नई दिल्लीः भारत दुनिया में हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार है। पिछले पांच साल के दौरान हथियारों की वैश्विक खरीद में भारत का हिस्सा 12 फीसदी है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) के मुताबिक ने इन आंकड़ों के साथ-साथ यह भी कहा है कि भारत हथियारों की अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए उत्पादन करने में खुद सक्षम नहीं है। इस सप्ताह जारी सिपरी की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का आयात 2008-12 की पांच साल की अवधि की तुलना में पिछले पांच साल 2013-17 के दौरान 24 फीसदी बढ़ा है।
सिपरी के वरिष्ठ शोधकर्ता सिमोन वीजीमैन ने लिखा है, “एक तरफ पाकिस्तान और दूसरी तरफ चीन के साथ तनावों में रहने के कारण भारत में प्रमुख हथियारों की मांग बढ़ गई है, जिसका वह खुद उत्पादन करने में सक्षम नहीं है।” उन्होंने कहा कि इसके उलट चीन हथियारों की अपनी की जरूरतों को पूरा करने में खुद सक्षम है। सिपरी के आंकड़ों के मुताबिक भारत का कुल रुझान-संकेतक मूल्य (टीआईवी)2008-12 के दौरान 14,608 था जो 2013-17 में बढ़कर 18,048 हो गया। भारत द्वारा हथियार खरीद हालांकि कांग्रेस नीत संप्रग सरकार के अंतिम तीन साल की तुलना में भाजपा सरकार के पिछले तीन साल के दौरान कम हुई है।
मनमोहन सिंह जब 2011-13 के दौरान प्रधानमंत्री थे, तब भारत ने 13,319 टीआईवी मूल्य के हथियारों का आयात किया था लेकिन 2015-17 के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अंतर्गत केवल 9,499 टीआईवी मूल्य के हथियार खरीदें गए। 2014 के दौरान जब दोनों नेता सत्ता में थे उस वक्त 3,227 टीआईवी मूल्य के हथियार खरीदे गए थे। भारत की परस्पर तुलना में पाकिस्तान का हथियार आयात पिछले पांच साल के दौरान लगातर घटा है। पिछले पांच साल की तुलना में पाकिस्तान का अमेरिका से आयात लगातार कम हुआ है जबकि चीन से उसकी आपूर्ति में वृद्धि हुई है।