मध्य प्रदेश कोटे से तीन राज्यसभा सदस्यों ,कांग्रेस के दिग्विजय सिंह एवं भाजपा के प्रभात झा तथा सत्यनारायण जटिया का कार्यकाल आगामी 9 अप्रैल को समाप्त होने जा रहा है। राज्य विधानसभा में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की संख्या बल के हिसाब से दो सीटें कांग्रेस को और एक सीट भाजपा को मिलने की संभावना अधिक दिखाई दे रही है, लेकिन यह स्थिति तब ही बन सकती है, जबकि भारतीय जनता पार्टी केवल एक सीट पर अपना उम्मीदवार खड़ा करें। मगर भारतीय जनता पार्टी ऐसा कतई नहीं होने देगी। वह अपने दो उम्मीदवार खड़े करके मतदान की स्थिति पैदा करने की रणनीति पर अमल करना ज्यादा पसंद करेंगी।
राज्य विधानसभा की वर्तमान संख्या के अनुसार एक सीट पर जीत हासिल करने के लिए 58 सदस्यों का समर्थन आवश्यक है। विधानसभा में 108 सदस्यों वाली भारतीय जनता पार्टी 58 सदस्यों के समर्थन से एक सीट पर तो अपनी विजय सुनिश्चित मान सकती है, परंतु शेष 50 विधायकों के समर्थन से एक और सीट जीत पाना उसके लिए नामुमकिन होगा। इसके लिए उसे 8 निर्दलीय विधायकों के समर्थन की दरकार होगी ,लेकिन इस बात की संभावना है अभी धूमिल ही दिखाई दे रही है कि वह 8 निर्दलीय विधायकों का समर्थन जुटा लेने में सफल हो जाएगी। दूसरी और कांग्रेस पार्टी मात्र दो निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल करके दो सीटों पर अपनी विजय सुनिश्चित कर सकती है।
गौरतलब है कि 6 वर्ष हुए राज्यसभा चुनावों में मध्य प्रदेश की तीन सीटों में से दो सीटें तत्कालीन सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी एवं एक सीट विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने जीती थी। तब कांग्रेस की ओर से विवेक तन्खा और भाजपा की ओर से एमजे अकबर तथा अनिल माधव दवे राज्यसभा के लिए चुने गए थे। भाजपा ने अपने एक नेता विनोद गोटिया को भी चुनाव में उतारकर कांग्रेस की राह मुश्किल करने की रणनीति बनाई थी, लेकिन विनोद गोटिया विवेक तन्खा को जीतने से रोकने में असफल रहे थे।
इस बार स्थिति बदल चुकी है। कांग्रेस सत्ता में है और भाजपा विपक्षी पार्टी है, मगर 2016 में राज्य विधानसभा में भाजपा के संख्या बल के हिसाब से सत्तारूढ़ कांग्रेस का वर्तमान विधानसभा में संख्या बल काफी कम था,लेकिन इस बार ऐसी स्तिथि नही है। इसलिए इस बार भाजपा अगर दो उम्मीदवार उतारती है तो मुकाबला दिलचस्प हो सकता है और जोड़-तोड़ की संभावनाएं भी अधिक होंगी। वैसे कांग्रेस को मात्र दो निर्दलीय विधायकों के समर्थन की जरूरत होने से पलड़ा उसके पक्ष में अधिक झुका नजर आ रहा है।
इन चुनावों में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को लगातार दूसरा कार्यकाल मिलने की संभावनाएं सबसे बलवती प्रतीत हो रही है। जबकि एक अन्य सीट के लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की दावेदारी सबसे अधिक मजबूत मानी जा रही है। ज्योतिरादित्य सिंधिया एवं दिग्विजय सिंह दोनों ही लोकसभा चुनावों में पार्टी के उम्मीदवार थे, परंतु उन चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
लगभग 13 माह पूर्व सिंधिया ने कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी जताई थी, परंतु उस समय कमलनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल करने में सफलता मिली थी। बीच-बीच में ज्योतिरादित्य सिंधिया के बयानों से भी उनके असंतोष की झलक मिलती रही है। कांग्रेस पार्टी उन्हें राज्यसभा में भेजने का फैसला कर उन्हें संतुष्ट करने पर गंभीरता से विचार कर रही है।
सिंधिया को पूर्ववर्ती कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी वाड्रा का सहयोगी भी बनाया था। गांधी परिवार की निकटता को देखते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्यसभा में भेजे जाने की संभावनाएं प्रबल दिखाई दे रही है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को राज्यसभा में लगातार दूसरा कार्यकाल मिलना लगभग तय माना जा रहा है। राज्यसभा में पार्टी का पक्ष मजबूती से पेश करने में दिग्विजय सिंह सबसे आगे रहे हैं। इसलिए उनके नाम पर पार्टी के अंदर सर्वसम्मति होने में कहीं कोई अड़चन नहीं है। इतना अवश्य है कि राज्यसभा में कांग्रेस के चयन में मुख्यमंत्री कमलनाथ की राय भी अहम साबित होगी।
कमलनाथ ने अपनी कुशल रणनीति के जरिए जिस तरह सत्ता की बागडोर संभाली है, उसने उन्हें गांधी परिवार के और निकट ला दिया है। कांग्रेस की ओर से पूर्व मंत्री अजय सिंह, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव , विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष राजेन्द्र सिंह आदि वरिष्ठ नेताओं के नाम भी चर्चा में अवश्य है, परंतु दिग्विजय सिंह एवं ज्योतिरादित्य सिंधिया की दावेदारी सबसे सशक्त मानी जा रही है।
जहां तक भारतीय जनता पार्टी का संबंध है, उसे इन चुनावों में एक सीट खो देने का डर सता रहा है। फिर भी वह दो सीटों के लिए उम्मीदवार उतारकर मतदान की स्थिति पैदा करने से नहीं हिचकेगी। उसे अगर दूसरी सीट पर भी विजय हासिल करना है तो उसे हर हाल में आठ निर्दलीय विधायकों का समर्थन जुटाना होगा और वह इसमें सफल हो जाएगी यह अभी दूर की कोड़ी जैसा ही प्रतीत होता है। भले ही भाजपा अभी की स्थिति में तीन में से केवल एक सीट पर जीतने की स्थिति में हो ,परंतु इस सीट के लिए कई दावेदार सामने आ सकते हैं।
भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय पूर्व महाधिवक्ता रविनंदन सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती, विनोद गोटिया, आदिवासी नेता लाल सिंह आर्य के नामों पर भी पार्टी विचार कर सकती है। पार्टी के प्रदेश प्रभारी डॉ विनय सहस्त्रबुद्धे का नाम भी इस सीट के लिए सुर्खियों में शामिल है। खुद विनय सहस्त्रबुद्धे का कहना है कि राज्यसभा के लिए उम्मीदवार चयन में संसदीय बोर्ड का फैसला ही अंतिम होगा, लेकिन इतना तो लगभग तय माना जा रहा है कि राज्यसभा में दो कार्यकाल पूरा कर चुके प्रभात झा और सत्यनारायण जटिया को लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए नहीं चुना जाएगा।
कृष्णमोहन झा
(लेखक WDS के राष्ट्रीय अध्यक्ष और IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष है )