संविधान के बहाने संसद की शुरुआत अच्छी हो गई लेकिन सर्वदलीय बैठक के बाद नेताओं के जो बयान आए, उनसे लगता है कि संसद का यह सत्र भी मानसून-सत्र की तरह लगभग निरर्थक सिद्ध हो जाएगा। सरकार अड़ी हुई है कि पहले सामान्य बिक्री-कर बिल पास हो। बाद में अन्य मुद्दों पर सोचा जाएगा। बिक्री-कर विधेयक ही क्यों, अन्य तीन दर्जन विधेयक भी पारित होने चाहिए।
संसद का मुख्य काम कानून बनाना है। यदि वह अपना मुख्य काम न करे और अन्य कामों में समय गंवाए तो वह अपना महत्व खुद घटाएगी। यदि सरकार में बैठे लोग चालाकी करना चाहें तो वे इस गतिरोध के बावजूद कानून बनाए बिना ही अपना हुक्म लागू करने की कोशिश कर सकते हैं लेकिन यह संसद का अपमान होगा और इसका अंत सरकारी तानाशाही और गैर-जवाबदारी में होगा। इसीलिए जरुरी है कि पक्ष और विपक्ष दोनों ही क्षुद्र राजनीति से ऊपर उठें और संसद को अपना काम करने दें।
इसका अर्थ यह नहीं कि संसद को विधि मंत्रालय का एक विभाग-मात्र बनाकर रख दिया जाए, जैसा कि सोवियत और चीनी संसदों में होता रहा है। इन साम्यवादी देशों में संसद तो सिर्फ रबर का ठप्पा बनकर रह गई थीं। कोई भी लोकतांत्रिक संसद देश की राजनीति का दर्पण भी होती है। इसीलिए विपक्षी दलों ने यदि यह मांग की है कि असहनशीलता पर भी बहस हो तो इसमें क्या बुराई है? जरुर होनी चाहिए।
असहनशीलता कौन दिखा रहा है, कौन कर रहा है, उसकी क्या-क्या प्रतिक्रियाएं हो रही हैं, वह वास्तविक है या नकली है, इन सब मुद्दों पर जमकर बहस क्यों नहीं होती? मान लिया कि असहनशीलता या मज़हबी उन्माद का जो माहौल बना है, वह नकली है, निराधार है, जान-बूझकर खड़ा किया गया है तो भी हम इससे तो इंकार नहीं कर सकते कि देश के करोड़ों लोग ऐसे हैं जो चाहे झूठ-मूठ में ही डर रहे हैं लेकिन वे डर रहे हैं।
आमिर खान जैसे लोकप्रिय और शक्तिशाली अभिनेता की पत्नी डर जाए क्या यह चिंता का विषय नहीं है? आमिर जैसे देशभक्त व्यक्ति पर प्रहार करने की बजाय मेरे राष्ट्रवादी मित्रों को चाहिए कि वे आमिर की पत्नी और एक मासूस बच्चे की मां किरण राव के भय का निराकरण करें। ऐसे में सरकार का कर्तव्य क्या है? यदि वह पूरे देश की सरकार है तो यह देखना उसका काम है कि देश का हर नागरिक निडर रहे। भयमुक्त रहे। यदि भय निराधार है तो उसका निवारण करना अधिक आसान है। यह काम उसे तुरंत करना चाहिए। संसद सर्वसम्मति से अगर देश को भयमुक्त रखने का प्रस्ताव पारित करे तो यह अत्यंत सामयिक और प्रासंगिक कदम होगा। इससे सरकार की इज्जत बढ़ेगी ही, घटेगी नहीं।
लेखक:- वेद प्रताप वैदिक