सिवनी : सिवनी के बाज़ार में ब्रांडेड ऑईल के बदले नकली तेल की पैकिंग की खबरें वाकई चिंता का कारण बनती जा रही हैं। कहा जा रहा है कि टैंकर्स के जरिये तेल सिवनी पहुंच रहा है और फिर उसे चुनिंदा कंपनियों के पांच से लेकर पंद्रह लिटर तक के डिब्बों में पैक कर बेचा जा रहा है। यह स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ ही माना जा सकता है।
पिछले साल पड़ोसी जिले छिंदवाड़ा में अनेक व्यवसायियों के पास से नकली तेल जप्त किया गया था। इस आशंका को निराधार कतई नहीं माना जा सकता है कि सिवनी में भी छिंदवाड़ा के मानिंद ही तेल की पैकिंग हो रही हो। पिछले साल ही लखनादौन में एक व्यवसायी के प्रतिष्ठान से बड़ी तादाद में तेल और कंटेनर्स जप्त किये गये थे।
देखा जाये तो इस तरह से तेल का व्यवसाय करने वाले लोग तो मोटा माल काटते हैं पर इससे सरकारी राजस्व को करों की जो चोट लगती है उसकी भरपाई शायद नहीं हो पाती हो। हो सकता है कि इसके लिये व्यवसायियों द्वारा खाद्य, औषधि प्रशासन आदि जिम्मेदार विभागों को लक्ष्मी आदि के जरिये साध लिया जाता हो किन्तु व्यवसायी यह भूल जाते हैं कि इस तरह के अपमिश्रित तेल से लोगों के स्वास्थ्य प्रर कितना प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
चर्चाओं पर अगर यकीन किया जाये तो बुधवारी बाज़ार, गंज, शंकर मढ़िया सहित अनेक स्थानों पर ब्रांडेड कंपनियों के पांच से पंद्रह लिटर के कंटेनर्स में नकली अपमिश्रित तेल को पैक कर उसमें बाकायदा कंपनी की सील लगा दी जाती है। यह तेल नागपुर के जरिये सिवनी पहुंच रहा है। यह बात कितनी सच है यह तो कहा नहीं जा सकता है कि पर अगर कहीं धुंआ दिख रहा है तो कहीं न कहीं आग अवश्य ही लगी होगी।
यक्ष प्रश्न तो यह है कि नागपुर से सिवनी आते वक्त इन टैंकर्स को खवासा एवं मेटेवानी की विक्रय कर, पुलिस, परिवहन विभाग, मण्डी आदि की जांच चौकियों पर से होकर गुज़रना होता होगा। अगर ये खबरें सही हैं तो आम जनता अंदाज़ा लगा सकती है कि प्रदेश के सरकारी सिस्टम में किस तरह घुन लग चुका है कि एक दो नहीं आधा दर्ज़न विभागों की आँखों में कथित तौर पर धूल झोंककर व्यवसायियों द्वारा इस तरह के कार्य को अंज़ाम दिया जा रहा है।
अगर इन बातों में दम नहीं है तो खाद्य एवं औषधी प्रशासन ही अपना पक्ष स्पष्ट कर जनसंपर्क विभाग के माध्यम से इस बात को सार्वजनिक करे कि पिछले एक वर्ष में उसके द्वारा कितनी ब्रांडेड कंपनियों के तेल के कंटेनर्स को सील कर परीक्षण के लिये प्रयोग शाला में भेजा गया है? जाहिर है इस सवाल के जवाब में फूड एण्ड ड्रग्स डिपार्टमेंट को पसीना आ जायेगा।
संवेदनशील जिला कलेक्टर धनराजू एस. से अपेक्षा ही की जा सकती है कि इस दिशा में संज्ञान लेकर संबंधित महकमों को निर्देशित करें कि वे समय सीमा में सैंपल लेकर, छापेमारी कर इस तरह के घिनौने काम को रूकवायें। रिपोर्ट @ शरद खरे