अयोध्या- अयोध्या भूमि विवाद के मुख्य पैरोकार हाशिम अंसारी का निधन हो गया है। बुधवार सुबह करीब 5.30 बजे उन्होंने अयोध्या स्थित अपने घर पर अंतिम सांस ली।
मालूम हो, अंसारी बीते दिनों से बीमार चल रहे थे। उन्हें कुछ समय के लिए लखनऊ के अस्पताल में भी भर्ती कराया गया था। 94 साल के हाशिम अंसारी पिछले साठ सालों से बाबरी मस्जिद के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे। वे सन् 1949 से बाबरी मस्जिद के लिए पैरवी कर रहे थे।
अंसारी पहले ही कह चुके थे कि वो फैसले का भी इंतजार कर रहे हैं और मौत का भी, लेकिन चाहते हैं कि मौत से पहले बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि का फैसला देख लें।
अंसारी का परिवार कई पीढ़ियों से अयोध्या में रह रहा है। हाशिम अंसारी साल 1921 में पैदा हुए लेकिन जब वे सिर्फ ग्यारह साल के थे कि सन् 1932 में उनके पिता की मृत्यु हो गई।
उन्होंने महज दूसरी कक्षा तक पढ़ाई की और फिर सिलाई यानी दर्जी का कम करने लगे। बाद में उनकी शादी पास ही के जिले फैजाबाद में हुई। अंसारी के दो बच्चे हुए, एक बेटा और एक बेटी। अंसारी के परिवार की आर्थिक हालत ठीक नहीं रही।
अंसारी का कहना था कि 1934 का बलवा भी उन्हें याद था, जब हिंदू वैरागी संन्यासियों ने बाबरी मस्जिद पर हमला बोला था। उनके मुताबिक ब्रिटिश हुकूमत ने सामूहिक जुर्माना लगाकर मस्जिद की मरम्मत कराई थी और जो लोग मारे गए, उनके परिवारों को मुआवजा दिया था।
1949 में जब विवादित मस्जिद के अंदर मूर्तियां रखी गईं, उस समय प्रशासन ने शांति व्यवस्था के लिए जिन लोगों को गिरफ्तार किया, उनमे अंसारी भी शामिल थे।
उनका कहना था कि क्योंकि उनका सभी के साथ सामाजिक मेलजोल था इसलिए लोगों ने उनसे मुकदमा करने को कहा और इस तरह वो बाबरी मस्जिद के पैरोकार बन गए। बाद में 1961 में जब सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मुकदमा किया तो उसमें भी अंसारी एक मुद्दई बने।
पुलिस प्रशासन की सूची में नाम होने की वजह से 1975 की इमरजेंसी में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें आठ महीने तक बरेली सेंट्रल जेल में रखा गया।
6 दिसंबर, 1992 के बलवे में बाहर से आए दंगाइयों ने उनका घर जला दिया, लेकिन अयोध्या के हिंदुओं ने उन्हें और उनके परिवार को दंगाईयों की भीड़ से बचाया। इस घटना के बाद हामिद अंसारी को सरकार की तरफ से जो कुछ मुआवजा मिला, उससे उन्होंने अपने छोटे से घर को दोबारा बनवाया और एक पुरानी अम्बेसडर कार खरीदी।