नई दिल्ली: राजनीति के अपराधिकरण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अपना फैसला सुना दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि वक्त आ गया है जब संसद इस मामले को लेकर कानून बनाए। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि हर प्रत्याशी खुद पर दर्ज लंबित अपराधों की जानकारी पार्टी को दे और पार्टी यह जानकारी अपनी वेबसाइट पर डाले।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए राजनीति के अपराधिकरण को गंभीर मुद्दा माना है। दागियों के चुनाव लड़ने पर रोक यानी जिसके खिलाफ पांच साल से अधिक की सजा के प्रावधान वाले अपराध में अदालत से आरोप तय हो जाएं उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लंबित हैं। इनमें पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह और भाजपा नेता अश्वनी कुमार उपाध्याय की जनहित याचिका शामिल हैं।
इस मामले में प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, आरएफ नरीमन, एएम खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदू मल्होत्रा की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने बहस सुनकर 28 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रखा था। याचिकाकर्ताओं की दलील है कि राजनीति का अपराधीकरण रोकने के लिए दागियों के चुनाव लड़ने पर रोक लगनी चाहिए। पांच साल से अधिक की सजा के अपराध में अदालत से आरोप तय होने का मतलब होता है कि अदालत ने उस व्यक्ति को प्रथमदृष्टया आरोपित माना है।
चुनाव आयोग ने भी इस याचिका का कोर्ट में समर्थन किया था। हालांकि, केंद्र सरकार ने याचिका का पुरजोर विरोध करते हुए दलील दी थी कि कानून में आरोप तय होने के बाद चुनाव लड़ने पर रोक नहीं है और न ही इसे अयोग्यता में गिना गया है, ऐसे में कोर्ट अपनी तरफ से कानून में अयोग्यता की शर्त नहीं जोड़ सकता।दूसरा मामला सांसदों और विधायकों के वकालत करने पर रोक लगाने की मांग का है। भाजपा नेता अश्वनी कुमार उपाध्याय ने यह याचिका दाखिल की है। इस पर प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ ने नौ जुलाई को बहस सुनकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
याचिका में उपाध्याय का कहना है कि सांसद विधायक लोकसेवक होते हैं, इन्हें सरकारी कोष से वेतन, भत्ता, गाड़ी, बंगला और पेंशन लोक कार्य करने के लिए मिलती है। इन्हें यह सब निजी कार्य या वकालत के लिए नहीं मिलता। इनका काम पूर्णकालिक माना जाएगा क्योंकि सिर्फ पूर्णकालिक कार्य के लिए ही पेंशन का प्रावधान है अंशकालिक कार्य के लिए पेंशन नहीं मिलती। इसके अलावा याचिकाकर्ता की यह भी दलील थी कि सांसदों के पास जजों को पद से हटाने के लिए महाभियोग लाने की शक्ति होती है ऐसे में इनका वकालत करना हितों का टकराव है। केंद्र सरकार ने इस याचिका का भी कोर्ट में विरोध किया है।