मंडला- आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले के आईएसओ सर्टिफाइड जिला चिकित्सालय का ब्लड बैंक पिछले 14 साल से बिना लायसेंस के चल रहा है। हमेशा विवादों के चलते सुर्खियां बटोरने वाले इस जिला चिकित्सालय में स्वास्थ सुविधाएं भगवान भरोसे तो हैं ही मगर खून जैसे संवेदनशील मामले में भी अस्पताल प्रबंधन का रवैया बड़ा ही असंवेदनशील है। असंवेदनशीलता का आलम यह है कि 2002 के बाद से जिला चिकित्सालय के ब्लड बैंक का लायसेंस का नवीनीकरण ही नहीं हुआ है, इसके बावजूद ये धड़ल्ले से चल रहा है। ब्लड बैंक को 1997 में लाइसेंस मिला था।
जिले के ड्रग इंस्पेक्टर योगेश यादव ने बताया कि अस्पताल प्रबंधन द्वारा ब्लड बैंक का लायसेंस रिन्यूवल के लिये गत वर्ष आवेदन किया गया था जिसके बाद अप्रैल 2015 में सेन्ट्रल ड्रग इंस्पेक्टर और स्टेट ड्रग विभाग की टीम ने ब्लड बैंक का ज्वाइंट इंस्पेक्शन किया था जिसमे 21 कमियां पायी गयी थी। इंस्पेक्शन टीम द्वारा बताई गई कमियों और अौपचारिकताओं आज तक पूरा नहीं किया गया है। खून जैसे गंभीर मामले में 21 कमियां अपने आपमें बड़ी खामी है। जो सरासर जिला चिकित्सालय की लापरवाही उजागर करती है।
ब्लड बैंक प्रभारी यू एल कुड़ापे का दावा है कि टीम द्वारा बताई गई सभी खामियों को दूर कर सूचित करने के साथ साथ चालान भी जमा कर दिया गया है। बावजूद इसके आज तक लायसेंस का नवीनीकरण नहीं किया गया है। ब्लड बैंक प्रभारी जानते है कि लायसेंस का नवीनीकरण न होने के बाद ब्लड बैंक संचालित करना नियम विरुद्ध है लेकिन मरीजों का ख्याल रखते हुए इसे संचालित करना उनकी मजबूरी भी है। उनका मानना है कि नियमों की जटिलता के चलते शासकीय प्रक्रिया में विलम्भ हो रहा है। हलाकि उन्हें उम्मीद है की ब्लड बैंक का नवीनीकरण जल्द हो जायेगा।
शासकीय प्रक्रियाओं की जटिलता से तो सभी वाकिफ है, साधारण से काम के लिए महीनों और सालों लगना आम बात है। लेकिन जब बात रक्त जैसे एहम चीज़ से जुडी हो और फिर भी 14 सालों से ब्लड बैंक को रिन्यूवल का इन्तिज़ार करना पड़े तो इससे लचर व्यवस्था का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।
रिपोर्ट:- @सैयद जावेद अली