को भी जवाब देने के निर्देश दिए हैं । अब देखना है कि मंगलवार को चुनाव आयोग अपनी सफाई में क्या दलीलें पेश करता है ।
क्या है नोटा
नोटा इंग्लिश भाषा का शब्द है इसे नन ऑफ द एबव कहा जाता है नोटा यानि इनमें से कोई नहीं। भारत निर्वाचन आयोग ने दिसंबर 2013 के विधानसभा चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में इनमें से कोई नहीं अर्थात `नोटा`(नन ऑफ द एबव) बटन का विकल्प उपलब्ध कराने के निर्देश दिए है।
किसी पार्टी का कोई उम्मीदवार पसंद न हो तो आप क्या करते हैं। फिर भी वोट करते हैं या उसके ख़िलाफ नोटा का इस्तमाल करते हैं। आपकी ईवीम मशीन में NONE OF THE ABOVE, NOTA का गुलाबी बटन होता है। क्या आपने ग़लत उम्मीदवार देने के कारण किसी पार्टी के प्रति अपना विरोध जताया है। तीन साल से चुनावों में वोटिंग मशीन में नोटा का इस्तमाल हो रहा है। आम तौर पर चुनावों के दौरान मत देने के लिए तो प्रोत्साहित किया जाता है मगर नोटा का बटन दबाने के लिए कोई नहीं करता। लेकिन इसके बाद भी नोटा लोकप्रिय होता जा रहा है।
कायदे से हर चुनाव के पहले नोटा का प्रचार होना चाहिए कि अगर कोई दल सही उम्मीदवार न दे तो आप वोट न करें। नोटा दबाएं। आंकड़ों से नोटा की कामबायी की बड़ी तस्वीर तो नहीं दिखती मगर नोटा अपनी जगह बनाए हुए है।