भोपाल : मध्यप्रदेश में सरदार सरोवर बांध से मिले जख्म अभी भरे भी नहीं हैं कि एक और बांध बनाने की तैयारी शुरू कर दी गई है। यह बांध नर्मदा और गंजाल नदी पर संयुक्त सिंचाई परियोजना के तहत बनाया जाना प्रस्तावित है। इस परियोजना से तीन जिलों- हरदा, होशंगाबाद और बैतूल के लगभग 2371 हेक्टेयर में फैले जंगलों का डूब में आना तय है। इस परियोजना से तीन जिलों के 23 गांवों के प्रभावित होने का अनुमान है। डूब से आशंकित लोग इस बांध का विरोध कर रहे हैं।
समाचार एजेंसी आईएएनएस के अनुसार इस बांध के निर्माण के लिए निविदाएं भी आमंत्रित कर ली गई हैं। इस परियोजना से तीन जिलों- हरदा, होशंगाबाद और बैतूल के लगभग 2371 हेक्टेयर में फैले जंगलों का डूब में आना तय है।
जिंदगी बचाओ अभियान की शमारुख धारा ने आईएएनएस को बताया कि नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) को वर्ष 2012 में टीओआर मिला था, जिसकी वैधता दो साल की थी, मगर इसे बढ़ाकर चार साल किया गया। तीन साल बाद नवंबर, 2015 में इस परियोजना से प्रभावित होने वाले तीनों जिलों में जन-सुनवाई की गई थी। उस समय भी इसका जमकर विरोध हुआ था। फिर भी इस परियोजना की पर्यावरणीय मंजूरी के लिए प्रभाव का आकलन कर रिपोर्ट पर्यावरण मंत्रालय को भेजी गई।
मोरंड-गंजाल संयुक्त सिंचाई परियोजना का विरोध करने वालों का दावा है कि पर्यावरण मंत्रालय ने मार्च, 2017 में कहा था कि इस परियोजना को पर्यावणीय मंजूरी तभी मिलेगी, जब एनवीडीए को वन विभाग की स्वीकृति मिल जाएगी। कानूनी प्रक्रिया के अनुसार, वन विभाग की स्वीकृति मिले बिना पर्यावरणीय मंजूरी के लिए आवेदन देना गैरकानूनी है।
शमारुख ने सूचना के अधिकार के तहत हासिल की हुई जानकारी का हवाला देते हुए कहा, इस परियोजना के लिए न तो फॉरेस्ट क्लियरेंस मिला और न ही पर्यावरणीय मंजूरी, उसके बावजूद निविदाएं आमंत्रित कर ली गई हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता अमूल्य निधि का कहना है कि इस परियोजना से तीनों जिलों के 23 गांवों के जंगल और आबादी वाले आठ गांव प्रभावित होने वाले हैं। इस तरह बांध निर्माण का बड़ी आबादी पर बुरा असर पड़ेगा। इन गांवों में आदिवासियों की संख्या ज्यादा है। आशंका है कि उनके साथ उनकी आजीविका भी पानी में डूब जाएगी।
उपलब्ध ब्यौरे से पता चलता है कि पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2012 में इस परियोजना की लागत 1434 करोड़ रुपये बताई गई, जिसे शिवराज सरकार ने वर्ष 2017 में बढ़ाकर 2800 करोड़ रुपये कर दिया और इसकी प्रशासकीय स्वीकृति भी दे दी। अब इस परियोजना की जो निविदा जारी की गई है, वह 1800 करोड़ रुपये की है। यह अनुमानित लागत सिर्फ निर्माण कार्य की है, पुनर्वास पर अलग से खर्च होगा।
गुजरात सरकार द्वारा सरदार सरोवर बांध का जलस्तर बढ़ाए जाने से सरकारी रिकार्ड के अनुसार, 178 गांव बैक वाटर में डूब रहे हैं, वहां के हजारों परिवारों का जिंदगी बचाने के लिए संघर्ष जारी है। इन प्रभावितों का अभी पुनर्वास भी हुआ नहीं है, आर्थिक समस्या का हवाला दिया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर एनवीडीए ने एक और बांध बनाने के लिए निविदाएं आमंत्रित कर ली है।
बांध प्रभावितों की लड़ाई लड़ने वाले समूहों का कहना है कि एक तरफ सरकार पानी का अधिकार लागू करने की बात कर रही है, इसके लिए बनाई गई समितियों के सदस्य बने बांधों का विरोध कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर नया बांध बनाने की कवायद तेज कर दी गई है। वर्तमान सरकार को इन स्थितियों की समीक्षा करना चाहिए, क्योंकि जहां मंडोर-गंजाल बांध बनाया जा रहा है, वहां पानी की समस्या नहीं है और न ही सिंचाई के लिए पानी की जरूरत है। सवाल उठ रहा है कि तब यह बांध क्यों? एनवीडीए का कोई भी अधिकारी इस नई परियोजना पर बोलने को तैयार नहीं है।
सरदार सरोवर बांध के पानी से डूब रहे 176 गांवों पर बोला सुप्रीम कोर्ट, 30 सितंबर तक फैसला ले कमेटी
महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश और राजस्थान में आई बाढ़ पहले ही चिंता का कारण बनी हुई है, सरदार सरोवर बांध के पानी के कारण भी लोगों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। जानकारी के मुताबिक लगभग 176 गांवों में बांध के पानी के कारण बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई है। कई गांव द्वीप जैसे बन गए हैं और लोगों के संपर्क टूट गए हैं। इसके कारण सुप्रीम कोर्ट पहुंचे लोगों की अपील पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा है कि इस मामले पर बनी कमेटी 30 सितंबर तक उचित फैसला ले। मामले की अगली सुनवाई एक अक्टूबर को रखी गई है।
मामले पर गठित हाईलेवल कमेटी में गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शामिल हैं। इस कमेटी की अध्यक्षता केंद्र सरकार का जल मंत्रालय करता है। इस कमेटी को विस्थापितों, बाढ़ क्षेत्र और लोगों के पुनर्स्थापन से संबंधित फैसले निर्णय लेने हैं। बांध का निर्माण 2017 में पूरा हुआ था। इस समय पानी के लगातार बढ़ते जलस्तर के बावजूद केंद्र ने बांध का गेट खोलने से कथित तौर पर इनकार कर दिया है।
इस मामले में गुजरात सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाना चाहता है, जबकि मध्यप्रदेश इसका विरोध कर रहा है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि अभी बाढ़ क्षेत्र में आने वाले सभी लोगों का पुनर्वास सुनिश्चित नहीं किया जा सका है। जबकि कोर्ट के आदेश पर 31 जुलाई 2017 तक प्रभावित गांव के लोगों का विस्थापन पूरा हो जाना चाहिए था।
पिछले वर्ष 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार सरोवर बांध को जनता को लोकार्पित करते हुए अपना जन्मदिन मनाया था। वे इस वर्ष भी यहां पहुंचे और जनता का ध्यान अपनी तरफ खींचा। सरदार सरोवर डैम का काम पूरा करना उनके एक लक्ष्यों में से एक माना जाता है। हालांकि, इस दौरान बाढ़ प्रभावितों के बारे में कोई बात न करने के कारण विपक्ष ने उनकी आलोचना भी की थी।