खंडवा [ TNN ] “गोवर्धन पूजा” की परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है। श्रीमद भागवत पुराण के अनुसार भगवान कृष्ण ने ब्रज में इंद्र की पूजा के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा आरंभ करवाई थी। गोवर्धन पूजा वाले दिन गाय के गोबर से गोवर्धननाथ जी की छवि बनाकर उनका पूजन किया जाता है तथा अन्नकूट का भोग लगाया जाता है। आज का दिन गौ दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार आज के दिन गाय की सेवा करने से कल्याण होता है। आज हम आपको मिलवाने जा रहे है एक ऐसे गौ सेवक से जो वर्षभर गाय की सेवा करते है जिन्होंने अपनी पालतू गायों के लिए सुख -सुविधा के आधुनिक प्रबंध कर रखे है।
मौसम की मार से बचाने लिए टीन शेड उसमे लगा है सीलिंग फैन जो चौबीसों घंटे हवा देता है इतना ही नहीं यहां लगे साउंड सिस्टम पर हमेशा भक्ति भरा सुमधुर संगीत सुनाई देता है यह व्यवस्था की गई है पालतू गायों के लिए। यहां पालतू गाय को प्रतिदिन सुबह -शाम शेम्पू से नहलाया जाने के बाद उसकी पुंछ खुशबूदार इत्र लगाया जाता है । इतना ही नहीं सख्त जमीन पर स्पेशल रबर शीट बिछाई गई है जिस पर बैठने से गाय को आराम मिलता है। खंडवा के परदेशीपुरा में भागचंद अग्रवाल के निवास स्थल परिसर में गायों के लिए किये गए सुख-सुविधा के साधनो को देखकर यहां से गुजरने वाले अक्सर कुछ देर के लिए ठहर जाते है।
आज गोवर्धनपूजा का दिन गौ दिवस के रूप में भी मनाया जाता है आज के दिन गौ पूजन का विशेष महत्व है ऐसी मान्यता है की आज के दिन गौ पूजा करने से कल्याण होता है। गौ सेवा करने वाले मिठाई विक्रेता भागचंद अग्रवाल बताते है की वे पिछले कई वर्षों से इसी तरह से गौ सेवा कर रहे है। गोवर्धन पूजा के लिए गोबर की आवश्यकता होती है लेकिन धार्मिक मान्यता के चलते आज के दिन कोई भी पशु पालक गोबर नहीं देता है भागचंद अग्रवाल मूल रूप से राजस्थानी है जिन्हे पूजा के लिए गोवर्धनजी बनाने के लिए अधिक मात्रा में गोबर की आवश्यकता होती है आज से कुछ वर्ष पहले गोवर्धन पूजा के लिए उन्हें गोबर नहीं मिला तो उन्होंने संकल्प लिया की वे खुद गाय का पालन करेंगे बस – तब ही से वे गौ सेवा करते चले आ रहे है।
पिछले सात वर्षों से गौ सेवा करने वाले भागचंद अग्रवाल के आँगन में दो गाय और उनकी दो बछिया है सुख -सुविधा का वे पूरा ध्यान रखते है। वे गाय को अपने व्यवसाय का बिजनेस पार्टनर मानते है , इनकी एक गाय प्रतिदिन चौबीस लीटर दूध देती है दूसरी अठाईस लीटर दूध देती है ,दूध बेचकर होने वाली आय का आधा हिस्सा वे गाय की देखरेख पर खर्च करते है गाय का बछड़ा होने पर उसे दान दे देते है। भागचंद अग्रवाल अपनी गाय को कृष्णा श्यामा के नाम से बुलाते है उनकी बछिया के नाम नंदिनी और मंगला है। जो अपने मालिक को देखते ही हुंकार भरने लगती है।
गौ पालक भागचंद अग्रवाल बताते है की जब से उन्होंने गौ पालन किया तब से उन्हें मिठाई बनाने के लिए बाजार से दूध या मावा नहीं खरीदना पढ़ रहा है। अब उन्हें अपनी गाय कृष्णा और श्यामा की बदौलत घर बैठे शुद्ध दूध और मावा मिलने लगा है। गाय पालने से घर में शान्ति रहती है परिवार में कोई भी बीमार नहीं है। गाय का गोबर मिलने पर गोवर्धन पूजा भी हो जाती है और खेत के लिए गोबर का खाद भी मिल जाता है। एक पंथ दो काज दो की तर्ज पर भागचंद अग्रवाल गौसेवा से पुण्य कमाने के साथ लाभ भी कमा रहे है।
आइये जानते है की – क्यों की जाती है ? गोवर्धन पूजा
अन्नकूट या गोवर्धन पूजा , भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई मानी जाती है। ब्रजवासी देवराज इन्द्र की पूजा किया करते थे, क्योंकि देवराज इन्द्र प्रसन्न होने पर वर्षा का आशीर्वाद देते। इससे अन्न पैदा होता। किंतु इस पर भगवान श्री कृष्ण ने ब्रजवासियों को समझाया कि इससे अच्छे तो हमारे पर्वत हैं,जो हमारी गायों को भोजन देते हैं। ब्रज के लोगों ने श्री कृष्ण की बात मानकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी प्रारम्भ कर दी। जब इन्द्र देव ने देखा कि सभी लोग उनकी पूजा करने के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा कर रहे हैं तो उनके अंहकार को ठेस पहुंची। तो इंद्र देवता ने क्रोधित होकर ब्रजभूमि में मूसलाधार बारिश की । अत्यधिक वर्षा से भयभीत ब्रजवासी श्री कृष्ण की शरण में पहुंचे।
श्री कृ्ष्ण से सभी को गोवर्धन पर्वत की शरण में चलने को कहा। जब सब गोवर्धन पर्वत के निकट पहुंचे तो भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन को अपनी कनिष्का अंगुली पर उठा लिया। सभी ब्रजवासी भाग कर गोवर्धन पर्वत की नीचे चले गए। ब्रजवासियों पर एक बूंद भी जल नहीं गिरा। यह चमत्कार देखकर इन्द्रदेव को अपनी गलती का अहसास हुआ और वे श्री कृष्ण से क्षमा मांगी। सात दिन बाद श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत नीचे रखा और ब्रजबासियों को प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा और अन्नकूट पर्व मनाने को कहा। तभी से यह पर्व मनाया जाता है।
इस दिन घर के आंगन में गोवर्धन पर्वत की रचना की जाती है। जिन क्षेत्रों में गाय होती हैं, वहां गायों को प्रात: स्नान करा कर उन्हें कुमकुम अक्षत फूल-मालाओं से सजाया जाता है। गोवर्धन पर्व पर विशेष रूप से गाय-बैलों को सजाने के बाद गोबर का पर्वत बनाकर इसकी पूजा की जाती है। गोबर से बने श्री गोवर्धन पर रुई और करवे की सीके लगाकर पूजा की जाती है। गोबर पर खील बताशे ओर शक्कर के खिलौने चढ़ाये जाते हैं तथा सायंकाल में भगवान को छप्पन भोग चढ़ाया जाता है। ऐसी मान्यता है की गोवर्धन पूजा करने से धन, धान्य, संतान और गोरस की प्राप्ति होती है।
रिपोर्ट – अनंत माहेश्वरी
फोटो –राहुल बौरसिया