लखनऊ- सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति को प्रमोशन में आरक्षण देना सरकार का संवैधानिक दायित्व नहीं है। उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग के अधिकारियों की पदावनति पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने से इनकार करते हुए अपने आदेश में फेरबदल करने से मना कर दिया।
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि जिन अधिकारियों को प्रमोशन में आरक्षण नीति का लाभ मिल चुका है, उन्हें डिमोट न किया जाए। याचिका में कहा गया था कि सरकार को यह निर्देश दिया जाए कि वह कमेटी बनाकर नौकरी पेशा एससी एवं एसटी लोगों का डाटा इकट्ठा करें और प्रमोशन में आरक्षण दें।
कमेटी सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के पूर्व जज की अध्यक्षता में गठित की जाए। लेकिन पीठ ने इसे मानने से इनकार कर दिया। पीठ ने कहा कि ऐसा करना विधायिका के काम में दखल है। पीठ ने कहा कि कुछ मामलों जैसे महिलाओं, बच्चों और कैदियों के अधिकारों को लेकर सरकार को दिशानिर्देश बनाने के लिए कहा गया है या अदालत ने खुद बनाए हैं, लेकिन ये सब दूसरी श्रेणी के तहत आते हैं।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने वर्ष 2006 में एम. नागराज मामले में भी कहा था कि प्रमोशन में आरक्षण का लाभ देना सरकारों का अपना फैसला है। आरक्षण देते समय राज्य सरकारों को तीन बातों का ध्यान रखना होगा। अधिकारी की दक्षता, उस वर्ग का प्रतिनिधित्व और पिछड़ापन।