अहमदाबाद- गुजरात हाईकोर्ट में लंबित सबसे पुरानी याचिका का निपटारा करते हुए एक शख्स को 50 रुपये की रिश्वत लेने के मामले में बरी कर दिया है। यह मामला वर्ष 1988 का है। वहीं इस मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने आरोपी मनसुखलाल देवराज को दोषी पाते हुए छह महीने की सजा और 500 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी।
देवराज के साथ निचली अदालत ने देवराज के साथ समाज कल्याण विभाग के वरिष्ठ अधिकारी को भी इस मामले में दोषी पाया था, लेकिन भानजीभाई की इस मामले की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी और देवराज की अपील पिछले 25 सालों से अदालत में लंबित थी।
इतना ही नहीं हाईकोर्ट के पास सबसे पुरानी अपील का कोई रिकॉर्ड भी मौजूद नहीं था। बस सरकारी वकील के पास एक पेपर बुक मौजूद थी, जिसके आधार पर हाईेकोर्ट ने पूरे मामले की सुनवाई पूरी की।
क्या था मामला
समाज कल्याण विभाग में देवराज का काम था कि आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को कम दरों पर लोन मुहैया करना। ऐसे ही एक परिवार को लोन दिलवाने के नाम पर देवराज ने उस परिवार से 50 रुपये रिश्वत की मांग की। उस परिवार ने इसकी शिकायत भ्रष्टाचार निरोधक विभाग से की और देवराज को 50 रुपये की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार किया।
इस आधार पर हुआ बरी
निचली अदालत ने साल 1991 में देवराज को दोषी करार देते हुए सजा सुनाई थी और इसके बाद से उसकी अपील हाईकोर्ट में लंबित थी। हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान यह साबित नहीं हो सका कि देवराज रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार हुआ था। इतना ही नहीं यह भी साबित नहीं हो सका की देवराज ने रिश्वत की मांग भी की थी।
जस्टिस एस जी शाह ने देवराज को बरी करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष पूरे मामले को साबित करने में विफल रहा है। अदालत ने कहा कि अभियोजनन पक्ष रिश्वत की मांग करना, पकड़ते समय रिश्वत मांगना और रिश्वत लेने के साबित नहीं कर सका। इस आधार पर अदालत ने देवराज को सभी आरोपों से बरी कर दिया। [एजेंसी]