देवी पूजक देश भारतवर्ष में महिलाओं की स्थिति निश्चित रूप से दुनिया के अन्य देशों की तुलना में अत्यधिक दयनीय है। हमारे देश में महिलाओं के स मान,सुरक्षा तथा उनके अधिकारों का जितना अधिक ढिंढोरा पीटा जाता है वास्तव में यहां की महिलाएं उतनी ही अधिक अपेक्षित,अपमानित,असहाय व असुरक्षित महसूस की जा रही हैं। देश के दूरदराज़ के ग्रामीण इलाकों की महिलाओं की तो बात ही क्या करनी शहरों की मासूम बच्चियां,पढ़ी-लिखी तथा आत्मनिर्भर समझी जाने वाली कामकाजी महिलाएं तथा छात्राएं तक सुरक्षित नहीं हैं।
हमारा देश जितना ही धार्मिक,आस्थावान लोगों का देश समझा जाता है महिलाओं के प्रति सोच को लेकर लोगों का चरित्र उतना ही गिरा हुआ है। जिस देश की महिलाएं अपने पिता तुल्य गुरुओं से सुरक्षित न रह सकें,जहां पिता,चाचा व मामा यहां तक कि भाई जैसे पवित्र रिश्ते कलंकित होने की खबरें आती हों। जहां क्या मंदिर का पुजारी तो क्या मदरसे का मौलवी स ाी की नज़रों में मासूम बच्चियां केवल वासना की आग बुझाने का माध्यम नज़र आती हों,ऐसे देश में महिलाओं के आदर व स मान की दुहाई देना महज़ एक मज़ाक ही समझा जा सकता है।
इंतेहा तो यह है कि देश के अनेक मंत्री,सांसद तथा विधायक जैसे वह लोग जिनपर महिलाओं की सुरक्षा हेतु $कानून बनाने की जि़ मेदारी हो, वे भी वासना के भूखे भेडिय़ों की सूची में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं। इस श्रेणी के अनेक लोग बलात्कारियों के रूप में आज भी जेल की शोभा बढ़ा रहे हैं।
एक बार फिर हमारे देश में कई राज्यों से लगातार बलात्कार,सामूहिक बलात्कार तथा बलात्कार के बाद निर्मम हत्या किए जाने जैसी $खबरें आने लगी हैं। जिस प्रकार 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली के मुनिरका क्षेत्र में हुए निर्भया सामूहिक बलात्कार कांड ने पूरे विश्व के मीडिया का ध्यान खींचा था ठीक वैसी ही स्थिति एक बार फिर पैदा हो रही है। गौरतलब है कि 2012 में दुनिया के कई देशों ने अपने नागरिकों को सचेत रहने तथा भारतवर्ष में भ्रमण के दौरान अपनी सुरक्षा का विशेष ध्यान रखने के दिशा निर्देश जारी किए थे।
नि:संदेह यह स्थिति हमारे देश के मान-स मान तथा गरिमा के लिए चिंताजनक स्थिति है। मानवता विरोधी ऐसे अपराध करने वाला कोई भी भारतीय नागरिक यदि ऐसा घिनौना अपराध करता है तो वह देश को भी बदनाम करता है तथा अपने धर्म की शिक्षाओं को भी कलंकित करता है। फिर आखिर हमें अपराधी का धर्म या समुदाय देखने की ज़रूरत क्यों महसूस होती है? क्यों हम धर्म व समुदाय के आधार पर किसी बलात्कारी के पक्ष में खड़े होकर उसका बचाव करने लग जाते हैं
। इतना ही नहीं यदि किसी बलात्कारी का धर्म या उसका समुदाय हमारे मुआफिक नहीं है या हम उसके धर्म के प्रति नफरत या पूर्वाग्रह रखते हैं तो हम उसके विरोध में किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाते हैं। किसी भी बलात्कार के आरोपी के विरुद्ध या उसके पक्ष में फैसले संबंधी फरमान सुनाने का धर्म आधारित अधिकार हमें आखिर किसने दिया है?
