फिल्म से पहले सिनेमाहॉल में राष्ट्रगान बजाने की अनिवार्यता को सुप्रीम कोर्ट ने खत्म कर दिया है। इससे पहले, कोर्ट ने पिछले आदेश में ऐसा करना अनिवार्य बना दिया था। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को अपने आदेश में संशोधन किया। पिछले महीने कोर्ट ने अपने ही आदेश पर सवाल उठाया था।
कोर्ट ने पूछा था कि क्या बाध्यता लगाकर लोगों पर देशभक्ति थोपी जा सकती है? कोर्ट ने मंशा जाहिर की थी कि अगर सरकार पहल करे तो वह अपने आदेश में बदलाव कर सकता है। बता दें कि 30 नवंबर, 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी सिनेमाघरों में फिल्म का प्रदर्शन शुरू होने से पहले अनिवार्य रूप से राष्ट्रगान बजाने की मांग वाली श्याम नारायण चोकसी की जनहित याचिका पर यह निर्देश दिए थे।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सोमवार (08 जनवरी) को हलफनामा देकर कहा था कि सिनेमाघरों में राष्ट्रगान की अनिवार्यता को फिलहाल स्थगित कर दिया जाय और नवंबर 2016 से पहले की स्थिति बरकरार रखी जाय। सरकार ने कोर्ट को बताया था कि एक अंतर मंत्रालयी कमेटी बनाई गई है, जो छह महीने में अपना सुझाव देगी। कमेटी से सुझाव मिलने के बाद सरकार तय करेगी कि राष्ट्रगान की अनिवार्यता पर सर्कुलर या नोटिफिकेशन जारी किया जाए या नहीं।
दरअसल, 23 अक्टूबर, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह तय करने को कहा था कि सिनेमाघरों या अन्य स्थानों पर राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य हो या नहीं, इस पर सरकार नियामक तय करे और इस संबंध में सर्कुलर भी जारी करे। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा था कि सर्कुलर जारी करते वक्त इस बात का भी ख्याल रखा जाय कि सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश प्रभावित ना हों।
सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार को यह भी सुनिश्चित करने को कहा था कि सिनेमाघर में लोग मनोरंजन के लिए जाते हैं, ऐसे में देशभक्ति का क्या पैमाना हो, इसके लिए कोई रेखा तय होनी चाहिए? सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि इस तरह के नोटिफिकेशन या नियम बनाना संसद का काम है, इसे कोर्ट पर क्यों थोपा जा रहा है?