नई दिल्ली – इंदिरा गांधी के प्राइवेट सेक्रेटरी रहे आर के धवन ने कहा है कि सोनिया और राजीव गांधी के मन में इमर्जेंसी को लेकर किसी तरह का संदेह या पछतावा नहीं था। और तो और, मेनका गांधी को इमर्जेंसी से जुड़ी सारी बातें पता थीं और वह हर कदम पर पति संजय गांधी के साथ थीं। वह मासूम या अनजान होने का दावा नहीं कर सकतीं।
इंडिया टुडे न्यूज चैनल को दिए गए इंटरव्यू में 77 वर्षीय धवन का यह खुलासा गांधी परिवार की दोनों बहुओं, सोनिया और मेनका, के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। खासतौर से मेनका के लिए, क्योंकि वह अब बीजेपी के साथ हैं, और बीजेपी हमेशा ही इमर्जेंसी के विरोध में रही है। बीजेपी के कई नेता भी आपातकाल के दौरान जेल गए थे।
धवन ने यह भी कहा कि इंदिरा गांधी जबरन नसबंदी और तुर्कमान गेट पर बुलडोजर चलवाने जैसी इमर्जेंसी की ज्यादतियों से अनजान थीं। इन सबके लिए केवल संजय ही जिम्मेदार थे। इंदिरा को तो यह भी नहीं पता था कि संजय अपने मारुति प्रॉजेक्ट के लिए जमीन का अधिग्रहण कर रहे थे। धवन के मुताबिक इस प्रॉजेक्ट में उन्होंने ही संजय की मदद की थी, और इसमें कुछ भी गलत नहीं था।
धवन ने वॉशिंगटन पोस्ट की उस स्टोरी का खंडन भी किया है, जिसके मुताबिक संजय ने इंदिरा को डिनर पर 6 बार थप्पड़ मारा था। उन्होंने कहा कि संजय तो इंदिरा की काफी इज्जत करते थे। हालांकि, धवन ने बताया कि संजय को कुछ मुख्यमंत्री और नौकरशाह अपने इशारों पर चलाते थे और यह कहकर उन्हें उनकी मां की तुलना में अधिक शक्तिशाली होने का अहसास कराते थे कि वह ज्यादा भीड़ खींचते हैं। यह बात संजय के मन में घर कर गई थी।
धवन ने बताया कि पश्चिम बंगाल के तत्कालीन सीएम एसएस राय ने जनवरी 1975 में ही इंदिरा गांधी को आपातकाल लगाने की सलाह दी थी। इमर्जेंसी की योजना तो काफी पहले से ही बन गई थी। धवन ने बताया कि तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को आपातकाल लागू करने के लिए उद्घोषणा पर हस्ताक्षर करने में कोई आपत्ति नहीं थी। वह तो इसके लिए तुरंत तैयार हो गए थे। धवन ने यह भी बताया कि किस तरह आपातकाल के दौरान मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाकर उन्हें निर्देश दिया गया था कि आरएसएस के उन सदस्यों और विपक्ष के नेताओं की लिस्ट तैयार कर ली जाए, जिन्हें अरेस्ट किया जाना है। इसी तरह की तैयारियां दिल्ली में भी की गई थीं।
धवन ने कहा कि आपातकाल इंदिरा के राजनीतिक करियर को बचाने के लिए नहीं लागू किया गया था, बल्कि वह तो खुद ही इस्तीफा देने को तैयार थीं। जब इंदिरा ने जून 1975 में अपना चुनाव रद्द किए जाने का इलाहाबाद उच्च न्यायालय का आदेश सुना था तो उनकी पहली प्रतिक्रिया इस्तीफे की थी और उन्होंने अपना त्यागपत्र लिखवाया था। उन्होंने कहा कि वह त्यागपत्र टाइप किया गया लेकिन उस पर हस्ताक्षर कभी नहीं किए गए। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगी उनसे मिलने आए और सबने जोर दिया कि उन्हें इस्तीफा नहीं देना चाहिए।
धवन ने कहा कि इंदिरा ने 1977 के चुनाव इसलिए करवाए थे, क्योंकि आईबी ने उनको बताया था कि वह 340 सीटें जीतेंगी। उनके प्रधान सचिव पीएन धर ने उन्हें यह रिपोर्ट दी थी, जिस पर उन्होंने भरोसा कर लिया था। लेकिन, उन चुनावों में मिली करारी हार के बावजूद भी वह दुखी नहीं थीं। धवन ने कहा, ‘इंदिरा रात का भोजन कर रही थीं तभी मैंने उन्हें बताया कि वह हार गई हैं। उनके चेहरे पर राहत का भाव था। उनके चेहरे पर कोई दुख या शिकन नहीं थी। उन्होंने कहा था भगवान का शुक्र है, मेरे पास अपने लिए समय होगा।’ धवन ने दावा किया कि इतिहास इंदिरा के साथ न्याय नहीं कर रहा है और नेता अपने स्वार्थ के चलते उन्हें बदनाम करते हैं। वह राष्ट्रवादी थीं और अपने देश के लोगों से उन्हें बहुत प्यार था।