नई दिल्ली: अयोध्या में जिस तरह से विश्व हिंदू परिषद ने धर्मसभा का आयोजन किया था और बड़ी संख्या में साधू-ंसंत और लोग लोग इकट्ठा हुए थे, उसके बाद माना जा रहा था कि भाजपा को राम मंदिर के साथ अन्य मुद्दों पर साधु-संतों का समर्थन मिल सकता है। लेकिन वाराणसी में तीन दिन तक चली धर्म संसद ने इससे उलट मोदी और योगी पर भगवान राम का अपमान करने का आरोप लगाया है। संतों ने आरोप लगाया है कि मोदी सरकार और योगी सरकार भगवान राम का अपमान कर रही है। वहीं अयोध्या में विहिप द्वारा आयोजित धर्म सभा को लेकर साधुओं में काफी नाराजगी है। साधुओ ने इस धर्मसभा को अधर्म सभा करार दिया है। दूसरी तरफ जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर -बाबरी मस्जिद विवाद की सुनवाई को टाल दिया है उसकी भी धर्म संसद ने आलोचना की है।
गौर करने वाली बात है कि योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में भगवान राम की 221 मीटर ऊंची मूर्ति लगवाने का फैसला लिया है, जिसके बाद साधुओं ने योगी सरकार के इस फैसले की आलोचना की है। साधुओं का कहना है कि ऐसा लगता है कि भगवान राम और सरदार पटेल के बीच होड़ पैदा की जा रही है। साधुओं ने योगी सरकार के फैसले पर नाराजगी जताते हुए कहा कि भगवान राम और सरदार पटेल के बीच होड़ कतई उचित नहीं है।
वाराणसी की धर्म संसद में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि भगवान राम की 221 मीटर ऊंची मूर्ति भगवान का अपमान है। उन्होंने कहा कि पक्षी और जीव-जंतु खुले में लगी मूर्ति के आसपास घूमेंगे, जिससे इसपर गंदगी फैलेगी। भगवान की मूर्ति को सिर्फ मंदिर में रखा जा सकता है जोकि चारो ओर से घिरी हुई होनी चाहिए। वाराणसी में हुई इस धर्म संसद का आयोजन ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने कराया था।
स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा कि भाजपा सरकार भगवान राम को सरदार बल्लभ भाई पटेल के साथ प्रतिस्पर्धा में उतारना चाहती है, पटेल ने कुछ सूबों को एक कराया था, जबकि भगवान राम पूरे ब्रह्मांड के स्वामी हैं। उन्होंने कहा कि भगवान राम कोई राजनेता नहीं थे, लिहाजा हिंदुओं को उनकी मूर्ति की जरूरत नहीं है। शंकराचार्य ने कहा कि मोदी और योगी हिंदू धर्म को सांप्रदायिक ताकत में बदलने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि राम की मूर्ति लगाने का फैसला हिंदू विरोधी है।