बढ़ती महंगाई का गरीबों पर नहीं होगा असर, ‘न्यूनतम मजदूरी’ के लिए सरकार का नया कदम
भारत में गरीबी नापने का पैमाना ‘गरीबी रेखा’ को माना जाता है. पर बहुत जल्द ऐसा हो सकता है, जब देश के करोड़ों लोग इस गरीबी रेखा की सीमा से बाहर आ जाएंगे. सरकार एक ऐसी योजना पर काम कर रही है, जो गरीबों के लिए फायदेमंद हो सकता है.
सरकार ने 2030 तक देश से अत्यंत गरीबी को मिटाने का टारगेट रखा है.
भारत में अभी लोगों का मेहनताना अभी सरकार के ‘न्यूनतम मजदूरी’ के नियम कायदों से तय होता है. पर इस व्यवस्था में बहुत जल्द बदलाव हो सकता है. सरकार का ये फैसला देश के करोड़ों लोगों को गरीबी रेखा के दायरे से बाहर निकालने वाला होगा. वैसे भी सरकार ने सतत विकास लक्ष्यों के तहत 2030 तक देश से अत्यंत गरीबी को मिटाने का टारगेट रखा है. तो क्या बदलाव करने जा रही है सरकार?
ईटी की एक खबर के मुताबिक सरकार अब मिनिमम वेजेस यानी न्यूनतम मेहनताने की जगह लिविंग वेजेस की व्यवस्था लागू करने पर विचार कर रही है. इसका मतलब ये हुआ कि देश में अब लोगों को न्यूनतम मजदूरी की जगह इतनी मजदूरी मिलेगी जो उनके जीवन जीने लायक सही हो. क्या हैं इसके मायने…
लिविंग वेजेस का क्या है मतलब
लिविंग वेजेस का मतलब श्रमिकों की उतनी न्यूनतम आय होना है, जिससे वो अपनी सामान्य जरूरतों को पूरा कर सकें. जबकि न्यूनतम मजदूरी किसी श्रमिक की प्रोडक्टिविटी और स्किल पर निर्भर करती है.
न्यूनतम मजदूरी को जहां सरकार कानून बनाकर तय करती है, वहीं लिविंग वेजेस जीवन जीने की औसत लागत के हिसाब से तय की जाती है. यानी जगह और शहर के हिसाब से न्यूनतम मजदूरी के मुकाबले लिविंग वेजेस में 10 से 25 प्रतिशत तक का अंतर आ सकता है.
महंगाई का भी नहीं होगा असर
इतना ही नहीं, रिपोर्ट की मानें तो सरकार लिविंग वेजेस को महंगाई के इंडेक्स से लिंक करने की भी योजना बना रही है. ताकि बढ़ती महंगाई का असर श्रमिकों के रोजमर्रा के जीवन पर ना पड़े. श्रम मंत्रालय से जुड़े एक सूत्र के हवाले से खबर में कहा गया है कि अभी इस नई व्यवस्था के लाभ और नुकसान का आकलन किया जा रहा है.
साथ ही इसका देश के आर्थिक और सामाजिक परिदृश्य पर क्या असर पड़ेगा, इस बारे में भी विचार किया जा रहा है. हालांकि अगर सरकार ये व्यवस्था लागू करती है, तो देश के करोड़ों गरीबों की गरीबी दूर होगी. वहीं इसका भारी बोझ इंडिया के कॉरपोरेट सेक्टर पर भी पड़ने की संभावना है.