इस देश में अवैध होर्डिंग गिरने से किसी बेगुनाह की जान चली जाए और नेता उस पर भी घटिया राजनीति करें, इसे आप क्या कहेंगे? तमिलनाडु में इन दिनो यही हो रहा है। पिछले माह वहां राजधानी चेन्नई में प्रदेश के मुख्यनमंत्री ई. पलानीसामी और अम्मा जे.जयललिता का अवैध होर्डिंग गिरने से एक युवा महिला इंजीनियर की मौत हो गई। इस मामले में गंभीरतापूर्वक कार्रवाई करने के बजाए सत्तारूढ़ एआईएडीएमके के नेता सी. पोन्नइयन ने ‘नेक’ सुझाव दिया कि इस प्रकरण में दोषी होर्डिंग लगाने वाले को नहीं, उस ‘हवा’ को जिम्मेदार मानना चाहिए, जिसके जोर से चलने पर वह होर्डिंग गिरा। इसी क्षुब्धकारक हादसे में मद्रास हाईकोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की थी कि राज्य सरकार को सड़कों को रंगने के लिए आखिर कितना खून चाहिए? यह बात अलग है कि इसी अदालत ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिन पिंग की आगामी चेन्नई यात्रा के दौरान 30 से ज्यादा स्वागत बैनर- होर्डिंग्स लगाने की मंजूरी दे दी है।
नेताओं के विशाल कट-आउट, बड़े भारी होर्डिंग्स और बैनर आदि तमिलनाडु ( बल्कि पूरे दक्षिण भारत की ही) राजनीति का अहम हिस्सा रहे हैं। ऐसा नेताओं की लोकप्रियता जताने, सियासी शक्ति प्रदर्शन और चापलूसी के नए मानदंड कायम करने मकसद से किया जाता है। जो होर्डिंग्स लगते हैं, वो ज्यादातर अवैध और बिना पूर्व अनुमति के होते हैं। और मामला सत्ताधारी दल का हो तो फिर नियम-कायदों की जगह ताक पर ही होती है। पिछले माह चेन्नई में आईटी कंपनी में काम करने वाली इंजीनियर शुभाश्री रवि (23) की ऐसे ही हादसे में मौत हो गई थी। उसके ऊपर पलानीसामी और जयललिता का अवैध होर्डिंग गिर गया था।
होर्डिंग गिरने से युवती का संतुलन बिगड़ा और वह बाइक से गिर पड़ी। तभी पीछे से आ रहा एक तेज गति टैंकर युवती को रौंदता हुआ निकल गया। हालांकि युवती हेलमेट लगाए थी। इस मामले में अन्नाद्रमुक सदस्य जयगोपाल के खिलाफ केस दर्ज किया गया था। हादसे के तीन हफ्ते बाद ही उसकी गिरफ्तारी हो सकी थी। इसी तरह चेन्नई में दो साल पूर्व हुए एक हादसे में एक 30 वर्षीय सॉफ्ट वेयर इंजीनियर युवती की मौत हो गई थी। उसकी मोटरसाइकिल एक लकड़ी के अस्थायी होर्डिंग से जा टकराई थी। ये होर्डिंग अन्नाडीएमके के संस्थापक एमजी रामचंद्रन की जन्म शती के अवसर पर लगाया गया था।
हैरानी की बात यह है कि ताजा होर्डिंग हादसे पर भी राज्य में सियासत हो रही है। विपक्षी डीएमके पार्टी के नेता एम.के. स्टालिन ने इस हादसे के लिए सत्तासीन एआईएडीएमके को जिम्मेदार ठहराया। उधर यह मामला मद्रास हाईकोर्ट में गया तो कोर्ट ने इसको लेकर राज्य सरकार पर बेहद तल्ख टिप्पणी की। कोर्ट ने सवाल किया कि राज्य सरकार को सड़कों को रंगने के लिए कितने लीटर खून चाहिए? इस देश में नौकरशाहों के दयनीय रवैये के कारण जीवन के प्रति सम्मान शून्य है। हम इस सरकार में विश्वास खो चुके हैं। क्या अब मुख्यमंत्री इस प्रकार के अनाधिकृत बैनरों को लेकर कोई बयान जारी करने के इच्छुक हैं।
