सन्यासी,योग गुरू तथा बाद में काला धन विदेशों से वापस लाने की मुहिम की झंडाबरदारी के रास्ते व्यवसाय का सफर तय करने वाले बाबा रामदेव अपने विभिन्न उत्पाद के माध्यम से जनता को यह बताने की कोशिश करते रहे हैं कि किस प्रकार दशकों से विभिन्न कंपनियां उपभोक्ताओं को अपने झूठे विज्ञापन के भ्रमजाल में फंसाकर अपने विभिन्न उत्पाद बेचती आ रही हैं। इसमें कोई शक नहीं कि देश के अधिकांश घरों में अपनी पैठ बना चुका टेलीविज़न आम लोगों को विज्ञापनों के माध्यम से नाना प्रकार के उत्पादों से परिचित करवाता है तथा इसे खरीदने के लिए प्रेरित भी करता है। यहां यह बताना भी ज़रूरी है कि विज्ञापन पर आने वाला खर्च लगभग उतना या उससे भी अधिक होता है जितनी कि किसी वस्तु के उत्पादन पर आने वाली लागत। ज़ाहिर है कोई भी कंपनी अपने उत्पाद के विज्ञापन का खर्च भी उत्पाद की $कीमत में जोडक़र उपभोक्ताओं से ही वसूलती है। सीधे शब्दों में यदि यह कहा जाए कि टीवी पर प्रसारित किए जाने वाले किसी भी उत्पाद का विज्ञापन एक रुपये की वस्तु को दो रुपये की या इससे भी अधिक मंहगी बना देता है।
सवाल यह है कि विज्ञापन में किसी भी उत्पाद के लिए किए जा रहे दावे या उसकी उपयोगिता के विषय में किए जा रहे बखान कितने सही हैं और कितने गलत इसका पैमाना कौन निर्धारित कर सकता है? वास्तव में यदि ग्राहक जागरूक तथा सतर्क है तो वह किसी भी उत्पाद के प्रयोग के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंच सकता है कि अमुक उत्पाद या सामग्री अपने उस दावे पर खरी उतर रही है अथवा नहीं जोकि विज्ञापनों में उसके द्वारा किए जा रहे हैं? परंतु यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि आम जनता इतनी चुस्त-चौकस तथा सामथ्र्यवान नहीं होती जो किसी उत्पाद का प्रयोग करने के बाद $फौरन किसी निष्कर्ष पर पहुंच सके। नतीजनतन उस उत्पाद के विज्ञापन में बताए जा रहे फायदे तथा उसके गुणगान के भ्रमजाल में फंसकर या कई बार किसी स्टार विज्ञापनकर्ता के व्यक्तित्व के प्रभाव में आकर जनता बार-बार उसी उत्पाद को खरीदती रहती है। यदि वह उत्पाद दैनिक उपयोगी उत्पादों में से है तो धीरे-धीरे उसका इस्तेमाल उसकी आदत बन जाती है। और आखिरकार उपभोक्ता बिना उसके हानि-लाभ के विषय में सोचे हुए बराबर उसी उत्पाद का इस्तेमाल करता रहता है।
केंद्र व राज्य स्तर पर ऐसे कई सरकारी विभाग हमारे देश में कार्यरत हैं जो तमाम उत्पादों की जांच-पड़ताल करने का काम करते हैं। ऐसे विभाग तकनीकी दृष्टि से यह पता लगा लेते हैं कि इस उत्पाद के विषय में जो दावे किए जा रहे हें या जनता में विज्ञापन के माध्यम से जो भ्रम फैलाया जा रहा है उसमें आखिर कितनी सच्चाई है? इन विभागों में यह क्षमता भी है कि वे किसी वस्तु की जांच-पड़ताल के बाद यह पता लगा सकें कि कोैन सी वस्तु का प्रयोग जनता के लिए हानिकारक है और किस का नहीं। अभी कुछ ही समय पहले की बात है जब देश में टीवी के माध्यम से घर-घर तक पहुंच चुका मैगी नूडल्स विवादों में घिर गया। देश में कई अलग-अलग सरकारी प्रयोगशालाओं में मैगी नूडल्स के सैंपल जांचे गए। उनमें यह पाया गया कि उसमें लेड सहित कुछ ऐसे तत्व शामिल हैं जो उपभोक्ता के स्वास्थय पर विपरीत प्रभाव डाल सकते हैं। सरकार ने न केवल मैगी को प्रतिबंधित कर दिया बल्कि स्वयं कंपनी ने भी पूरे देश से अपना यह उत्पाद वापस ले लिया। हालांकि विज्ञापनों के माध्यम से उस समय भी नेस्ले के प्रवक्ताओं की सीनाज़ोरी बदस्तूर जारी रही कि उनके उत्पाद में कोई भी ऐसा हानिकारक तत्व नहीं है जो स्वास्थय पर बुरा असर डालने वाला हो। कुछ ही दिनों बाद नेस्ले ने अपना यही उत्पाद पुन: लेड रहित कर बाज़ार में उतार दिया। क्या ऐसे में जनता को यह जानने का ह$क नहीं है कि वास्तव में उपभोक्ताओं को नुकसान पहुंचाने की नेस्ले कंपनी दोषी थी अथवा नहीं? और यदि दोषी थी तो उस कंपनी को उपभोक्ताओं की सेहत से खिलवाड़ करने की क्या सज़ा मिली? और यदि सज़ा मिलने के बजाए वही कंपनी पुन: नया ‘केचुल’धारण कर पुन:बाज़ार में अपने पांव पसारती है तो क्या इससे यह साबित नहीं होता कि सरकार की नज़रों में किसी व्यवसायिक कंपनी की अहमियत उपभोक्ताओं की सेहत से कहीं ज़्यादा है?
