नई दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नर्मदा नदी पर बनने वाली महत्वाकांक्षी परियोजना सरदार सरोवर नर्मदा बांध का आज लोकार्पण करते हुए पिछले सात दशकों में इस परियोजना में आई तमाम बाधाओं का उल्लेख किया और उम्मीद जताई कि यह परियोजना नए भारत के निर्माण में सवा सौ करोड़ भारत वासियों के लिए प्रेरणा का काम करेगी। मोदी ने इस बांध परियोजना के लोकार्पण के बाद यहां एक रैली को संबोधित करते हुए कहा कि विश्व बैंक सहित कई पक्षों ने सरदार सरोवर नर्मदा बांध परियोजना के मार्ग में बाधाएं उत्पन्न की। उन्होंने कहा कि उनके पास हर उस आदमी का कच्चा चिट्ठा है, जिसके कारण इस बांध परियोजना में विलंब हुआ। उन्होंने कहा कि एक समय ऐसा भी आया जब विश्व बैंक ने इस परियोजना के लिए ऋण देने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि इस परियोजना के लिए वह दो लोगों के आभारी हैं- सरदार वल्लभ भाई पटेल और बाबा साहेब अंबेडकर। उन्होंने कहा “भारत के लौह पुरुष की आत्मा आज जहां कहीं भी होगी वह हम पर ढेर सारे आशीर्वाद बरसा रही होगी।” उन्होंने कहा कि सरदार पटेल ने एक दिव्य दृष्टि की तरह इस गुजरात क्षेत्र में सिंचाई और जल संकट को देखते हुए नर्मदा पर बांध की परिकल्पना की थी।
मोदी ने कहा कि बाबा साहेब अंबेडकर ने मंत्री परिषद में रहते हुए देश के विकास के लिए तमाम योजनाओं की परिकल्पना की थी। उन्होंने कहा कि अगर ये दोनों महापुरुष अधिक समय तक जीवित रहते तो देश को उनकी प्रतिभा का और भी लाभ मिलता। नर्मदा बांध का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि यह बांध आधुनिक इंजीनियरिंग विशेषज्ञों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण एक विषय होगा, साथ ही यह देश की ताकत का प्रतीक भी बनेगा। उन्होंने कहा कि पर्यावरणविदों तथा कुछ अन्य लोगों ने इसका विरोध किया था। साथ ही विश्वबैंक ने इस परियोजना के लिए धन देने से मना कर दिया था।
प्रधानमंत्री ने कहा कि इस परियोजना के लिए लोगों ने अपनी तरफ से धन दिया और नर्मदा माता के कारण मंदिरों ने भी इसके लिए दान दिया। उन्होंने कहा कि यह बांध भारत के लोगों के पसीने की कमाई से बना है। मोदी ने कहा कि देशवासी यदि कुछ ठान लें तो कोई भी चुनौती उनके लिए चुनौती नहीं रहती। उन्होंने कहा कि जिस विश्व बैंक ने गुजरात को नर्मदा बाँध के लिए धन देने से इंकार किया था, उसी विश्व बैंक ने 2001 में गुजरात के कच्छ में हुए हर एक कार्यों के लिए राज्य को ग्रीन अवॉर्ड से पुरस्कृत किया। उन्होंने कहा कि इस बांध परियोजना से मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के करोड़ों किसानों का भाग्य बदलेगा।
नर्मदा बांध परियोजना में हुए विलंब का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि वह इसे राजनीति से नहीं जोड़ रहे हैं अन्यथा उनके पास उन सभी लोगों का कच्चा चिट्ठा है जिन्होंने इस परियोजना में बाधाएं उत्पन्न की, आरोप लगाए और षडयंत्र किया। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि जब-जब नर्मदा नदी का सम्मान करने वाली सरकारे आईं तब-तब इस परियोजना के कार्य में काफी गति आई और बाकी समय इस परियोजना का काम तेजी से नहीं बढ़ा। उन्होंने कहा कि नर्मदा का पानी पारस है, जिस प्रकार पारस लोहे को स्पर्श कर सोना बना देता है उसी प्रकार इस बांध का पानी जिस सूखी जमीन पर जाएगा वह जमीन सोना उगलने लगेगी।
उन्होंने कहा कि भारत की दो भुजाएं हैं। पश्चिमी और पूर्वी भारत। जिस प्रकार नर्मदा बांध से पश्चिमी भारत की सिंचाई एवं पेय जल समस्या को दूर करने में एक बड़ी मदद मिलेगी उसी प्रकार वह चाहते हैं कि पूर्वी भारत की बिजली की समस्या को दूर करने के लिए बड़े स्तर पर प्रयास हों। प्रधानमंत्री ने नर्मदा बांध के पास बनने वाली सरदार पटेल की 182 मीटर ऊंची प्रतिमा ‘‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’’ का उल्लेख करते हुए कहा कि इससे क्षेत्र के पर्यटन को काफी मदद मिलेगी।
उल्लेखनीय है कि मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान नर्मदा बांध के लिए अनशन भी किया था। इससे पहले प्रधानमंत्री ने सरदार सरोवर नर्मदा बांध परियोजना का लोकार्पण किया। इस बांध की उंचाई को 138..68 मीटर तक बढ़ाया गया है। मोदी का आज जन्म दिन है। मोदी ने इस अवसर पर सरदार सरोवर बांध पर नर्मदा नदी की वैदिक मंत्रोच्चार के बीच पूजा-अर्चना की। उन्होंने इसके बाद सरदार पटेल की 182 मीटर की विशालकाय प्रतिमा के निर्माण का जायजा भी लिया। स्टेच्यू आफ यूनिटी नामक यह प्रतिमा उंचाई की दृष्टि से दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा होगी। यह अभी तक की सबसे ऊंची प्रतिमा स्टेच्यू आफ लिबर्टी से भी ऊंची है।
इस अवसर पर प्रधानमंत्री के साथ केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी, गुजरात के राज्यपाल ओपी कोहली, मुख्यमंत्री विजय रूपाणी, पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल सहित विभिन्न प्रमुख नेता मौजूद थे। सरदार सरोवर नर्मदा बांध परियोजना की परिकल्पना देश के प्रथम गृह मंत्री सरदार पटेल ने 1946 में की थी। बाद में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस परियोजना की नींव रखी थी। इसके बाद से इस परियोजना का काम पांच पिछले सात दशकों से रूक रूक कर चलता रहा। इस बांध परियोजना से पानी और यहां उत्पादित होने वाली बिजली से चार राज्यों- गुजरात, महाराष्ट, मध्य प्रदेश और राजस्थान को लाभ मिलेगा।