Success Story: उत्कर्ष के ऑनलाइन स्टूडेंट ने पेश की मिसाल, जूस का ठेला लगाते हुए बना शारीरिक शिक्षक

जोधपुर की ओसियां तहसील के बिरलोका गाँव के रहने वाले भवानी सिंह ने गाँव की ही सरकारी स्कूल से प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त कर जोधपुर से उच्च शिक्षा हासिल की। एक बेहद साधारण पारिवारिक पृष्ठभूमि से नाता रखने वाले भवानी सिंह ने 2013 में स्नातक करने के साथ ही आत्मनिर्भर रहते हुए आमदनी के लिए अशोक उद्यान के सामने फलों का जूस बेचना शुरू कर दिया था लेकिन आगे पढ़ाई जारी रखते हुए बीपीएड व योगा में डिप्लोमा भी हासिल किया और साथ ही बाकी बचे समय में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी जारी रखी। इसी दौरान उन्होंने कई प्रतियोगी परीक्षाओं का सामना किया लेकिन असफल रहे। फिर भी हार नहीं मानी और लक्ष्य के लिए प्रयासरत् रहे।
लॉकडाउन के बाद से ही उत्कर्ष एप जैसे ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म बहुत से विद्यार्थियों के लिए वरदान साबित हुआ है”- भवानी सिंह
परिस्थितिवश भवानी सिंह प्रतियोगी परीक्षा की ऑफलाइन तैयारी करने में असमर्थ थे तो पीटीआई के लिए उन्होंने उत्कर्ष एप से ऑनलाइन तैयारी की ताकि उनका जूस बेचने का कार्य भी चलता रहे। लेकिन इसके लिए उन्होंने अपनी नींद और आराम से जरूर समझौता किया। ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म से तैयारी करने के विषय पर अपने विचार साझा करते हुए उन्होंने कहा कि समय और परिस्थिति के चलते उनका ऑफ़लाइन तैयारी करना संभव नहीं था ऐसे में उत्कर्ष एप वरदान की तरह साबित हुआ।
योग दिवस पर डॉ. निर्मल गहलोत की शाबाशी ने होंसले को दी नई मजबूती
गत 21 जून को योग दिवस के अवसर पर उत्कर्ष के संस्थापक डॉ. निर्मल गहलोत जूस पीने के दौरान भवानी सिंह की मेहनत और उनकी अपने लक्ष्य को पाने की लगन देखकर उन्हें शाबाशी दिए बिना न रह सकें और अपनी ऑनलाइन पोस्ट द्वारा अन्य विद्यार्थियों को भवानी सिंह से प्रेरणा लेने के लिए प्रेरित किया। इस वाकिए के दौरान मिले प्रोत्साहन ने भवानी सिंह में एक नवीन ऊर्जा का संचार कर दिया था।
”असफलताओं के दर्दनाक पहलू में सफलता का सुकून अवश्य छुपा होता है”- डॉ. निर्मल गहलोत
उत्कर्ष एप के माध्यम से प्रतियोगी परीक्षाओं की ऑनलाइन तैयारी करने वाले भवानी सिंह की संघर्षमयी सफलता से प्रभावित होकर उत्कर्ष क्लासेस के संस्थापक व निदेशक डॉ. निर्मल गहलोत ने बताया कि भवानी सिंह की सफलता प्रत्येक विद्यार्थी के लिए एक प्रेरणादायी सीख है। असफलताओं से भरा मंजिल तक पहुँचने का सफर अक्सर होंसला तोड़ देता है जिसकी वजह से अधिकांश विद्यार्थी कुछ ही प्रयासों में असफल रहने के बाद अपनी किस्मत को कोसते हुए प्रतियोगिता की रेस से बाहर हो जाते हैं, जबकि भवानी सिंह जैसे विद्यार्थी परिस्थितियों से हार मानने की जगह उसका समाधान खोज लेते हैं और नए सिरे से पुन: अपनी तैयारी में जुट जाते हैं। यहीं वजह है कि आत्मनिर्भर भवानी सिंह ने करीब 20 विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में असफल रहने के बाद भी अपनी हिम्मत और उत्साह को बनाए रखा जिसका सुकून भरा सुखद परिणाम आज सबके सामने हैं।