अब ज़रा बाबा रामदेव के कुछ उत्पादों पर एक नज़र डालते हैं। इस समय देश के अधिकांश टीवी चैनल्स पर सबसे अधिक व सबसे $खर्चीले विज्ञापन बाबा रामदेव के पतंजलि उद्योग द्वारा प्रसारित कराए जा रहे हैं। यदि इन विज्ञापनों पर हम गौर करें तो इनमें जो खास बातें दिखाई देती हैं उनमें सबसे प्रमुख तो यह कि बाबा रामदेव एमडीएच के महाशय जी की ही तरह अपने अधिकांश उत्पाद का विज्ञापन स्वयं करते हैं। ज़ाहिर है यह इनका अधिकार है। परंतु ऐसा कर वह यह साबित करना चाहते हैं कि देश में पतंजलि का उत्पाद उन्हीं की ‘फेस वैल्यू’ पर बिक रहा है। दूसरी बात वह यह प्रदर्शित करना चाहते हैं कि उनका समस्त उत्पाद पूर्णरूप से स्वदेशी है तथा देश के लोगों को स्वदेशी वस्तुएं खरीदकर राष्ट्रनिर्माण में अपना सहयोग देना चाहिए। इसी के साथ-साथ वे बड़ी ही सफाई से अपनी प्रतिस्पर्धात्मक कंपनियों को झूठा बताकर उन्हें नीचा दिखाते रहते हैं जबकि अपने उत्पाद की प्रस्तुति इस प्रकार करते हैं गोया उनके सभी उत्पाद शत-प्रतिशत शुद्ध तथा शर्तिया तौर पर स्वास्थयवर्धक हों। उनके इस प्रकार के कई विज्ञापन विवादों में भी आ चुके हें। अभी पिछले दिनों पतंजलि उद्योग के 6 उत्पाद एक सरकारी परीक्षण में फ़ेल पाए गए। इनमें बाज़ार में सबसे अधिक प्रचलित पतंजलि का बेसन,कच्ची घानी का सरसों का तेल,पाईनएपल जैम, नमक,काली मिर्च,लीची का शहद आदि उत्पाद उत्तराखंड खाद्य विभाग द्वारा $फेल घोषित कर दिए गए हैं। 16 अगस्त 2016 को लिए गए उक्त उत्पादों के नमूने उत्तराखंड की रुद्रपुर स्थित सरकारी प्रयोगशाला में परीक्षण के बाद $फेल कर दिए गए। और यह पाया गया कि इन उत्पादों को लेकर जो दावे किए जा रहे हैं वह सही नहीं हैं। दूसरी ओर पतंजलि के इन्हीं में कई उत्पाद ऐसे हैं जिनपर शुद्धता की शत-प्रतिशत गारंटी होने की बात भी कही गई है। इन्हीं में कुछ उत्पाद ऐसे हैं जो पतंजलि $खरीदती तो कहीं और से है और उस पर लेवल पतंजलि का लगा होता है। गोया ऐसे उत्पादों की पतंजलि केवल मार्किटिंग करता है उत्पादन नहीं फिर भी पतंजलि अपना नाम उत्पादनकर्ता कंपनी के रूप देती है।
इसी प्रकार के एक दूसरे मामले में पतंजलि पर हरिद्वार की एक अदालत द्वारा ग्यारह लाख रुपये का जुर्माना किया गया है। यह जुर्माना भी भ्रमित करने वाले विज्ञापन तथा ऐसे उत्पादों को अपना उत्पाद बनाने के लिए किया गया जो दूसरी कंपनियों द्वारा बनाए जाते थे जबकि इन की ब्रांडिंग पतंजलि के नाम से की जाती थी। यहां भी यह एक विचारणीय विषय है कि सन्यासी का वेश धारण कर कभी योग तो कभी काला धन वापस लाओ जैसे नारों के साथ जनता में अपनी लोकप्रियता स्थापित करने के बाद अपने व्यवसाय को पांच सौ करोड़ से दस हज़ार करोड़ के लक्ष्य तक पहुंचाने वाले बाबा रामदेव के लोकप्रिय व्यक्तित्व को क्या यह बात शोभा देती है कि वे महज़ अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए गलत व भ्रम फैलाने वाले विज्ञापन जारी कर अपने अनुयाईयों व उपभोक्ताओं के साथ धोखा करें? परंतु पतंजलि पर लगने वाले सभी आरोपों एवं उनके विरुद्ध होने वाले ग्यारह लाख रुपये के जुर्माने के बावजूद उनके विज्ञापन का सिलसिला तथा उनके व्यवसाय का विस्तार एवं ग्राहकों का इस विज्ञापन के भ्रमजाल में फंसना निरंतर जारी है। न जाने उपभोक्ताओं के स्वास्थय व उनके अधिकारों की सुध कौन और कब लेगा? तो मासूम जनता विज्ञापनों के भ्रमजाल का शिकार होने के लिए मजबूर है।
लेखक:- @तनवीर जाफरी
तनवीर जाफरी
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अम्बाला शहर। हरियाणा