राजनीतिक दल और उन्हें मददगार कॉरपोरेट घराने 20 हजार रुपये से ज्यादा की चंदा राशि पर पैन अनिवार्य करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अवहेलना कर रहे हैं। चुनाव में पारदर्शिता की लड़ाई लड़ रहे एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (एडीआर) की बृहस्पतिवार को जारी रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार 2012-13 से 2015-16 की चार साल की अवधि में भाजपा और कांग्रेस सहित पांच राजनीतिक दलों को कॉरपोरेट स्रोतों से 956.77 करोड़ रुपये का चंदा मिला, लेकिन इसमें से 729 करोड़ रुपये बिना पैन और पते के थे। इनमें से भी 159.59 करोड़ रुपये के चंदे में न तो पैन था और न ही पता। इस तरह के चंदे का 99 फीसदी भाजपा के खाते में गया है।
इस अवधि में राजनीतिक दलों में सबसे ज्यादा चंदा भाजपा को मिला। पार्टी को 2987 दानकर्ताओं से 705.81 करोड़, कांग्रेस को 167 दानकर्ताओं से 198.16 करोड़ रुपये का चंदा मिला। पार्टियों को सबसे ज्यादा चंदा 2014-15 में मिला, जिस साल लोकसभा के चुनाव हुए थे। चार साल के कुल कॉरपोरेट चंदे की 60 फीसदी राशि इसी एक साल में मिली।
सबसे ज्यादा चंदा किसने दिया
राजनीतिक दलों को चंदा देने में रियल एस्टेट, ट्रस्ट और समूह कंपनियां सबसे आगे हैं। इस अवधि में सबसे ज्यादा 260.87 करोड़ रुपये का चंदा सत्य इलेक्टोरल ट्रस्ट ने दिए हैं। इसमें से भाजपा को 193.62 और कांग्रेस को 57.25 करोड़ हासिल हुए।जनरल इलेक्टोरल ट्रस्ट दूसरे नंबर पर है। उसने दोनों पार्टियों को 124 करोड़ रुपये का चंदा दिया। दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों भाकपा और माकपा को सबसे ज्यादा चंदा संगठनों और यूनियनों से प्राप्त हुए।
दिन-दूनी, रात-चौगुनी वृद्धि
इससे पहले एडीआर ने 2004-05 से 2011-12 तक आठ साल के लिए राजनीतिक चंदे की रिपोर्ट जारी की थी। उसमें राष्ट्रीय दलों को कुल 378.89 करोड़ रुपये का चंदा मिला था, जबकि इसके बाद से चार वर्षों में यह बढ़कर 956.77 करोड़ रुपये हो गई।