नई दिल्ली: दशहरा के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर स्थित संघ मुख्यालय में लोगों को संबोधित किया। मोहन भागवत ने ने देश में हिंदू मंदिरों की व्यवस्था, चल/अचल संपत्ति, नियंत्रण समेत इससे जुड़े विभिन्न मुद्दों पर विस्तृत रूप से अपनी राय रखी। मोहन भागवत ने कहा कि हिंदू मंदिरों की आज की स्थिति को लेकर कई तरह के प्रश्न है। उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत के मन्दिर पूर्णतः वहां की सरकारों के अधीन हैं। शेष भारत में कुछ सरकार के पास, कुछ पारिवारिक निजी स्वामित्व में, कुछ समाज के द्वारा विधिवत स्थापित विश्वस्त न्यासों की व्यवस्था में हैं। उन्होंने कहा कि जिनकी मंदिरों में आस्था नहीं है उन लोगों पर भी मंदिरों का धन खर्च हो रहा है।
मंदिरों पर सरकार का नियंत्रण
उन्होंने कहा कि कई मंदिरों की कोई व्यवस्था ही नहीं दिखती है। मन्दिरों की चल/अचल सम्पत्ति का अपहार होने की कई घटनाएं सामने आयी हैं। प्रत्येक मन्दिर और उसमें प्रतिष्ठित देवता के लिए पूजा इत्यादि विधान की परंपराएं तथा शास्त्र अलग-अलग विशिष्ट है। उसमें भी दखल देने के मामले सामने आते हैं। भगवान का दर्शन, उसकी पूजा करना, जात-पात पंथ न देखते हुए सभी श्रद्धालु भक्तों के लिये सुलभ हों, ऐसा सभी मन्दिरों में नहीं है, यह होना चाहिये। मन्दिरों के, धार्मिक आचार के मामलों में शास्त्र के ज्ञाता विद्वान, धर्माचार्य, हिन्दू समाज की श्रद्धा आदि का विचार लिए बिना ही निर्णय किया जाता है ये सारी परिस्थितियां सबके सामने हैं।
हिंदू मंदिरों का उपयोग हिंदुओं के कल्याण के लिए हो- भागवत
संघ प्रमुख ने कहा कि सेक्युलर होकर भी केवल हिन्दू धर्मस्थानों को व्यवस्था के नाम पर दशकों शतकों तक हड़प लेना, अभक्त/अधर्मी/विधर्मी के हाथों उनका संचालन करवाना आदि अन्याय दूर हों, हिन्दू मन्दिरों का संचालन हिन्दू भक्तों के ही हाथों में रहे तथा हिन्दू मन्दिरों की सम्पत्ति का विनियोग भगवान की पूजा तथा हिन्दू समाज की सेवा तथा कल्याण के लिए ही हो, यह भी उचित व आवश्यक है। इस विचार के साथ साथ ही हिन्दू समाज के मन्दिरों का सुयोग्य व्यवस्थापन तथा संचालन करते हुए, मन्दिर फिरसे समाजजीवन के और संस्कृति के केन्द्र बनाने वाली रचना हिन्दू समाज के बल पर कैसी बनायी जा सकती है, इसकी भी योजना आवश्यक है।
देवस्थानम बोर्ड करता रहा है पहले से मांग
आरएसएस चीफ मोहन भागवत के विचार सुनने बाद अब उन संगठनों को बल मिलेगा जो काफी पहले से ही हिंदू मंदिरों से सरकार का अधिकार हटाने की मांग कर रहे हैं। कुछ दिन पहले ही राम मंदिर के बाद अब विश्व हिंदू परिषद (विहिप) देशभर के मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने को लेकर उच्चस्तरीय समिति गठित की है। इसके अलावा उत्तराखंड के देवस्थानम बोर्ड का मामला भी विवादों में रहा। बाद में उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने ऐलान किय था कि देवस्थानम बोर्ड में शामिल किए गए बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री सहित 51 मंदिरों को बोर्ड के नियंत्रण से मुक्त किया जाएगा।
दक्षिण भारत के ज्यादातर मंदिरों पर सरकार का नियंत्रण
मोहन भागवत ने कहा कि दक्षिण भारत में बहुत सारे मंदिर हैं और वहां के मंदिरों मतमिलनाडु विधानसभा चुनाव के दौरान सदगुरु जग्गी वासुदेव ने लोगों से निवेदन किया कि वे वोट मांगने वालों से मंदिरों को राजकीय चंगुल से मुक्त कराने का वचन लें। इसी तरह अपवर्ड, जयपुर डायलॉग्स जैसे कुछ शैक्षिक-वैचारिक मंच भी इसके लिए जन-जागरण चला रहे हैं। इस बीच भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कई मंदिरों के लिए केंद्रीय बोर्ड बनाने की भी बात छेड़ी है यानी मंदिरों को अप्रत्यक्ष सरकारी नियंत्रण में लेने का प्रस्ताव। इस पर तीखी प्रतिक्रियाएं हुई हैं।
आतंकवाद, अर्थव्यस्था, सोशल मीडिया पर बोले संघ प्रमुख
इस दौरान मोहन भागवत ने देश के अहम मसले पर अपनी बात रखी। संघ प्रमुख ने चीन, पाकिस्तान, आतंकवाद, अर्थव्यस्था, सोशल मीडिया, ओटीटी प्लेटफॉर्म सहित तमाम मुद्दों पर राय दी। इस दौरान मोहन भागवत ने मंदिरों को सरकार से मुक्त करने की बात भी कह डाली। अभी तक देश के तमाम संगठन इसकी मांग करते रहे हैं मगर अब संघ का भी उनको समर्थन हासिल हो गया है।