प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी से उबरने के लिए देश की जनता से पचास दिनों की जो मोहलत मांगी थी उसकी समय सीमा भी अब समाप्त होने के करीब है। परंतु अभी तक दूर-दूर तक कोई भी ऐसे लक्षण दिखाई नहीं दे रहे जिनसे यह अंदाज़ा लगाया जा सके कि पचास दिन पूरे होने तक देश के आर्थिक हालात और नोटबंदी की वजह से दरपेश आने वाली समस्याओं से जनता को निजात मिल सकेगी। देश के इतिहास में अब तक किसी भी सरकार द्वारा लिए गए किसी भी फैसले से जनता को इतनी तकलीफ नहीं उठानी पड़ी। यहां तक कि युद्ध जैसे हालात में व 1971 में बड़ी संख्या में भारत में आए बंगलादेशी शरणार्थियों के चलते देश के सामने आई परेशानियों के समय भी देश को इतनी दिक्कत नहीं उठानी पड़ी। भ्रष्टाचार समाप्त करने,न$कली नोटों पर नियंत्रण पाने तथा आतंकवाद पर लगाम लगाने व काला धन की बरामदगी जैसे उद्देश्यों को लेकर की गई एक हज़ार व पांच सौ रुपये की नोटबंदी का सकारात्मक प्रभाव तो दूर तक होता दिखाई नहीं दे रहा। परंतु देश में इस $कदम के चलते उद्योग धंधों के ठप्प हो जाने, बेराज़गारी बढऩे,मज़दूरों की छटनी होने तथा बेरोज़गार अप्रवासी मज़दूरों के अपने-अपने घरों को वापस जाने के समाचार ज़रूर सुनाई दे रहे हैं।
नोटबंदी के चलते केवल देश की जनता ही कतारों में लगकर अपना कीमती समय बर्बाद नहीं कर रही है बल्कि पूरे देश में फैली इस भारी दुवर््यवस्था का खमियाजा बैंक कर्मचारियों से इससे जुड़ी पूरी मशीनरी को भुगतना पड़ रहा है। हालांकि रिज़र्व बैंक से लेकर दूसरे कई बैंकों के सैकड़ों कर्मचारियों को इस संबंध में बरती जा रही कई अनियमितताओं के लिए गिरफ्तार भी किया जा चुका है। परंतु ऐसी घटनाओं को मात्र अपवाद ही कहा जा सकता है। देश के अधिकांश बैंक कर्मी दिन-रात मेहनत कर भारी दबाव के बीच तथा सरकार द्वारा आए दिन प्राप्त होने वाले नए निर्देशों के साथ जनता का सामना कर रहे हैं। आम जनता टेलीविज़न पर प्रसारित होने वाले या अखबार में छपने वाले सरकार प्रायोजित समाचारों को सुनकर या पढक़र बैंकों में जाकर उन्हीं समाचारों के अनुसार अपनी मांगें रखती है। अर्थात यदि सरकार घोषणा करती है कि एक ग्राहक को 24 हज़ार रुपये दिए जाएंगे परंतु बैंक प्रशासन 24 हज़ार के बजाए चार हज़ार या कभी-कभी दो हज़ार रुपये तक अपने ग्राहकों को यह कहकर देता है कि हमारे पास बांटने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं है। हद तो यह है कि कई बैंकों ने पैसों के अभाव में यह नीति भी अख्तियार की कि जो पैसे जमाकर्ताओं द्वारा बैंक में जमा किए जाएंगे उन्हीं पैसों को ग्राहकों को बाद में दिया जाएगा। यानी सरकारी घोषणाओं से अलग बैंक स्वयं यह व्यवस्था करे कि उसे अपने ग्राहकों को पैसे किस प्रकार देने हैं।
देश में कई जगहों से यह खबरें भी आई हैं कि जनता व बैंक कर्मचारियों के बीच मारपीट हाथापाई व गाली गलौच की घटनाएं हुई हैं। कोई भी व्यापारी या अधिकारी बैंक अधिकारियों पर अपना गुस्सा इस प्रकार निकालता रहा गोया नोटबंदी का सारा दोष बैंक कर्मचारियों का ही हो या पैसों की कमी या कम पैसों के वितरण करने के लिए वे ही जि़म्मेदार हैं। गौरतलब है कि देश में बढ़ती जनसंख्या और बैंकों की ओर लोगों के बढ़ते रुझान के चलते पहले ही बैंकों में लंबी कतारें लगी रहती थीं। परंतु नोटबंदी ने तो बैंकों की इन कतारों को नियमित रूप से लगने वाली ऐसी लंबी व अनिश्चितता भरी कतारों में तब्दील कर दिया गोया देश की जनता के पास कतारों में खड़े होने के सिवा दूसरा कोई काम ही न हो? और इसी तनावपूर्ण व अनिश्चिचतता भरे माहौल में 8 नवंबर से अब तक लगभग सौ लोग अपनी जान तक दे चुके हैं। कई लोगों द्वारा नोटबंदी की वजह से पेश आने वाली पैसों की कमी के चलते आत्महत्याएं किए