राजस्थान विधानसभा में शनिवार को विपक्षी भाजपा के विरोध के बीच सीएए के खिलाफ प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित हुआ। इसमें केंद्र सरकार से नागरिकता संशोधन कानून को वापस लेने की मांग की गई।
केरल, पंजाब के बाद राजस्थान सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पारित करने वाला देश का तीसरा और कांग्रेस शासित दूसरा राज्य है।
संसदीय कार्य मंत्री शांति धारिवाल द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव में केंद्र सरकार से एनपीआर-2020 के तहत मांगी जाने वाली नई जानकारियों को भी हटाने की मांग की गई है।
प्रस्ताव में दावा किया गया कि सीएए संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन करता है इस लिए सदन केंद्र सकार से इसे वापस लेने की मांग करता है।
हालांकि नेता विपक्ष गुलाब चंद कटारिया ने सवाल उठाया कि राज्य को केंद्र द्वारा पारित नागरिकता कानून को चुनौती देने का अधिकार कैसे मिला है।
उन्होंने कहा, नागरिकता केंद्र का विषय है ऐसे में राज्य कैसे इसे चुनौती दे सकते हैं। कांग्रेस को वोटबैंक की राजनीति बंद करनी चाहिए।
इस बीच विधानसभा में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का आरक्षण अगले 10 वर्ष बढ़ाने संबंधी विधेयक भी पास किया गया। बिल पर चर्चा के दौरान विपक्षी भाजपा ने सरकार पर बेवजह देरी करने का आरोप लगाया।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस अपने राजनीतिक एजेंडे और तुष्टिकरण की राजनीति के चलते यह संकल्प ले आई है।
भाजपा नेताओं ने कहा कि सीएए चूंकि अब कानून बन चुका और इसको चुनौती दिए जाने का मामला अदालत में विचाराधीन है इसलिए प्रस्ताव लाने का कोई औचित्य नहीं है।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने शनिवार को केंद्र सरकार से मांग की कि वह संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को निरस्त करे क्योंकि यह धर्म के आधार पर लोगों से भेदभाव करने वाला कानून है।
सीएए को जिक्र करते हुए गहलोत ने ट्वीट किया, राज्य विधानसभा ने सीएए के खिलाफ संकल्प प्रस्ताव आज पारित किया और हम केंद्र सरकार से आग्रह करते हैं कि वह इस कानून को निरस्त करे क्योंकि यह धार्मिक आधार पर लोगों से भेदभाव करता है जो हमारे संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन है।
गहलोत ने कहा, हमारा संविधान किसी भी प्रकार के भेदभाव पर रोक लगाता है। देश के इतिहास में पहली बार कोई ऐसा कानून बनाया गया है जो धार्मिक आधार पर लोगों के साथ भेदभाव करता है। यह हमारे संविधान के पंथनिरपेक्ष सिद्धांतों और हमारे संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है।
उन्होंने देशभर में सीएए के विरोध का जिक्र करते हुए कहा कि चूंकि यह संविधान की मूल भावना के खिलाफ है इसलिए इसे निरस्त किया जाना चाहिए।