भारत की स्वतंत्रता में आंदोलनों का बड़ा महत्व रहा है। हिंसक एवं अहिंसक दोनों ही तरह के रहे गर्म दल के नेताओं ने हिंसक का रास्ता अपनाया वही नरम दल के नेता महात्मा गांधी ने अहिंसक आंदोलन का रास्ता चुना एवं इसका गहरा प्रभाव ब्रिटिश हुकुमत पर पड़ा। स्वतंत्रता के पश्चात् भारत का संविधान अनुच्छेद 19 प्रत्येक भारतीय को अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है वैसे भी स्वतंत्रता हमेशा दोहरी होती है अर्थात कुछ कहने की छूट तो कुछ न करने का प्रतिबंध, अपनी बात कहने के लिए एवं शासन से मनमाने के लिए धरना, प्रदर्शन, रैली, उपवास, पोस्टर, एक प्रचलित एवं मान्य तरीका है। विगत् 70 वर्षों में देश के विकास के साथ होने वाले आंदोलन हाईटेक एवं हिंसक भी होते गए। देश में आंदोलनों के दौरान् बढ़ती हिंसा की जनक राजनीतिक पार्टियां ही रही है।
इतिहास गवाह है प्रदर्शन, रैली, धरनों के दौरान् शासकीय सम्पत्ति को क्षति पहुंचाना ही मुख्य उद्देश्य रहा। फिर बात चाहे रेल रोको, बस रोको, शहर बंद, दुकान बंद की हो अब सरकारी के साथ-साथ आम आदमी की सम्पत्ति को भी क्षति पहुंचाने में भी ये प्रदर्शनकारी बिल्कुल भी नहीं हिचकते। शहर गांवों को शमशान बनाने में भी इनका हृदय नहीं कांपता, राजनीति के इस स्याह चेहरे का असर अब आम आदमी पर न पड़ रहा है बल्कि वह भी संगठन के माध्यम से इसी हिंसक रास्तों को अपना रहा है। राजनीति का गिरता स्तर कहीं न कहीं इसका जिम्मेवार है। आज नौकरशाह से लेकर प्रत्येक समाज का अपना एक संगठन है और वह अपनी जायज और नाजायज मांगों को मनमाने के लिए किसी भी स्तर तक जाने को तैयार है। भारत को यदि हम गांव एवं परंपराओं का देश माने तो कोई नई बात नहीं है। इस देश में अन्न दाताओं द्वारा हिंसक रास्ते पर चलना न ही इस देश और न ही सरकार के लिए अच्छा संकेत है। आरक्षण की तरह किसानों की कर्ज माफी का सस्ता एवं घटिया नुक्सा भविष्य के लिए न केवल गंभीर है बल्कि घातक भी है।
आरक्षण की तरह कही कर्ज माफी भी अधिकार न बन जाए। आज हर राजनीतिक पार्टी किसानों की कर्ज माफी में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही है। किसानों के कर्ज माफी की शुरूआत समय-समय पर राजनीतिक पार्टियां करती आ रही लेकिन हाल ही में उ.प्र. में किसानों को 36000/- करोड़ की कर्ज राशि की माफी की लहर ने मध्यप्रदेश एवं महाराष्ट्र भू-चाल सा ला दिया। मध्यप्रदेश के किसानों पर गोली चालन एवं इसमें मृत 6 किसान सरकार एवं विपक्ष के लिए न केवल गले की हड्डी बन गए बल्कि ये आंदोलन सरकार के हाथ से सरकता भी गया, साथ ही प्रदेश की कानून व्यवस्था भी पटरी से उतरती हुई नजर आने लगी। मसलन भोपाल, इन्दौर रोड़ पर 6 करोड़ की बसों एवं ट्रकों को आग के हवाले कर दिया। सरकार एवं विपक्ष एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप में जुट गए। नाजुक स्थिति को मुख्यमंत्री शिवराज ने भांपते हुए एक दिन का उपवास के लिए एक मृत किसानों को भरोसा दिलाने के लिए एवं मृत किसानों को 1-1 करोड़ रूपया भी स्वीकृत कर दिया एवं परिवार से भी स्वयंम मिलें। स्थिति धीरे-धीरे काबू में आई।
ये अलग बात है विपक्ष इस मुद्दे को जीवित बनाए रखना चाहता था सो उसने भी आगामी चुनावों को मदद्ेनजर अपनी विशेष रणनीति के तहत् किसान आंदोलन शुरू किया। अपनी राजनीतिक हांडी को चूल्हे पर चढ़ा दिया है। यहां कई यक्ष प्रश्न उठते है मसलन स्थिति, परिस्थिति, मौसम, पैदावार, भण्डारण, खाद, बीज के लिए मंत्रालय ने अपनी कोई ठोस योजना क्यों नहीं बनाई। यदि बनाई तो जवाबदेह कौन? अधिकारी हो या मंत्री हो जवाबदेही तो सरकार को निश्चित् करना ही चाहिए?
