सीता की खोज में जब समुद्र ने मार्ग नहीं दिया तो राम ने अपने तरकस से बाण निकाल लिया। फिर सागर ने प्रकट होकर क्षमा मांगी और कहा कि वह तो प्रकृति के नियम से आबद्ध है, लेकिन विश्वकर्मा के दो पुत्र नल और नील सेतु का निर्माण कर सकते हैं। उनके हाथों से पत्थर डूबेंगे नहीं।
रामायण में लिखा है कि पांच दिन में सौ योजन लंबा और दस योजन चौड़ा सेतु वानर सेना ने तैयार कर दिया। भगवान राम शिव को भजते थे, तो आक्रमण से पहले इष्ट का पूजन अर्चन भी आवश्यक था। इसलिए एक कालजयी विग्रह स्थापित हुआ, जिसे श्री रामेश्वरम् के नाम से जानते हैं।
द्वादश ज्योतिर्लिंगों मे से एक रामेश्वरम् दक्षिण भारत में काशी विश्वनाथ के समान पूज्य है। भगवान् श्रीराम ने वहां श्रीरामेश्वरम् की स्थापना की और विधिवत् पूजन किया। ज्योतिर्लिंग स्तवन में कहा जाता है कि सेतुबंधे तु रामेश्वरम अर्थात् सेतबंध पर भगवान् श्री राम के जरिए स्थापित रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग है। यह ज्योतिर्लिंग मंदिर एक हजार फुट लंबा, 650 फुट चौड़ा और 125 फुट ऊंचा है। यहां गंगोत्री से लाए गंगाजल से अभिषेक करने से पाप शांत होते हैं।
रामेश्वरम् से लगभग पांच किलोमीटर उत्तरपूर्व में गंधमादन पर्वत है, जिसपर चढ़कर हनुमान ने समुद्र पार किया था। प्रकृति की गोद में यहां चौबीस कूप बने हैं, जिनमें सभी तीर्थों का जल है। इन कूपों के जल में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है।
तीर्थ के दक्षिण की ओर धनुषकोटि तीर्थ है, कहा जाता है कि वहां श्रीराम ने धनुष टंकार किया था। यहां समुद्र सदैव शांत रहता है। एक बार इस क्षेत्र में आएंगे तो बार बार वहां आने को मन होगा।