सामना में लिखा गया कि अगर सरकार में थोड़ी भी इंसानियत होती तो कृषि कानून को तात्कालिक रूप से स्थगित करवाती और किसानों की जान से खेलने वाले इस खेल को रोकती। शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में सोमवार को हुई बैठक के बारे में भी लिखा है।
महाराष्ट्र सरकार ने एक बार फिर मोदी सरकार पर निशाना साधा है। शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में एक लेख के जरिए किसान आंदोलन को लेकर मोदी सरकार पर सवाल खड़े किए हैं।
सामना में शिवसेना ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि सरकार किसान से चर्चा करने का नाटक कर रही है।
सामना में लिखे लेख में बताया गया है कि किसान और सरकार के बीच आठ दौर की वार्ता हो चुकी है लेकिन अभी तक कोई नतीजा क्यों नहीं निकला है। इसका मतलब यह है कि सरकार को इसमें कोई रस नहीं है। सरकार की यही राजनीति है कि किसान आंदोलन यूं ही चलता रहे।
शिवसेना ने सामना में लिखा कि दिल्ली में कड़ाके की ठंड पड़ रही है और ऊपर से तीन दिनों से मूसलाधार बारिश हो रही है। किसानों के तंबुओं में पानी घुस गया और उनके कपड़े और बिस्तर भी भीग गए हैं। इसके बाद भी किसान पीछे हटने का नाम नहीं ले रहे हैं।
सामना में लिखा गया कि कृषि कानून को रद्द करवाना ही किसानों की मांग है और इस आंदोलन की वजह से दिल्ली सीमा पर 50 किसानों की मौत हो गई है।
सामना में लिखा गया कि अगर सरकार में थोड़ी भी इंसानियत होती तो कृषि कानून को तात्कालिक रूप से स्थगित करवाती और किसानों की जान से खेलने वाले इस खेल को रोकती। शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में सोमवार को हुई बैठक के बारे में भी लिखा है।
सामना ने लिखा कि कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और राज्यमंत्री सोमपाल शास्त्री के साथ किसानों की बैठक हुई। इस बैठक में 40 किसान नेता उपस्थित थे लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। किसान नेताओं ने विज्ञान भवन की सीढ़ियों पर खड़े होकर कहा कि ये क्या तमाशा लगा रखा है, सरकार हमसे बैठक-बैठक खेल रही है, इसका क्या फायदा होगा?
सामना में लिखा कि एक तरफ सरकार किसानों से चर्चा करने का नाटक करती है। किसानों को डर है कि नए कृषि कानून से उनके व्यवसाय कॉरपोरेट कंपनियों के हाथ में चले जाएंगे। नए कृषि कानून के तहत किसानों को फंसाया जा रहा है। पंजाब और हरियाणा के रिलायंस जियो कंपनी के टावर्स को किसानों ने तोड़-फोड़ डाला। इसके बाद रिलायंस कंपनी की ओर से तर्क आता है कि उन्हें खेती-बाड़ी में कोई रस नहीं है।
सामना में लिखा गया कि प्रधानमंत्री को आंदोलन में दखल देना चाहिए। किसानों का कहना है कि कानून वापस लिए बिना हम घर वापस नहीं लौटेंगे। किसानों का कहना है कि उन्हें कानूनों में बदलाव नहीं चाहिए, बल्कि कानून वापस लेंगे तब ही आंदोलन समाप्त किया जाएगा।