इस्लामी माह शाबान की 15 वीं रात को शब-ए-बराअत कहा जाता है। शब का अर्थ रात एवं बराअत का अर्थ बरी होने, छुटकारा पाने है। क्यूंकि इस रात मुसलमान तौबा कर के गुनाहों से छुटकारा पा जाते है। और अल्लाह ताआला की रहमत (दया) से अंगीनत मुसलमान जहन्नम (नरक) से छुटकारा प्राप्त करते है। इस लिये इस रात को शब-ए-बराअत कहा जाता है।
आज कल लोगों की ज़बानों पर शब-ए-बराअत का शब्द आम हो गया है। उर्दू जुबान में दुल्हे के साथ जाने वाले काफले (यात्रादल) को बरात कहा जाता है। यह शब बरात नहीं बराअत है। जिसका अर्थ निजात प्राप्त करना छुटकारा पाना है। क्यूंकि इस रात में रहमते खुदा (खुदा की दया) मनु-ुनवजयय की ओर मुतावज्जे (प्रवृन्त) होती है। इस लिये इस रात को लैलातुल बराअत या शबे बराअत भी कहा जाता है।
शाबान माह की 15 वीं रात अर्थात शब-ए-बराअत की अहमीयत व फज़ीलत अहले इस्लाम के नज़दीक मुसल्लम (स्वीकृत) है। पैगम्बर-ए-इस्लाम ने फरमाया कि इस रात जो मोमीन दो राकत नमाज़ अदा करें उसे अल्लाह ताआला बनी कल्ब की बकरीयों के बालों के समान सवाब (पूण्य) अता फरमायेंगा। और आगे फरमाया अल्लाह ताआला शाबान की 15 वीं रात में तजल्ली फरमाता है। अस्तगफार (तोबा) करने वालों को बख्श देता है। और रहमत के तलबगार पर रहम (दया) फरमाता है। मगर शराबी, रिस्ता तोड़ने वाले और माता पिता को दुख (खेद) पहुंचाने वालों को इस रात माफ (क्षमा) नहीं किया जाता है।
इस शुभ रात में कब्रसतान जाना और वहा मुसलमान मरहुमीन के लिये दुआएं करना भी सुन्नत है। इस रात में जिस कदर हो सके कुरआने पाक की तिलावत की जाए एवं दुरूद शरीफ का विरद करें एवं अस्तगफार तोबा में मशगुल (व्यस्थ) रहे। कब्रों की ज़ियारत (दर्शन) को जाना सुन्नत है। पैगम्बर-ए-इस्लाम ने कब्रों की ज़ियारत का हुकम (आदेष) भी दिया है। इस रात में औलयाएं इकराम, अन्य मुसलमान मरहुमीन की कब्रों की ज़ियारत (दर्षन) के उद्देष्य हेतु रात ही में जाते है।
कई लोग गाड़ीयों मोटर साईकील पर सवार (यात्रा) करते है। एवं मोटर साईकल चलाते समय इतनी तेज़ गती से चलाते है कि अन्य समय बड़ी-ंउचयबड़ी दुर्घटनाएं हो जाती है एवं गाड़ीयों को मोटर साईकलों के हॉर्न इस कदर तेज़ बजाते है जिससे घरों और मस्जिदों में इबादत एवं ज़िक्र करने वालों, हमारे देश बन्धुओं को भी कई समस्यों का सामना करना पड़ता है। इस तरह की कई खुराफात (प्रलाप) इस शुभ रात में होने लगी है। जिसका इस्लाम या मुसलमान से कोई ताआलुक (संबंध) नहीं है। हमारा धर्म अमन व -शांति का धर्म है। किसी को अज़ियत व तकलीफ देना हमारा हरगिज़ मकसद नहीं होना चाहिये।
तनवीर रज़ा बरकाती
(डायरेक्टर बरकाती मिशन बुरहानपुर)
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