लखनऊ : समाजवादी पार्टी और साइकिल पर अखिलेश का कब्जा हो गया है। चुनाव आयोग ने अखिलेश को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष माना है। इसी के साथ साइकिल चुनाव चिह्न भी अखिलेश यादव का हो गया है। समाजवादी पार्टी दो खेमों में बंट चुकी है। सिंबल पर दोनों दल अपना-अपना दावा पेश कर रहे थे। साथ ही दोनों दल मानकर चल रहे थे कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में साइकिल ही जीत की चाभी है। आयोग का फैसला आते ही सपा समर्थकों में खुशी का माहौल है।
पिछले पांच सालों में समाजवादी पार्टी में साइकिल को लेकर बहुत कुछ घटा है। सपा सरकार के कार्यकाल में अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव ने जमकर साइकिल की ब्रांडिंग की थी। साइकिल को पर्यावरण के अनुकूल बताते हुए कई बार मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खुद साइकिल चलाते दिखे हैं। उन्होंने पूरे प्रदेश में तकरीबन तीन हजार किलोमीटर का लंबा ट्रैक बनवाया है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले पांच सालों में लाखों साइकिलें बांटी हैं। समाजवादी पार्टी की इस पूरी कवायद का मतलब साफ था कि जनता को चुनाव निशान साइकिल याद रहे। जाहिर है कि अखिलेश खेमे को साइकिल चुनाव चिह्न मिल गया है जो उसके लिए यह किसी कामयाबी से कम नहीं है।
जाहिर है कि अखिलेश या मुलायम जिस भी खेमे को साइकिल चुनाव चिह्न मिलेगा उसके लिए यह किसी कामयाबी से कम नहीं होगा। ऐसे में दोनों गुट चाहते हैं कि साइकिल चुनाव चिह्न उनके खेमे को ही मिले। फिलहाल साइकिल चुनाव चिह्न किसका होगा इस पर फैसला चुनाव आयोग करेगा। माना जा रहा है कि सोमवार को चुनाव आयोग साइकिल चुनाव चिह्न पर फैसला दे सकता है।
इससे पहले दोनों खेमों को चुनाव आयोग के फैसले का इंतजार था। संभावना यह भी थी कि चुनाव आयोग साइकिल सिंबल को फ्रीज कर सकता है या फिर दोनों पार्टियों को राष्ट्रीय पार्टियों का राज्य पार्टी का दर्जा दिया जा सकता था। दोनों दल ऐसी ही दूसरी संभावनाओं पर विचार-विमर्श भी कर रहे थे। हालांकि, अखिलेश गुट पहले ही साफ कर चुका था कि अगर उन्हें साइकिल नहीं मिली तो मोटरसाइकिल को अनपा चुनाव चिह्न बना सकते हैं। इसके अलावा बरगद चुनाव चिह्न पर अखिलेश खेमे के लड़ने की बात चल रही है।