नई दिल्ली- विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी एक रिपोर्ट में खुलासा किया है कि देश के 57 प्रतिशत से अधिक डॉक्टरों के पास मेडिकल डिग्री नहीं है। वहीं 31 फिसदी ऐसे डॉक्टर भी शामिल है जो खुद को एलोपैथिक डॉक्टर कहते है लेकिन क्वालिफिकेशन के मामले में वे सिर्फ 12 वीं तक शिक्षित है। और दुसरों का इलाज कर रहे है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण भारत में लोगों का इलाज कर रहे पांच में एक डॉक्टर ही इलाज के लिए उपयुक्त डिग्री या योग्यता रखता है। भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस रिपोर्ट पर कहा कि झोलाछाप डॉक्टरों पर कार्रवाई का जिम्मा राज्य की चिकित्सा परिषदों पर है और उन्हें ही उस पर कार्रवाई करनी चाहिए।
एमसीआई के अनुसार से देश में नौ लाख पंजीकृत डॉक्टर हैं। दिल्ली मेडिकल काउंसिल के डॉक्टर गिरीश त्यागी ने कहा कि पिछले साल 200 अपात्र मेडिकल प्रैक्टिशनर्स के खिलाफ उन्होंने केस दर्ज कराकर कार्रवाई की थी। राष्ट्रीय स्तर पर एलोपैथिक, आयुर्वेदिक, यूनानी और होम्योपैथिक डॉक्टरों का आंकड़ा एक लाख की आबादी पर 80 और नर्सों का 61रहा था।
सुप्रीम कोर्ट के हाल ही में जारी किए निर्णय के अनुसार, अन्य पद्धतियों से इलाज करने वाले एलोपैथिक दवाओं से उपचार नहीं कर सकते। हालांकि एमसीआई ने 57 फीसदी मेडिकल प्रैक्टिशनर्स के पास एमबीबीएस या बीडीएस की डिग्री न होने के आंकड़े की पुष्टि करने से इनकार किया है। उसका कहना है कि इस समयांतराल में स्थितियां काफी बदली हैं।
स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में वैश्विक लक्ष्यों को पाने की राह में स्वास्थ्य विशेषज्ञों की कमी बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। रिपोर्ट के अनुसार, देश वर्तमान स्थिति को देखते हुए सात लाख और डॉक्टरों की जरूरत है। लेकिन हर साल देश में सिर्फ 30 हजार डॉक्टर विश्वविद्यालयों से पढ़ाई पूरी कर बाहर आते हैं। इसकी भरपाई करना एक चिंता का विषय बना हुआ है। [एजेंसी]