मोदी सरकार द्वारा 25 मई को गोवंश बैन पर दिए गए आदेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस भेज दिया है। केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने आदेश जारी करते हुए गाय, भैंस को काटने के लिए खरीदने पर रोक लगा दी थी।
हैदराबाद के वकील फाहिम कुरैशी द्वारा दायर की गई याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस आर के अग्रवाल और जस्टिस दीपक गुप्ता की अवकाशकालीन बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी। फाहिम ने अपनी याचिका में कहा है कि सरकार का उक्त आदेश संविधान के अनुरुप नहीं है, क्योंकि यह जानवरों की खरीद फरोख्त करने वाले व्यापारियों से उनके कमाने का जरिया छीनने जैसा है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि इससे सबसे ज्यादा असर उन गरीब किसानों पर पड़ेगा, जो अपने बीमार पशुओं को काटने के लिए बेच देते थे। इसके साथ ही देश की मीट इंडस्ट्री पर भी इसका असर देखने को मिलेगा, जो कि इस वक्त 1 लाख करोड़ रुपये का सालाना कारोबार करता है।
याचिका में सरकार पर यह आरोप भी लगाया गया है कि वो पिछले दरवाजे से बीजेपी के हिंदुत्व के एजेंडे को भी आगे लेकर के आ रही है।
सरकार के आदेश पर देश भर में विरोध
2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार के बाद से इस बात पर बहस काफी बढ़ गई है। विवाद तब और बढ़ गया जब केंद्र के पर्यावरण मंत्रालय ने पशु कटान पर नया नोटिफिकेशन जारी कर दिया। जिसमें स्लाटर हाउस में गाय भैंस सहित कई पशुओं पर बैन और पशु मंडियों में कटान के लिए पशुओं की बिक्री पर रोक की बात कही गई थी।
इस नोटिफिकेशन के बाद देशभर में बवाल मच गया। कई संगठनों के साथ राजनीतिक दलों ने भी सरकार के इस कदम की आलोचना करते हुए खुलकर मोर्चा खोल दिया।
केरल में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने बीच सड़क गोवंश काटकर विरोध जताया तो चेन्नई आईआईटी में छात्रों ने बीफ पार्टी मनाई। हालांकि इस बीच सरकार की सफाई भी सामने आ गई, जिसमें साफ किया गया कि वह स्लॉटर हाउस पर प्रतिबंध लगाने नहीं जा रही है।
हालांकि इस सारे विवाद के बीच बड़ा सवाल ये है कि क्या सरकार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के उस अघोषित एजेंडे पर काम कर रही है जिसमें बीफ बैन के साथ पशु कटान पर प्रतिबंध की वकालत की गई है।