आरएसएस के 90वें स्थापना दिवस के अवसर पर महाराष्ट्र के नागपुर शहर के रश्मिबाग में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने देश की वर्तमान सरकार के कामकाजों की प्रशंसा के साथ ही देश की शिक्षा व्यवस्था में सुधार के साथ ही मध्य भारत प्रांत के 9000 गांवों में आज भी 40 प्रतिशत गांवों में मंदिर, 30 प्रतिशत गांवों में पानी व 35 प्रतिशत गांवों में पानी को लेकर जातिगत भेदभाव होने की बात कही। माननीय भागवत जी ने कहा कि शासन प्रशासन के साथ ही समाज हितैषी सभी व्यक्तियों, संस्थाओं को भी अधिक सक्रिय होकर इस दिशा में काम करना होगा।
श्री भागवत ने यह भी कहा कि वर्ष भर जो परिस्थिति व घटनाक्रम हम अनुभव करते आ रहे है उसका अगर सुक्ष्म विश्लेषण करें तो हमें चारों महापुरुषों, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, आचार्य श्री अभिनव गुप्त, दक्षिण के प्रसिद्ध संत स्व. श्री भाव्यकार, स्व. श्री रामानुजाचार्य के संदेशों के अनुसरण का महात्व ध्यान में आता है। उन्होंने राष्ट्र के संबंध में कहा कि कार्य की गति बढ़ाने की गुंजाईश है और कई बातों का होना अपेक्षित है। विगत दो वर्षों में देश में व्याप्त निराशा दूर करने वाली विश्वास बढ़ाने वाली, विकास के पथ पर देश को अग्रसर करने वाली नीतियों के कारण कुल मिलाकर देश आगे बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है।
यह भी स्पष्ट है हमने अपनायी हुई प्रजातांत्रिक प्रणाली में कुछ अपेक्षित भी है। संघ प्रमुख ने विपक्ष पर प्रहार कर कहा कि जो दल सत्ता से वंचित रहते है वे विरोधी दल बनकर शासन प्रशासन की कमियों को ही अधो रेखांकित कर अपने दल के प्रभाव को बढ़ाने वाली राजनीति कर रहे है। करना भी चाहिए इसी मंथन में से देश के प्रगति की सहमति एवं उसके लिए चलने वाली नीतियों की समीक्षा, सुधार व सजग निगरानी होते रहना प्रजातंत्र में अपेक्षित रहता है। परंतु साल भर में जो हालात दिख रहे है वह चिंताजनक है। कश्मीर घाटी में चलने वाले उपद्रवों पर भी संघ प्रमुख ने चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा सीमा पार से ऐसे उपद्रवों को उकसाने, हवा देने के लिए सतत चलने वाली कुचेष्टा इस प्रकार की घटना की मुख्य वजह है। उरी की घटना के जवाब में की गई सैन्य कार्यवाही की प्रशंसा करते हुए श्री भागवत ने कहा कि हमारी सेना ने दृढ़तापूर्वक तथा कुशलता पूर्वक अपने शासन के नेतृत्व में काम किया है।
इस उपलब्धि पूर्वक कार्य के लिए शासन और सभी सेना दलों का हार्दिक अभिनंदन साथ ही उन्होंने कहा कि भविष्य में भी ऐसी दृढ़ता तथा राजनयिक व सामरिक कुशलता हमारी नीति में स्थायी है। समूचे सागरी, भू-सीमा प्रदेशों में इस दृष्टि से कड़ी निगरानी रखते हुए शासन, प्रशासन और समाज के परस्पर सहयोग से अवांछित गतिविधियों को जड़मूल से खत्म करने की बात कही।