जाने जैसे समाचार प्राप्त हुए हैं। अभी पिछले दिनों रायबरेली जि़ले की 25 वर्षीय अर्चना यादव जोकि एक नर्स के रूप में अपनी सेवाएं दे रही थी उसने एक सुसाईड नोट लिखकर अपने गले में फांसी लगा ली तथा मौत की आगोश में चली गई। दुनिया के कई देशों से भी ऐसे समाचार मिल रहे हैं कि वहां रहने वाले अप्रवासी भारतीयों के पास एक हज़ार व पांच सौ की नोट के रूप में काफी रकम मौजूद है। परंतु विदेशों में किसी भी भारतीय बैंक में वह नोट बदलने की कोई व्यवस्था नहीं है। अचानक घोषित की गई इस नोटबंदी का खमियाजा उन अप्रवासी भारतीयों को भी भुगतना पड़ रहा है। यह सरकार की जि़म्मेदारी थी कि विश्व में जहां भी भारतीय बैंक उपलब्ध हों वहां भी निर्धारित समय सीमा के भीतर बड़ी नोट बदली जा सके या जमा की जा सके।
नोटबंदी के परिणामस्वरूप ऐसी अनेक घटनाएं पूरे देश व दुनिया में हो रही हैं। परंतु अपनी अकड़ और जि़द तथा अहंकारी फैसले से जूझती सरकार तथा इसके अंध समर्थक पूरे देश में केवल यही ढिंढोरा पीटने में मशगूल हैं कि ‘केवल विपक्षियों को ही नोटबंदी का दर्द सता रहा है। केवल विपक्षी ही इस फैसले से प्रभावित व आहत हुए हैं।’ जबकि इत्तेफाक कुछ ऐसा कि अब तक पूरे देश में जहां-जहां गलत तरीके से भारी-भरकम रकम पकड़ी जा रही है उनमें अधिकांशत: लोग भारतीय जनता पार्टी से जुड़े नज़र आ रहे हैं। नोटबंदी की ही घटना ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बहराईच में होने वाली रैली को पूरी तरह प्रभावित किया। यहां तक कि उनके समर्थन में भारी भीड़ नहीं जुट सकी उल्टे पूरे शहर में प्रधानमंत्री का विरोध प्रदर्शन करने वालों की भीड़ डटी रही। परिणामस्वरूप प्रधानमंत्री ने हेलीकॉप्टर धुंध में हेलीपेड पर न उतर पाने का बहाना लेकर रैली में शिरकत नहीं की। और मोबाईल फोन से सभा में मौजूद कुछ लोगों को संबोधित किया। उधर नोटबंदी को लेकर संसद में भी भारी गतिरोध की स्थिति बनी हुई है। विपक्षी दल प्रधानमंत्री से इस विषय पर वक्तव्य देने की मांग करते हैं तो प्रधानमंत्री $फरमाते हैं कि विपक्ष उन्हें बोलने नहीं देता इसलिए वे जनता के बीच जाकर बोलते हैं।
सवाल यह है कि अनिश्चितता,उहापोह तथा दुवर््यवस्था के इस दौर से देश को आखिर कब निजात मिलेगी? क्या नोटबंदी का फैसला प्रधानमंत्री द्वारा जल्दबाज़ी में उठाया गया कदम साबित नहीं हो रहा है? देश में आर्थिक फायदे के लिए बताकर उठाए गए इस कदम से देश को कितना नुकसान उठाना पड़ रहा है सरकार इस बारे में भी कुछ विचार कर रही है अथवा नहीं? देश की जनता ने 2014 में भारी बहुमत के साथ नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक क्या यही सोच कर पहुंचाया था कि दो करोड़ बेरोज़गार युवकों को प्रत्येक वर्ष रोज़गार मुहैया कराने का वादा करने वाला प्रधानमंत्री अपने नोटबंदी जैसे फैसले से करोड़ों लोगों को बेरोज़गार भी कर देगा? देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने की दुहाई देने वाली यह सरकार अपने इस फैसले से देश के उद्योगधंधों,व्यापार तथा इससे जुड़ी अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान पहुंचा रही है? परंतु चाहे देश की जनता कतारों में खड़ी रहे, बेवजह लाईनों में लगे लोग मरते रहें या आत्महत्याएं करते रहें परंतु खबरों के मुताबिक भाजपा से जुड़े जनार्दन रेड्डी व नितिन गडकरी जैसे नेता अपने बच्चों की शादियों में सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च कर रहे हैं। इनसे न कोई हिसाब मांगने वाला है न ही इनके लिए कोई कायदा और कानून निर्धारित है। देखना होगा कि नोटबंदी के दुष्परिणाम देश की अर्थव्यवस्था को किस मोड़ तक ले जाते हें?
लेखक:- @तनवीर जाफरी
तनवीर जाफरी
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