शिव की महिमा बड़ी ही निराली है, धरती पर जहां शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में स्यवं विराजित हैं, तो वहीं ब्रह्मांड में वह देवों की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। यही कारण है कि उन्हें देवों के देव महादेव के नाम से संबोधित किया जाता है।
पुराणों में वर्णित शिव का ‘वृषभ अवतार’ तीनों लोकों की रक्षा के लिए ही लिया था। शिवमहापुराण के अनुसार समुद्रमंथन के समय कई वस्तुएं प्रकट हुईं। इसमें अमृत भी निकला। अमृत पीने के लिए देवताओं और दानवों के बीच भयंकर युद्ध हो गया।
तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप लिया और छल से देवताओं को अमृत और दानवों को जल पिलाया। यह एक मायाजाल था, जिसे विष्णु जी ने मोहिनी रूप लेकर रचा था। जब दानवों को यह बात पता चली कि उन्होंने जो पिया है वो अमृत नहीं है तब उन्होंने देवताओं से प्रतिशोध लेने की ठानी।
और दानवों ने पुनः देवताओं पर आक्रमण कर दिया। लेकिन इस बार भी दानवों की हार हुई और अपने प्राणों की रक्षा के लिए वह पाताल लोक चले गए। दानवों का पीछा करते हुए भगवान विष्णु पाताल लोक पहुंचे। सभी दानवों का विनाश कर दिया।
पाताल लोक में दानवों द्वारा कैद अप्सराएं भी रहती थीं। वह शिव भक्त थीं। उन्होंने भगवान शिव से विष्णु को उनका स्वामी बन जाने का वरदान मांगा था। जब स्वयं विष्णु पाताल लोक पहुंचे तो उनका वरदान पूरा हुआ। इस दौरान भगवान विष्णु कुछ समय के लिए पाताल लोक में रहे।
उसके बाद उन अप्सराओं को पुत्र प्राप्ति हुई। लेकिन यह पुत्र विष्णु जी की तरह न होकर क्रूर थे। जब ये बड़े हुए तो इन्होंने तीनों लोक की शांति को भंग कर दी। सभी विष्णु पुत्रों के अत्याचारों से परेशान थे। तब देवताओं ने तीनों लोकों की रक्षा के लिए भगवान शिव के पास पहुंचे।
तभी भोलनाथ ने वृषभ अवतार लिया और पाताल लोक जाकर विष्णु जी के पुत्रों को मार दिया। यह बात जब विष्णु जी को पता चली कि एक वृषभ ने उनके पुत्रों को मार दिया है तो विष्णु जी ने वृषभ से युद्ध किया लेकिन उनकी हार हुई।
यह शिव की लीला थी। विष्णु जी को मालूम नहीं था कि शिव वृषभ अवतार में ही मौजूद हैं। जब यह बात विष्णु जी को उन्होंने क्षमा याचना की और अंत में भगवान शिव ने विष्णु को अपने लोक ‘विष्णुलोक या वैकुंठ’ वापस चले गए।
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