यदि हम इस प्रकार की बेशर्मी भरी घटनाओं की पृष्ठभूमि में झांकने की कोशिश करें तो हमें सबसे पहले यह सिलसिला आसाराम तथा गुरमीत सिंह जैसे तथाकथित स्वयंभू संतों के अंधभक्तों की ओर से शुरु होता दिखाई देता है। देश की स मानित अदालतों ने जब इन स्वयंभू संतों की बेशर्मी भरी काली करतूतों की ओर निष्पक्ष कार्रवाईयां करनी शुरू कीं उसी समय इनके अंधभक्त सड़कों पर आने शुरु हो गए। अपने गुरूओं के पक्ष में इनके अनुयायी धरने-प्रदर्शन करने लगे। आसाराम के भक्तों ने तो उनके तथा उनके बलात्कारी पुत्र नारायण साईं को बलात्कार के आरोप में जेल भेजे जाने की कार्रवाई को ‘हिंदू धर्म का अपमान’ बताना शुरू कर दिया। देश के अनेक नेता तथा आला अधिकारी भी इन पाखंडी संतों के पक्ष में उतर आए।
इससे भी खतरनाक स्थिति उस समय पैदा हुई थी जब जनवरी 2018 में मुस्लिम समुदाय के बकरवाल समाज से संबंध रखने वाली एक आठ वर्षीय मासूम बच्ची के साथ कई दिनों तक लगातार सामूहिक बलात्कार किए जाने,बलात्कार के दौरान उसे एक धर्मस्थान में रखने,उसे बलात्कार के समय बेहोशी की दवा दिए जाने तथा बलात्कार में मंदिर के एक पुजारी,उसके पुत्र तथा एक पुलिस अधिकारी जैसे जि़ मेदार लोगों के शामिल होने की बात सामने आई थी। उस समय इस मामले ने इतना सांप्रदायिक रूप धारण कर लिया था कि देश के इतिहास में पहली बार बलात्कारियों के पक्ष में ज मू व कठुआ में सड़कों पर प्रदर्शन किए गए। ज मू-कश्मीर राज्य में भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन दो मंत्री प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे थे। अफसोसनाक बात तो यह कि बलात्कारियों के समर्थक प्रदर्शनकारियों ने ‘मंत्री महोदय’ की मौजूदगी में अपने हाथों में तिरंगा-झंडा ले रखा था।
कठुआ रेप कांड इसलिए और भी अधिक शर्मनाक हो गया था क्योंकि वहां के वकीलों ने बलात्कारियों के विरुद्ध पीडि़ता के पक्ष में मुकद्दमा लडऩे से ही इंकार कर दिया था। परिस्थितिवश सर्वोच्च न्यायालय ने कठुआ गैंगरेप का मुकद्दमा ज मु-कश्मीर से पंजाब की पठानकोट की अदालत में स्थानांतरित किया जहां पिछले दिनों इस मुकद्दमे के 6 बलात्कारी अभियुक्तों को सज़ा सुनाई गई इनमें मंदिर का पुजारी व पुलिस अधिकारी भी शामिल हैं।
सोचने का विषय है कि अदालत द्वारा कठुआ गैंगरेप के मु य अभियुक्तों को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाए जाने के बाद अब आखिर धर्म के आधार पर बलात्कारियों की पैरवी करने वालों तथा इस मामले को सांप्रदायिक रंग देने वालों के पास अपना मुंह छुपाने की क्या कोई जगह बची है? उधर दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के उन्नाव का भारतीय जनता पार्टी का विधायक कुलदीप सिंह सेंगर बलात्कार तथा हत्या के मामले में जेल काट रहा है। उसने किसी दूसरे धर्म की नहीं बल्कि अपने ही हिंदू धर्म की लड़की के साथ बलात्कार किया उसपर बलात्कार की शिकार लड़की के पिता की हत्या का भी आरोप है। पिछले दिनों कन्नौज से निर्वाचित धर्मगुरू रूपी सांसद साक्षी महाराज उस बलात्कारी विधायक से मुलाकात करने जेल जा पहुंचे।
बताया जाता है कि वे अपनी जीत में विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के सहयोग का धन्यवाद करने हेतु जेल तशरीफ ले गए थे। कल्पना कीजिए एक बाहुबली बलात्कारी विधायक तथा नवनिर्वाचित फायर ब्रांड हिंदूवादी सांसद के संयुक्त नेटवर्क की $खबरों से बलात्कार पीडि़ता अबला युवती पर मानसिक रूप से क्या प्रभाव पड़ रहा होगा? किसी धर्म का कोई ठेकेदार उस पीडि़ता को सांत्वना देने या धर्म के आधार पर उसके पक्ष में खड़े होने का साहस नहीं जुटा पाया।
वास्तव में बलात्कार सहित किसी भी जघन्य अपराध को धर्म-जाति या समुदाय के चश्मे से हरगिज़ नहीं देखा जाना चाहिए। अपराध किसी भी व्यक्ति की मानसिक मनोस्थिति का दर्पण है। और यह स्थिति मंत्री से लेकर संतरी तक,धर्मोपदेशक या पुजारी से लेकर मौलवी,मौलाना तक किसी में भी पैदा हो सकती है। हमारे तो शास्त्र भी इस बात के गवाह है कि बड़े-बड़े ऋषि-मुनि भी इस विषय पर अपना नियंत्रण खो बैठे थे। लिहाज़ा कोई भी व्यक्ति या संगठन किसी भी अपराध को धर्म या समुदाय के आधार पर देखने की कोशिश करता है और इसी आधार पर उसका पक्ष अथवा विरोध करता है तो जहां यह एक ओर सीधे तौर पर अपराध को बढ़ावा देना तथा अपराधी की हौसला अफज़ाई करना है वहीं पीडि़त परिवार के साथ भी यह बहुत बड़ा अन्याय है। अत: इस प्रकार की साजि़श में न तो शामिल होना चाहिए न ही ऐसे प्रयासों को सफल होने देना चाहिए। अपराधी किसी भी धर्म को हो उसे हर हाल में कड़ी से कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए।
:-निर्मल रानी