दमोह [ TNN ] जिला चिकित्सालय के नवनिर्मित द्वार के नामकरण तथा स्वतंत्रत संग्राम सेनानी प्रेमशंकर धगट के नाम को विलोपित करने के प्रयास को लेकर अचानक उठा मुद्दा जहां गर्माता जा रहा है तो वहीं मंत्री,सांसद,जिला प्रशासन एवं संबधित विभाग की मंशा तथा कार्यप्रणाली पर प्रश्र चिन्ह अंकित होने की चर्चा इस समय नगर में जमकर व्याप्त हो रही है? इस नामकरण के पीछे की मंशा पर सवाल जहां जनमानस में होते सुने जा रहे हैं तो वहीं स्व.धगट के उनके भ्राता गोविन्द धगट एवं पौत्र अधिवक्ता अनिल धगट ने इस प्रक्रिया को नियम विरूद्ध बतलाते हुये कहा कि यह पूर्वजों तथा देश के प्रति अपना सर्वस्व निछावर करने वालों को दरकिनार करने की एक सोची समझी साजिश नजर आती है। मामले को लेकर पूर्ण रूप से तैयार अनिल धगट के अनुसार मैने सात दिन का वक्त दिया है अगर वह सुधार नहीं करते न्यायालय में उक्त प्रकरण को चुनौती देने के लिये तैयार हूं। इनके अनुसार अगर किसी का नाम जोडा या विलोपित किया जाता है तो उसके लिये जिला पंचायत,नगर पलिका,निगम एवं जिला प्रशासन के द्वारा विधि अनुसार प्रस्ताव पारित कर शासन को भेजा जाता है। इसके पश्चात् ही नाम जोडने अथवा विलोपित करने का कार्य किया जाता है। विदित हो कि दशकों से स्व.प्रेमशंकर धगट के नाम से संचालित जिला चिकित्सालय के मुख्य द्वार का नामकरण ङ्क्षसघई रघुवर प्रसाद के नाम से कर गत 2 अक्टूबर को प्रदेश के वित्त मंत्री श्री मलैया ने किया था। वहीं सिंघई रघुवर प्रसाद के पुत्र रतन चन्द्र जैन के अनुसार नाम जोडने पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं करायी है।
कौन थे प्रेमशंकर धगट-
देश की आजादी में अपना अभूतपूर्व योगदान देने वाले प्रेमशकर धगट एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। वह बर्ष 1942 से लेकर 1945 तक सिवनी,नागपुर,दमोह तथा जबलपुर में जेल बंद रहे थे। प्राप्त जानकारी के अनुसार 1930 में नमक सत्याग्रह में 6 माह जेल में रहे। इनके द्वारा जिला चिकित्सालय में नगर पालिका अध्यक्ष के पद पर रहते दो कक्षों का निर्माण कराया गया था। श्री धगट प्रदेश सरकार में वित्त मंत्री रहे उसी समय उनकी मृत्यू हो गयी तब तत्कालीन मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल ने जिला चिकित्साल को स्व.प्रेमशंकर धगट स्मृति जिला चिकित्सालय करने की घोषणा की। विधि के अनुसार नामकरण होने के बाद आज भी यह श्रीधगट के नाम से संचालित हो रहा है तथा समस्त शासकीय अभिलेखों में दर्ज है।
पूर्व में भी हुई थी साजिश-
प्राप्त जानकारी के अनुसार बर्ष 1980 में इस प्रकार की साजिश की गयी थी जिसमें स्व.प्रेमशंकर धगट का नाम हटाकर शासकीय जिला चिकित्सालय कर दिया गया था। अधिवक्ता अनिल धगट ने बतलाया कि इस समय मेरी दादी जिन्दा थी तथा मामले को लेकर हम न्यायालय में गये थे जहां अपनी गलती को स्वीकार करते हुये हमारी पूर्ण शर्तों को मानते हुये समझोता प्रशासन एवं संबधित विभाग ने किया था। 1981 में पुन:स्व.प्रेमशंकर धगट के नाम से जिला चिकित्सालय से समस्त दस्तावेज तथा पीतल के अक्षरों से नाम लिखा गया था। इनके अनुसार पुन:उसी साजिश को तो नहीं दुहराया जा रहा है यह प्रश्र उपज रहा है?