संघ प्रमुख ने अपने उद्बोधन में देशी गाय के रक्षण संवर्धन की बात कही। श्री भागवत ने कहा कि गौरक्षकों की तुलना उन अवसरवादी लोगों से नहीं की जा सकती जो अपने लाभ के लिए समाज में बिना कारण कलह खड़ा करना एवं गौ सेवा के पवित्र कार्य को लांछित व उपहासित करने के लिए षडय़ंत्र रचते है। आधुनिक विज्ञान के प्रमाण देशी गाय की उपयुक्तता व श्रेष्ठता को सिद्ध कर चुके हैं. अनेक राज्यों में गोहत्या प्रतिबंधक कानून तथा पशुओं के प्रति क्रूरता प्रतिबंधक कानून बने हैं। उनका ठीक से अमल हो, इसके लिये भी कभी-कभी व कहीं-कहीं गौसेवकों को अभियान करना पड़ता है।
संघ प्रमुख ने अपने उद्बोधन में शिक्षा व्यवस्था पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि अनेक वर्षों से देश की शिक्षा व्यवस्था जिसमें देश व समाज के साथ एकात्म, समक्ष व दायित्वान मनुष्यों का निर्माण होना चाहिए इस दिश में वर्तमान सरकार ने कार्य करना प्रारंभ कर दिया है। शिक्षित व्यक्ति रोजगार योग्य हों, स्वावलंबी, स्वाभिमानी बन सकें व जीवनयापन के संबंध में उनके मन में आत्मविश्वास हो। वह ज्ञानी बनने, सुविद्य बनने के साथ-साथ दायित्वबोधयुक्त समंजस नागरिक तथा मूल्यों का निर्वहन करने वाला अच्छा मनुष्य बने। शिक्षा की व्यवस्था इस उद्देश्य को साकार करने वाली हो। पाठ्यक्रम इन्हीं बातों की शिक्षा देने वाला हो। शिक्षकों का प्रशिक्षण व योगक्षेम की चिन्ता इस प्रकार हो कि विद्यादान के इस व्रत को निभाने के लिये वे योग्य व समर्थ हों। शासन व समाज दोनों का सहभाग शिक्षा क्षेत्र में हो तथा दोनों मिलकर शिक्षा का व्यापारीकरण न होने दें। नयी सरकार आने के बाद इस दिशा में एक समिति बनाकर प्रयास किया गया, उसका प्रतिवेदन भी आ गया है।
हमारी संस्कृति की रक्षा में त्योहारों का महत्वपूर्ण योगदान है श्री भागवत ने कहा कि समाज में चलने वाले अनेक उपक्रम, पर्व, त्यौहार, अभियान का प्रारंभ समाज प्रबोधन व संस्कार की शाश्वत आवश्यकता को ध्यान में लेकर उस प्रयोजन का विस्मरण हुआ तो उसका स्वरूप कभी कभी भद्दा निरर्थक बन समता है। प्रयोजन ध्यान में लेकर इन पर्वों के सामाजिक स्तर पर आयोजन का काल सुसंगत रूप गढ़ता रहना चाहिए तो आज भी वह समाज प्रबोधन का अच्छा साधन बन सकता है।
देश की व्यवस्था के नाते हमने अपने संविधान में संघराज्यीय कार्यप्रणाली को स्वीकार किया है। ससम्मान व प्रामाणिकता पूर्वक उसका निर्वाह करते समय हम सभी को, विशेषकर विभिन्न दलों द्वारा राजनीतिक नेतृत्व करने वालों को यह निरन्तर स्मरण रखना पड़ेगा कि व्यवस्था कोई व कैसी भी हो, संपूर्ण भारत युगों से अपने जन की सभी विविधताओं सहित एक जन, एक देश, एक राष्ट्र रहा है, तथा आगे उसको वैसे ही रहना है, रखना है। मन, वचन, कर्म से हमारा व्यवहार उस एकता को पुष्ट करने वाला होना चाहिये, न कि दुर्बल करने वाला। समाज जीवन के विभिन्न अंगों में नेतृत्व करने वाले सभी को इस दायित्वबोध का परिचय देते चलने का अनुशासन दिखाना ही पड़ेगा। साथ-साथ समाज को भी ऐसे ही दायित्वपूर्ण व्यवहार को सिखाने वाली व्यवस्थाएं बनानी पड़ेंगी।
लेखक: कृष्णमोहन झा
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और आईएफडब्ल्यूजे के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं)