कृषि के साथ-साथ पशुधन पालन, डेयरी, मत्स्य पालन गतिविधियाँ सभ्यता के प्रारंभ से मानव जीवन का एक अभिन्न अंग हैं. इन गतिविधियों से खाद्य व्यवस्था में सुधार हुआ और पशुधन को सहेजने में मदद जलवायु और स्थलाकृति के कारण पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन क्षेत्र ने भारत की उन्नति में एक प्रमुख सामाजिक-आर्थिक भूमिका निभाई है. भारत का पशुधन और मत्स्य पालन क्षेत्र काफी विस्तृत है.
कुल मिलाकर लगभग 32% लोग पशुधन, मछली पकड़ने और जलीय कृषि पर जीवन व्यापन करते हैं. कृषि जीडीपी और राष्ट्रीय जीडीपी का 5% है. पशुधन और मछली उत्पाद कुल मिलाकर 7 लाख करोड़ रुपये से अधिक का योगदान कृषि उत्पादन मूल्य में करते हैं. पशुधन और मत्स्य पालन क्षेत्र की औसत वार्षिक वृद्धि दर एक साथ 6 है. कृषि उत्पादन के मूल्य में फसलों की हिस्सेदारी घट रही है, लेकिन पशुधन और मछली उत्पादों में से एक तेजी से ऊपर की ओर है.
( हरियाणा जैसे छोटे राज्य द्वारा पशु क्रेडिट कार्ड योजना इस क्षेत्र को आर्थिक तौर पर मजबूत बनाते है. फिर भी कुछ अन्य कदम इस क्षेत्र में किसानों को अपनी तरफ आकर्षित कर सकते है. यह लाखों लोगों को विशेष रूप से ग्रामीण लोगों को स्वरोजगार प्रदान करता है. इसने महिलाओं के सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है समाज में उनकी आय और भूमिका को बढ़ाया है.)
पशुधन और मत्स्य पालन के क्षेत्र में उद्यमशीलता का विकास ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए परिवर्तक साबित हुआ है और भी हो सकता है. पशुधन ने छोटे खेत परिवारों की आय में 16% का योगदान दिया है. पशुधन ग्रामीण समुदाय के दो-तिहाई लोगों को आजीविका प्रदान करता है। यह भी भारत में लगभग 8.8% जनसंख्या को रोजगार प्रदान करता है.यह लाखों लोगों को विशेष रूप से ग्रामीण लोगों को स्वरोजगार प्रदान करता है. इसने महिलाओं के सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है समाज में उनकी आय और भूमिका को बढ़ाया है.
यह छोटे और सीमांत किसानों के लिए विशेष रूप से भारत के वर्षा आधारित क्षेत्रों में वरदान बना है. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के केंद्र में आजीविका के दृष्टिकोण से ये क्षेत्र ब्रह्मास्त्र बन सकता है.
एक खाद्य और कृषि संगठन के अध्ययन से पता चला है कि एक रुपये का पशुधन क्षेत्र में निवेश से चार रुपये का लाभ हो सकता है. यह कृषि के कई अन्य क्षेत्रों की तुलना में तेज़ होगा और भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिए मुख्य क्षेत्र के रूप में योगदान देगा. पशुधन उत्पादकता को सात स्रोतों में से एक के रूप में पहचाना गया है. सरकार के तहत अंतर-मंत्रालयी समिति द्वारा आय में वृद्धि और वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य इसी से पूरा होने की सम्भावना है.
किसान धान, गेहूं की खेती के साथ-साथ पशु और मछली पालन कर अपना आमदनी बढ़ा सकते हैं. सरकार ने इसके लिए कई योजनाएं चला रखी हैं. इन योजनाओं में काफी अनुदान भी मिल रहा है. ऐसा कर वे अपनी माली हालत को मजबूत कर सकते हैं. पशुपालन स्टार्टअप ग्रैंड चैलेंज, डेयरी का विस्तार करने के लिए गांवों से आने वाले नवाचारों की सराहना करना, राष्ट्रीय पशुधन मिशन, पशुधन में मात्रात्मक और गुणात्मक सुधार सुनिश्चित करना,सभी हितधारकों की उत्पादन प्रणाली और क्षमता निर्माण, नीली क्रांति पर केंद्रीय क्षेत्र योजना, एकीकृत विकास और मात्स्यिकी प्रबंधन (सीएसएस) एवं हरियाणा जैसे छोटे राज्य द्वारा पशु क्रेडिट कार्ड योजना इस क्षेत्र को आर्थिक तौर पर मजबूत बनाते है.
फिर भी कुछ अन्य कदम इस क्षेत्र में किसानों को अपनी तरफ आकर्षित कर सकते है. अंतर्देशीय मछली उत्पादन को बढ़ाने के लिए एकीकृत दृष्टिकोण की योजनाएं और बड़े पैमाने पर संस्कृति आधारित कैप्चर मत्स्य पालन और पिंजरे संस्कृति को अपनाना जलाशयों और बड़े जल निकायों को ऊपर ले जाना, समुद्री मत्स्य संसाधनों का सतत दोहन विशेष रूप से गहरे समुद्र में समुद्री खेती के माध्यम से समुद्री मछली उत्पादन के संसाधन और वृद्धि, स्थायी पशुधन पालन के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करना, प्रौद्योगिकियों में सुधार करके पशुधन उत्पादों का व्यवसायीकरण बढ़ाना,बढ़ती बाजार कनेक्टिविटी, प्रसंस्करण और भंडारण केंद्र, प्रशिक्षण आदि इसे और मजबूत और सुरक्षित बना सकते है.
एक तरह युवा नौकरी की तलाश में बड़े-बड़े शहरों में धक्के खा रहे हैं, वहीं शहर की भागदौड़ से दूर मछली पालन एवं पशु डेरी से आज बहुत से युवा अच्छा मुनाफा कमा ले रहे हैं. भारत भूगोलिक रूप से मछली पालन के लिए उत्तम देश है. यहां लगभग हर राज्य में मछलियों को पाला जाता है और पशुओं को रखा जाता हैं. लेकिन अभी भी इस क्षेत्र में नए प्रयोगों की भरपूर संभावनाएं है.अगर युवा कोई बिजनेस शुरू करना चाहते हैं, तो मछलियों को पालने एवं पशु डेरी का काम शुरू कर सकते हैं.
इस काम को करने के लिए प्रधानमंत्री मुद्रा योजना से लोन भी मिल रहा है.गरीबी उन्मूलन के लिए पशुधन और मत्स्य पालन क्षेत्र केवल एक वाहन नहीं होना चाहिए. बल्कि, उसे आजीविका हासिल करने के लिए एक मंच के रूप में उभरना चाहिए. मवेशियों, सूअरों या मुर्गी-पालकों को देखने से शायद ग्लैमरस न लगे लेकिन अच्छा पैसा कमाना निश्चित रूप से एक आकर्षक प्रस्ताव है. कृषि और ग्रामीण के लिए नेशनल बैंक के साथ राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र एवं डेयरी सहकारी समितियों की निधि संघ की स्थापना करके इसे एक राष्ट्रीय रूप से आगे बढ़ाया जाये तो ये अवश्य ही भारत की आर्थिक तस्वीर को बदला देगा.
✍ –प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर, कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
उब्बा भवन, शाहपुर रोड, सामने कुम्हार धर्मशाला,
आर्य नगर, हिसार (हरियाणा)-125003