लखनऊ : नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) के विरोध में घंटाघर पर शुक्रवार से चल रहे महिलाओं के प्रदर्शन का दायरा बढ़ता जा रहा है। जहां प्रशासन को उम्मीद थी कि सोमवार को सप्ताह का पहला दिन होने की वजह से महिलाएं वापस लौट सकती हैं, वहीं जमीनी हकीकत कुछ और ही देखने को मिली। सोमवार सुबह भी महिलाएं धरने पर बैठी रहीं। हैरान करने वाली बात तो यह है कि कमिश्नरेट सिस्टम लागू होने के बाद पहली बार लखनऊ में शनिवार को ही धारा 144 लगाई गई है, बावजूद इसके घंटाघर पर रविवार को लगातार नेताओं का आना-जाना लगा रहा।
इससे पहले रविवार को कई इलाकों से महिलाएं और बच्चे प्रदर्शन में शामिल होने पहुंचे। रविवार की छुट्टी के कारण स्कूली छात्राएं भी यहां पहुंची। वहीं, पुलिस ने पूरे इलाके में छावनी में तब्दील रखा। इस दौरान कुछ महिला प्रदर्शनकारियों ने महिला पुलिसकर्मियों को गुलाब के फूल दिए। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि वे ऐसा इसलिए कर रही हैं, ताकि पुलिस-प्रशासन को यह पता चले कि उनका प्रदर्शन शांतिपूर्ण है।
घंटाघर पर रविवार को भले ही प्रदर्शनकारी महिलाओं की संख्या ज्यादा रही, लेकिन उनसे कहीं ज्यादा पुलिसवाले नजर आए। यहां शनिवार रात पीएसी और आरएएफ बल भी तैनात कर दिया गया। इसके लिए बाहर से भी पुलिस बल बुलाना पड़ा।
प्रदर्शन कर रहीं महिलाओं ने अपनी सुरक्षा के लिए चारों तरफ रस्सियां बांध रखी थीं। इसके आगे किसी पुरुष को जाने की अनुमति नहीं थी। इस बीच रविवार रात पुलिस ने रस्सियां हटा दीं। महिलाओं ने इसका विरोध भी किया, लेकिन पुलिस ने नहीं सुना। इसके बाद महिलाओं ने चारों तरफ घेरा बनाया और नारे लगाने शुरू कर दिए।
रिहाई मंच के अध्यक्ष मो. शोएब रविवार को जिला जेल से जमानत पर रिहा होने के बाद सीधे घंटाघर पहुंचे। एक माह जेल में गुजारने के बाद बाहर आए शोएब ने कहा कि वे आगे भी सीएए के खिलाफ संवैधानिक तौर पर जंग जारी रखेंगे। शोएब ने बताया कि पुलिस ने उन्हें 18 दिसंबर को हाउस अरेस्ट कर लिया था। अगले दिन शहर में हिंसक प्रदर्शन हुए, तब वह अपने घर पर थे। इसके बावजूद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। शोएब ने आरोप लगाया कि हजरतगंज कोतवाली में पुलिस ने उनके साथ दुर्व्यवहार करने के साथ पूरे परिवार को बर्बाद करने की भी धमकी दी थी।