कांग्रेस संकट में है, यह सबको पता है लेकिन हल क्या है? तरह-तरह के हल सुझाए जा रहे हैं। पहला तो यही कि कांग्रेस को ज़रा आक्रामक-मुद्रा धारण करनी चाहिए, क्योंकि वह मुख्य विपक्षी दल है। यहां एक मोटा तथ्य यह है कि भारत पर लंबे समय तक राज करने वाली पार्टी यही है।
जिसको राज करने की आदत पड़ जाए, वह खांडा खड़काना भूल जाता है। फिर भी इंदिरा गांधी ने मोरारजी-चरणसिंह सरकार की नाक में दम कर रखा था। वे तीन साल में फिर लौट आईं लेकिन अभी कांग्रेस का जो नेतृत्व है, क्या उसमें इतना दम है कि वह मोदी सरकार के कान खड़े कर सके? सरकार को हिलाना तो दूर की बात है, वह बात-बात में खुद को मसखरा बना लेते है।
आप नेता हैं और आप न हिंदी ढंग से बोल सकते हैं न अंग्रेजी! आप भले हैं, भोले हैं लेकिन देश को आज भौंदू नेता की जरुरत नहीं है। मोदी से भाषणों और नौटंकी में जो टक्कर ले सके, आज कांग्रेस को ऐसा नेता की जरुरत है। कांग्रेस में ऐसे नेता आज एक दर्जन से भी ज्यादा हैं लेकिन उनकी हैसियत क्या है? सिर्फ दरबारी की! उनकी रग-रग में दरबारदारी और खुशामद दौड़ रही है। वे कह रहे हैं कि जिसके चलते दुनिया की यह महान पार्टी बर्बाद हो रही है, उसी के हाथ में सारी लगाम दे दीजिए।
दूसरा हल यह सुझाया जा रहा है कि प्रांतीय नेतृत्व को मजबूत किया जाए लेकिन क्या किसी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में क्षेत्रीय क्षत्रपों को इतनी ताकत दी जा सकती है? यदि दी जाती तो अरुणाचल, असम, उत्तराखंड, प. बंगाल और त्रिपुरा में जो हुआ है, क्या वह होता? पार्टी को अपनी बपौती समझने वाले नेता अपने बाप और नानी की उम्र के नेताओं को भी उचित सम्मान नहीं देते।
तो फिर हल क्या है? इस पार्टी में बगावत तो हो नहीं सकती। मां-बेटे को निकाल फेंके, इतनी हिम्मत किसी की नहीं है। हां, यह हो सकता है कि सोनिया और राहुल कांग्रेस के संरक्षक बन जाएं और पार्टी-अधिकारियों की नियुक्तियां बकायदा चुनाव द्वारा हो। कांग्रेस पार्टी अब बंद गोभी बन गई है।
इसे गुलाब की तरह खिलने दें। दोनों मां-बेटों के लिए यह चुनौती है कि वे खुद को ज्यादा प्यार करते हैं या कांग्रेस पार्टी को? यदि वे कांग्रेस के साथ-साथ भारत को प्यार करते हैं और लोकतंत्र को प्यार करते हैं तो इसके अलावा मुझे कोई चारा दिखाई नहीं पड़ता। भारतीय लोकतंत्र के लिए यह जरुरी है कि एक अखिल भारतीय पार्टी स्वस्थ विपक्ष की तरह दनदनाती रहे।
लेखक:- @वेद प्रताप वैदिक