दमोह- सुरक्षा के भाव में जब धीरे-धीरे एक भाव का प्रवेश होता है,समाज जब यह सोचने लगता है कि हम सुरक्षित हो गये तो फिर एकता का सूत्र कमजोर पडने लगता है ! इसलिये हम सबको यह प्रयास करना है कि एकता का भाव कमजोर न पडने पाये यह बात महाकौशल प्रांत के परिवार प्रबोधन प्रमुख चिंतामणी जी ने कही।
इन्होने कहा कि वर्तमान परिस्थिति में यह आवश्यक प्रतीत होता है हमें जहां एक ओर संगठन के कार्य को तीव्र गति देने की आवश्यकता है तो वहीं दूसरी ओर एकता के भाव को अधिक से अधिक प्रबल बनाने की।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गुणात्मक पथ संचलन में सहभागिता करने वाले स्वयंसेवकों एवं गणमान्य नागरिकों को संबोधित करते हुये चिंतामणी जी ने कहा कि इंद्र धनुष सात रंगों से बना हुआ है लेकिन आसमान का सफेद रंग सामाजिक स्वरूप को दर्शाता है। सामाजिक जीवन की अनुभूति समाज के प्रत्येक अंग को होना चाहिये,हमारी पूजन,विवाह पद्धति एवं त्यौहार अलग हो सकते हैं परन्तु उसमें भगवान सूर्य की तरह एकता रंग विद्यमान होता है।
इन्होने कहा कि समाज के अंदर एक जंजीर है उसकी कोई कमजोर कडी है तो उसकी सारी शक्ति उस कमजोर कडी में निहित होती है। इस कमजोर कडी को मजबूत बनाना हमारा लक्ष्य होना चाहिये। इस अवसर पर आदि शंकराचार्य के द्वारा स्थापित किये गये चार मठों का सामाज को एकसूत्र में बांधना प्रमुख उद्देश्य बतलाया।
इन्होने कहा कि आदि शंकराचार्य जी ने चंडाल को भी गुरू बनाया था तो वहीं रामानुजाचार्य तो स्वयं जब स्नान करने जाते थे तो दो चंडालों के कंधों पर हाथ रखकर और आते थे तो दो अछुतों के कंधों का सहारा लेकर उन्होने सामाजिक समरसता का एक बडा संदेश दिया है। इस अवसर पर इन्होने राष्ट्र विरोधी ताकतों के कारनामों एवं उनके उद्ेश्यों को विस्तार से रखते हुये सचेत रहने का संदेश भी दिया। इस अवसर मंच पर जिला संघ चालक किशन जी साहू,विभाग कार्यवाह रामलाल जी पटैल भी उपस्थित थे।
घोष की धुन पर कदमताल-
घोष की धुन पर बडी संख्या में स्वयंसेवकों ने पूर्ण गणवेश में कदमताल करते हुये पथ संचलन किया। स्थानीय शासकीय महारानी लक्ष्मीबाई विद्यालय के प्रांगण से निर्धारित समय प्रात:ग्यारह बजे प्रारंभ हुआ पथ संचलन घंटाघर,अंबेडकर चौक,बैंक चौराहा,बस स्टेण्ड,स्टेशन चौराहा,राय तिराहा,पलंदी चौक,घंटाघर होते हुये वापिस अपने उदगम स्थल पर पहुंचा। सम्पूर्ण मार्ग में जगह-जगह पुष्प बर्षा कर स्वागत किया गया।
रिपोर्ट- डॉ. लक्ष्मीनारायण वैष्णव