मूर्ति की भी नहीं फिक्र-
जिस महापुरूष के नाम पर जिला चिकित्सालय का नाम है उसकी मूर्ति को भी लगाने का प्रयास शासन प्रशासन द्वारा नहीं किया था। स्व.धगट के परिजनों ने स्वयं के व्यय पर एक मूर्ति प्रेमशंकर धगट की जिला चिकित्सालय प्रांगण में लगवायी थी। वहीं इसके रखरखाव तथा भविष्य के लिये चालीस हजार रूपये भी देव राधाकृष्ण मंदिर ट्रस्ट में जमा कर रखे हैं। सूत्रों की माने तो उक्त मूर्ति पर राष्ट्रीय पर्व पर भी कोई माल्यापर्ण करने जिला चिकित्सालय प्रबंधन की ओर से नहीं जाता।
रोगी के कल्याण की जगह निर्माण पर ध्यान?-
उक्त प्रकरण को लेकर उपज रहे प्रश्रों में से एक जो बडा प्रश्र सामने आ रहा है वह है रोगी कल्याण समीति द्वारा विवादित द्वार के नामकरण की अनुमति देने का। कानून के जानकारों की माने तो रोगी कल्याण समीति का कार्य रोगियों कल्याण पर ध्यान देना है न कि निर्माण कार्यों पर या नाम जोडने तथा विलोपित करने की अनुमति देने का? वहीं अगर यह प्रस्ताव रोगी कल्याण समीति ने पारित कर भी लिया तो क्या मंत्री,सांसद,कलेक्टर,अस्पताल प्रबंधन तथा संबधित विभाग को इस संबध में अधिकारों की जानकारी नहीं है? क्या इस में किसी सोची समझी साजिश की बू नहीं आ रही है यह प्रश्र इस समय जन चर्चा में बना हुआ है?ज्ञात हो कि रोगी कल्याण समीति में जिनके नाम पर द्वार हुआ है उनके पौत्र हैं।
मंत्री मलैया ने किया लोकार्पण–
श्री मलैया ने जिला चिकित्सालय के मुख्य द्वार जो ”ङ्क्षसघई रघुवर प्रसारÓÓ की स्मृति में बनाया गया है का लोकार्पण किया। उन्होंने रतन चंद जैन परिवार को इस कार्य के लिए साधुवाद दिया। इस अवसर पर पत्रकार राजेन्द्र जैन अटल ने कहा गेट का लोकार्पण हुआ है यह स्व. रघुवर प्रसार ङ्क्षसघई के नाम से है। इन्होने बतलाया कि स्व. रघुवर प्रसाद हमारे बब्बा जी थे जिन्होने तत्कालीन समय जिले में स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए काम किया और न्याय क्षेत्र में उनकी सेवाओं का उल्लेख किया। श्री जैन ने कहा हम पीड़ितों की सेवा के लिए सदैव कार्य करेंगे।
कौन है सिंघई रघुवर प्रसाद-
प्राप्त जानकारी के अनुसार जुझार के ङ्क्षसघई रघुवर प्रसाद ने जिले मेें सबसे प्रथम सार्वजनिक तौर पर स्वास्थ्य सेवाओं की शुरूआत की थी। 1924 में प्रथम वार्ड बनवाया था जिसका उद्घाटन तत्कालीन डिप्टी कमिश्रर खान बहादुर सैयद जाकिर अली आईएसओ ने किया था। इस संबध में एक शिलालेख जिला चिकित्सालय के एक कक्ष में लगे होने की बात सामने आयी है। प्राप्त जानकारी के अनुसार 1920 में चचक,हैजा,प्लेग जैसी महामारी फैलने पर लोंगों को स्वास्थ्य लाभ मिल सके इसके लिये कक्षों का निर्माण कराया था।
उपजते प्रश्र-
-कानून के जानकारों के अनुसार किसी शासकीय भवन का नामकरण अथवा विलोपित करने के पूर्व जिलापंचायत,नगरपालिका,नगर निगम से पारित प्रस्ताव को जिला प्रशासन शासन को भेजता है उसके पश्चात् शासन उसकी अनुमति देता है। क्या इसके लिये यह प्रक्रिया अपनायी गयी?क्या रोगी कल्याण समीति को इस प्रकार के अधिकार प्रदान किये गये हैं? अगर नहीं तो फिर मंत्री,सांसद तथा अधिकारी इस साजिश में सम्मिलित नहीं हैं? एक व्यक्ति को अचानक आठ बसंत देखने के बाद यह बात याद आती है कि उसके पिता मालगुजार थे? क्या मंत्री की नजदीकी का फायदा तथा एक समाज विशेष का होने का लाभ तो नहीं उठाया जा रहा है या दिया जा रहा है? ज्ञात हो कि जिनके नाम पर द्वार किया गया वह,उनके परिजन,मंत्री,सिविल सर्जन तथा निर्माण एजेंसी के अनुविभाग के यंत्री एक वर्ग के बतलाये जाते हैं? जिसको लेकर जनता में जमकर चर्चायें हो रही हैं?
रिपोर्ट :- डा.एल.एन.वैष्णव