होर्डिंग हादसे और शहर में नेताओं के अवैध होर्डिंग्स के बारे में जब एआईएडीएमके नेता सी. पोन्नइयन से सवाल किया गया तो पहले उन्होंने विरोधी नेता स्टालिन पर पलटवार किया कि इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में जाने दीजिए। न्यायाधीशों को फैसला करने दीजिए। जजों को भी पता चले कि डीएमके के दिवंगत नेता के.करुणानिधि के समय से ही अनगिनत बैनर लगाए जाते रहे हैं। क्योंकि बैनर भी संवाद का एक माध्यम होते हैं। जब पोन्नइयन से यह पूछा गया कि होर्डिंग हादसे में मौत मामले में जिस व्यक्ति ने होर्डिंग लगाया था, क्या उस पर केस नहीं होना चाहिए? इस पर पोन्नइयन का ठेठ जवाब था कि इस मामले में अगर किसी के खिलाफ केस होना चाहिए तो वह “हवा’ है।
इस बयान पर टिप्पणी करते हुए तमिलनाडु की राजनीति में अपनी जमीन तलाश रहे नेता अभिनेता कमल हासन ने पोन्नइयन को ‘अधकचरा राजनेता’ बताया। वैसे राज्य में होर्डिंग से मौत के मामले में राजनीति के पीछे एक कारण यह भी है कि वहां विक्रावंडी विधानसभा क्षेत्र में 21 अक्टूबर को उपचुनाव होने हैं। इसी के लिए चुनाव प्रचार करते हुए डीएमके सांसद कनिमोझी ने होर्डिंग हादसे को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से जोड़ दिया। उन्होंने सवाल किया कि पीएम की यात्रा में स्वागत-बैनर लगाने की सत्तारूढ़ एआईएडीएमके को क्या गरज थी? लगता है तमिलनाडु की सरकार भी मानो मोदी ही चला रहे हैं।
दरअसल इन सियासी आरोप-प्रत्यारोपों की आड़ में राज्य में भारी संख्याआ में अवैध होर्डिंग, उनसे होने वाली मौतों और इसको लेकर नेताओं के हास्यास्पद बयानों पर उठते सवालों की गंभीरता कम करने की कोशिश की जा रही है। पहला तो यह होर्डिंग की सियासी प्रतिस्पर्द्धा को जायज ठहराने की कोशिश कि आप भी तो पहले यही कर रहे थे। दूसरे, जिस हाईकोर्ट ने अवैध होर्डिंग के लिए राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी, उसी ने दो राष्ट्राध्यक्षों के स्वागत में होर्डिंग्स को अनुमति किस तर्क के आधार पर दी? क्योंकि इसमें कितने होर्डिंग वैध होंगें और कितने अवैध, यह कैसे पता चलेगा? पोन्नइयन द्वारा होर्डिंग बैनर को ‘संवाद’ का प्रभावी माध्यम बताना ठीक है, लेकिन यह संवाद विवाद का कारण बने तो इसे कैसे सही मानें? नेता और जनता के बीच संवाद नेताओं के कामों, संवेदनशील कार्य शैली और जनता की नब्ज को सही ढंग से पकड़ने से होता है न कि बड़े भारी निर्जीव होर्डिंग-बैनर लगाने से। इस पर भी मूर्खता की पराकाष्ठा पोन्नइयन का वह बयान है कि होर्डिंग गिरने के लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो वो है ‘हवा।‘ मतलब ये कि शहर में होर्डिंग इत्या दि लगे हों, नेतादिक पधार रहे हों तो हवा को भी देख-भाल कर ही चलना चाहिए।
नेताओं को रिझाने के लिए लगे होर्डिंग-बैनर इत्या दि को बचाकर चलना चाहिए, ताकि वो किसी पर न गिरें और गिरें तो कोई मरे ना। सरकार को ऐसे होर्डिंग हादसों में किसी को गिरफ्तार करना ही है तो वह ‘हवा’ को गिरफ्तार करे, जननायकों की हवा खराब करने के। दरसअल पोन्नइयन का यह बयान उतना ही बेवकूफाना है जितना कि किसी कारखाने में लगी भीषण आग के कारणों की जांच के निष्कर्ष में अंतत: बिजली के तार को ही जिम्मेदार माना जाए। पोन्नइयन का बयान हमारे नेताओं की उस समझ और दायित्व भाव की कलई खोलने वाला भी है, जिसमें अपने राजनीतिक स्वार्थों और अपने आकाओं की चापलूसी के लिए कुछ भी करना जायज और वक्त का तकाजा है। ‘हवा’ को गिरफ्तार करने जैसी सलाह देने के बजाए नेता अपने ‘दिमागी पंक्चर’ को जरा ठीक करें तो बेहतर होगा।
अजय बोकिल
लेखक भोपाल से प्रकशित दैनिक ‘सुबह सवेरे’ में वरिष्ठ संपादक है
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