लखनऊ: भाजपा सरकार ने अपने लोक कल्याण संकल्प पत्र में शिक्षामित्रों की रोजगार की समस्या को तीन महीने में न्यायोचित तरीके से सुलझाने का आष्वासन दिया था जिसे अब भाजपा सरकार को पूरा करना चाहिए। समायोजन रदद करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से शिक्षामित्रों पर एकाएक आर्थिक नुकसान आ गया है जिसमें 1 लाख 32 हजार शिक्षामित्रों के परिवार प्रभावित होंगे ऐसे में सरकार को अपने घोषणा पत्र को याद करना चाहिए और शिक्षामित्रों को मिल रहे वेतन के बराबर वेतन तथा समान पद के अनुरूप समायोजित करने की घोषणा करनी चाहिए क्योंकि शिक्षामित्रों के मिल रहे वेतन के अनुसार ही उनका परिवार अपना गुजर बसर कर रहा था और अचानक इतनी न्यूनतम आय हो जाने पर उनके ऊपर गहरी आर्थिक चोट आयी है।
राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अनिल दुबे ने प्रदेश के शिक्षामित्रों के प्रति सहानुभूति प्रकट करते हुये कहा कि उच्चतम न्यायालय ने त्रिपुरा सरकार ने दरियादिली दिखाते हुये शिक्षामित्रों को गैर शैक्षणिक पदों पर समायोजित करने का फैसला लिया है उसी तर्ज पर उ0प्र0 सरकार को चाहिए कि शिक्षामित्रों के समान पद और समान वेतन के आधार पर रिक्त पड़े पदों पर शीघ्र ही समायोजन की घोषणा करें क्योंकि इतने लम्बे समय से प्राथिमिक विद्यालयों में अध्यापन का कार्य कर रहे शिक्षामित्रों को काफी अनुभव हो चुका है। ऐसे में सरकार को नैतिक जिम्मेंदारी निभाते हुये शिक्षामित्रों की समस्या के लिए कोई न कोई विकल्प अवश्य तलाशना चाहिए।
श्री दुबे ने सरकार से मांग करते हुये कहा कि लाखों परिवारों के ऊपर पड़ने वाले आर्थिक बोझ से निपटने के लिए षिक्षामित्रों को जुलाई माह के वेतन का भुगतान भी वर्तमान में मिल रहे वेतन के समान ही देेना सुनिष्चित करें साथ ही उनके समायोजन की प्रक्रिया भी यथाषीघ्र ही लागू करे जिससे उन पर पड़ने वाले आर्थिक बोझ से मजबूती के साथ निपटा जा सके।
@शाश्वत तिवारी