किसान ने सरकार के कहने पर बम्पर फसल की पैदावार थी। यदि उसे उसका वाजिब दाम न मिले तो दोषी कौन? एक ओर प्रदेश का मुखिया कह रहा है। खेती को लाभ का धन्धा बनायेंगे? तो फिर मंत्रालय ने इस पर गंभीरता से होमवर्क क्यों नहीं किया? अधिकारियों की लापरवाही से सरकार को तो विपत्ति का सामना करना ही पड़ा? थू-थू हुई सो अलग। अब तो प्रधानमंत्री मोदी भी बार-बार कह रहे है जो अधिकारी अच्छा कार्य नहीं कर रहे उन्हें उनके 15 वर्ष के सेवाकाल का आंकलन कर घर बैठाएं। मुख्यमंत्री की घोषणाओं के क्रियान्वयन न कर पाने वाले अधिकारियों को अभी तक बाहर का रास्ता क्यों नहीं दिखाया? सरकार और अधिकारियों के बीच चूहे-बिल्ली का खेल खत्म होना ही चाहिए।
तीन टर्म के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह पर यह अपने ही अब आरोप लगा रहे है कि अधिकारी सुनते नहीं बेलगाम हो गए, अब वक्त आ गया है। शिवराज अपने घेरे एवं नौकरशाहों को बदले, क्योंकि जमीनी हकीकत के साब पनपते व्रिदोह की खबरों को ये न नौकरशाह ऊपर तक नहीं आने देते एवं अपने को ही कुशल चाणक्य मान बैठे है। कार्यपालिका का इस तरह चुनी हुई सरकार के ऊपर हावी होना, इनका हस्तक्षेप बढ़ना शासन प्रशासन के लिए अच्छा संकेत नहीं है। आखिर 2018 का चुनाव भी सिर पर जो है वही कुछ नेताओं की महत्वकांक्षाऐं भी अब मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए कुलांचे मार रही है। संकट की इस घड़ी में पार्टी नेताओं के बिगड़ेल बोल सत्ता पक्ष के लिए नित कई समस्या भी खड़ी कर रहे है।
कर्ज माफी कोई हल नहीं है। सरकार को स्थाई हल बनाना ही चाहिए। ताकि खेती लाभ का धन्धा बन सके। अब वक्त आ गया है बातों से नहीं काम से अन्नदाता का मान सम्मान हो। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह क्यों नहीं लोक सेवा गारंटी योजना की तर्ज पर ‘‘फसल उत्पादन की गारण्टी योजना’’ शुरू करते इससे निःसंदेह किसानों में न केवल नया आत्मविश्वास आयोगा बल्कि प्रदेश के विकास में बढ़-चढ़कर अपना योगदान भी देगा।
डाॅ. शशि तिवारी
शशि फीचर.ओ.आर.जी.
लेखिका सूचना मंत्र की संपादक हैं
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