खबर है कि मुस्लिम राष्ट्रीय मंच इस साल दो जुलाई को एक बड़ी इफ्तार पार्टी आयोजित करने वाला है। इस पार्टी में देश के प्रमुख मुसलमान नेताओं के अलावा सभी मुस्लिम देशों के राजदूतों को भी दावत दी जा रही है, पाकिस्तानी राजदूत को भी। यह छोटी-मोटी खबर नहीं है। बड़ी खबर है।
यह बड़ी खबर इसलिए है कि मुस्लिम राष्ट्रीय मंच, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की प्रमुख शाखा है। इस मंच की स्थापना तत्कालीन सर संघ-चालक कुप्प सी. सुदर्शन ने की थी। वे यह महसूस करते थे कि संघ और मुसलमानों के बीच जो बड़ी दीवार खड़ी हो गई है, उसे किसी तरह तोड़ना चाहिए।
कु सी सुदर्शन को इस्लाम के बारे में जितना ज्ञान था, उतना आमतौर से मुस्लिम नेताओं को भी नहीं था। उन्होंने इस्लाम पर लगभग हर किताब पढ़ डाली थी। सर संघचालक बनने के बाद भी वे मेरे संन्यासी पिता से किताबें मंगवाते रहते थे। संघ-प्रमुख के तौर पर यह उनका अनुपम योगदान माना जाएगा कि उन्होंने मुसलमानों को संघ से जोड़ा और संघ को मुसलमानों से! आपात्काल के दिनों में जो मुसलमान नेता उनके साथ जेल में रहे, उन्होंने इस प्रक्रिया को मजबूत बनाया।
इस मुस्लिम मंच का काम स्वयंसेवक इंद्रेशकुमार ने संभाला और उन्होंने इसमें चार चांद लगा दिए। उनके सहज और आकर्षक व्यक्तित्व ने हजारों मुसलमान भाई-बहनों को इस मंच के साथ सक्रिय कर दिया। उन्होंने गोवध का खुला विरोध किया और वंदेमातरम का डटकर समर्थन किया। उनकी महिला शाखा आजकल ‘तिहरे तलाक’ के विरोध में आवाज बुलंद कर रही है। यह मंच मुसलमानों को इस्लाम का दृढ़तापूर्वक पालन करने को कहता है लेकिन उन्हें यह सांप्रदायिक और अराष्ट्रीय तत्वों से बचने की प्रेरणा देता है।
सबसे बड़ी बात यह है कि देश की जिन दो शक्तियों के बीच 36 का आंकड़ा था, अब 63 का हो रहा है। दोनों एक-दूसरे के लिए धीरे-धीरे नरम पड़ेंगे। कोई आश्चर्य नहीं कि किसी दिन संघ के दरवाजे भी हर भारतीय के लिए खुल जाएं। इस्लाम का भी जो गौरवशाली भारतीय रुप है, वह सारे विश्व के इस्लाम का मार्गदर्शन करेगा। कु सी सुदर्शन के द्वारा लगाई गई यह सद्भाव की बेल यदि फलती-फूलती रही तो मानकर चलिए कि कुछ ही दशकों में भारत के इतिहास का एक नया अध्याय शुरु होगा।
लेखक :- @वेद प्रताप वैदिक