नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और जम्मू-कश्मीर सरकार से यह तय करने को कहा है कि क्या राज्य में हिंदू और अन्य गैर मुस्लिम समुदाय अल्पसंख्यकों की श्रेणी में आते हैं।
क्या इसके तहत उन्हें आरक्षण के फायदे दिए जा सकते हैं। चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली बेंच ने सोमवार (27 मार्च) को यह बात रिकॉर्ड में ली कि केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारी एकसाथ बैठकर जम्मू-कश्मीर में अल्पंसख्यकों को होने वाली परेशानियों पर विचार करने और चार सप्ताह में प्रस्ताव देने को सहमत है।
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इस संबंध में जम्मू के वकील एडवोकेट अंकुर शर्मा ने जनहित याचिका दायर की थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि जम्मू-कश्मीर में अल्पसंख्यकों को मिलने वाले फायदे मुसलमान ले रहे हैं जो कि यहां पर बहुसंख्यक हैं। याचिका में दावा किया गया कि धार्मिक और भाषा के आधार वाले अल्पसंख्यकों के अधिकारों को अवैध और तानाशाही वाले तरीके से खत्म किया जा रहा है। यह फायदे अयोग्य वर्ग को दिए जा रहे हैं।
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सुनवार्इ के दौरान केंद्र की ओर से पेश हुए एडिशनल सॉलिशीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि एक समुदाय जो कि बहुसंख्यक है लेकिन किसी जगह वह अल्पसंख्यक है तो उनसे जुड़े मुद्दों की जांच के लिए केंद्रीय कानून मंत्रालय काम कर रहा है। इस पर कोर्ट की बेंच ने कहा, ‘हम इस बात की तारीफ करते हैं कि यह काफी महत्वपूर्ण मसला है।
जिस तरह से अल्पसंख्यक दर्जा दिया गया है तो उसे ध्यान में रखना होगा। यदि किसी समुदाय को कोई सुरक्षा दी गई है तो फिर इस तरह की सुरक्षा को लागू करने के लिए आपसे बेहतर स्थिति में कौन हैं।’
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राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि उन्होंने जम्मू कश्मीर सरकार को सभी समुदायों को समान सुरक्षा प्रदान करने की सलाह दी है। उन्होंने कहा, ‘यदि किसी समुदाय को सुरक्षित करना है तो राज्य अल्पसंख्यक आयोग रखना जरूरी नहीं है। एक राज्य की जिम्मेदारी है कि वह अपने अल्पसंख्यक समुदाय की सुरक्षा करे। यदि आपका समाज समावेशित है तो आपको आयोग या आदेशों की जरुरत नहीं। मैंने राज्य सरकार से कहा है कि इस मामले को प्राथमिकता के आधार पर लें और केंद्र सरकार के साथ मिलकर काम करें।’
सुप्रीम कोर्ट के जजों ने मेहता और सुब्रमण्यम की ओर से दिए दस्तावेजों की प्रशंसा की और दोनों सरकारों को प्रस्ताव बनाने व पेश करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया।