नई दिल्ली – सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मारकंडेय काटजू ने गोहत्या पर प्रतिबंध लगाए जाने का विरोध किया है। उन्होंने अपने ब्लॉग में प्रतिबंध के विरोध में कई दलीलें दी हैं।
काटजू ने लिखा कि केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इंदौर में जैन संतों की एक सभा में कहा कि वह गोहत्या पर राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंध लगाए जाने का समर्थन करते हैं और इस मुद्दे पर राष्ट्रीय सहमति बनाने का प्रयास करेंगे।
काटजू ने कहा कि भारत में कई लोग गोहत्या के प्रतिबंध का समर्थन कर सकते हैं। हालांकि मैं उस सहमति का हिस्सा नहीं हूं। मैं गोहत्या पर प्रतिबंध लगाए जाने के बिलकुल खिलाफ हूं। बयान के बाद काटजू ने गोहत्या के प्रतिबंध के विरोध में पांच तर्क दिए।
काटजू का पहला तर्क है कि दुनिया के अधिकांश हिस्से में गोमांस खाया जाता है। क्या वे लोग दुष्ट हैं? काटजू का कहना है कि गोमांस खाने में कुछ भी गलत नहीं है।
उनका दूसरा तर्क है कि गोमांस प्रोटीन का सस्ता स्रोत है। भारत में बहुत से लोग मसलन, नागालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा और केरल के कुछ हिस्सों में और जहां यहां प्रतिबंधित नहीं है, वहां गोमांस खाया जाता है।
काटजू ने अपनी अगली दलील में कहा है कि उन्होंने खुद भी कभी-कभी गोमांस खाया है। हालांकि पत्नी और संबंधियों के सम्मान में हमेशा नहीं खा पाते, क्योंकि वे संभी कट्टर हिंदू हैं। काटजू ने कहा कि अगर अवसर आया तो वे फिर से गोमांस खाएंगे।
उन्होंने कहा, ‘मैं किसी को जबरिया गोमांस खाने को नहीं कहता तो फिर मुझे क्यों रोका जा रहा है।’ एक स्वंतत्र और लोकतांत्रिक मुल्क में सभी खाने की आजादी होनी चाहिए।
काटजू ने कहा कि ऐसे प्रतिबंधों से दुनिया के सामने हमारा देश हंसी का पात्र बन जाता है। उन्होंने अपनी अगली दलील में कहा है कि ऐसे प्रतिबंधों से भारत की छवि पिछड़े हुए सामंती मुल्क की बनती है।
काटजू का कहना है कि जो गोहत्या पर प्रतिबंध लगाने की बात कर रहे हैं, उन्हें उन हजारों गायों की भी चिंता होती है, जिन्हें चारा भी नहीं मिल पाता। जब गायें बूढ़ी हो जाती है, या किसी कारण से दूध नहीं दे पाती तो उन्हें सड़क पर छोड़ दिया जाता है, ताकि वे अपना पेट खुद भरें।
काटजू ने कहा, ‘मैंने सड़क पर गायों को गंदगी और कचड़ा खाते देखा है। ऐसी दुबली गायें देखीं हैं, जिनकी हड्डियां दिखाई देती हैं। क्या गायों को ऐसे मरने के लिए छोड़ देना गोहत्या नहीं है।’
काटजू ने कहा है कि गोहत्या पर प्रतिबंध या और भी किसी तरह का प्रतिबंध केवल राजनीतिक मकसद से लगाया जाता है, उसका और कोई कारण नहीं होता। महाराष्ट्र में पहले से ही महाराष्ट्र पशु संरक्षण कानून, 1976 लागू है, जिसके तहत गाय, बछिया और बछड़े की हत्या पर प्रतिबंध है। बैल, सांड़ और भैंसों का मांस के लिए मारने की इजाजत है।
काटजू का कहना है कि दो मार्च को लागू हुए काननू के बाद गोमांस की की बिक्री और निर्यात पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है, जिससे बहुत सी नौकरियां खत्म हो गई हैं।
काटजू ने कहा कि कुछ लोग कह रहे हैं कि गाय को मारना इंसान को मारने जैसा है, ये तर्क बेवकूफी भरा है। किसी गाया की तुलना इंसान से कैसे की जा सकती है? उन्होंने कहा कि प्रतिबंध के पीछे प्रतिक्रियावादी दक्षिणपंथियों का हाथ है, जो देश हित में कतई नहीं है।