नई दिल्ली : आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों को रोजगार और शिक्षा में 10% आरक्षण पर रोक के लिए दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है।
कोर्ट ने इस व्यवस्था पर फिलहाल रोक लगाने से इनकार कर दिया है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने सरकार को इस मुद्दे में नोटिस जारी किया है।
तत्काल रोक से इनकार करते हुए कहा कि हम मुद्दे पर अपने स्तर पर निरीक्षण करेंगे। कोर्ट इस मामले को लेकर दाखिल याचिकाओं पर चार हफ्तों में सुनवाई करेगा।
सुप्रीम कोर्ट में संविधान संशोधन के जरिए आर्थिक आधार पर 10% आरक्षण पर रोक लगाने के लिए जनहित याचिका दायर की गई थी।
याचिका में तत्काल इस पर रोक लगाने की भी मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब देने का आदेश दिया है।
सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को 10 फीसदी आरक्षण देने के लिए केंद्र सरकार के नए ऐक्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका दायर की गई है।
तहसीन पूनावाला की ओर से अर्जी दाखिल कर कहा गया है कि यह संविधान की मौलिक भावना के साथ छेड़छाड़ है। अब केंद्र सरकार को 4 सप्ताह में इस मामले में अपना पक्ष अदालत के सामने रखना है।
याचिकाकर्ता का कहना है कि आरक्षण के लिए अधिकतम सीमा 50 फीसदी तय की गई है जिसका उल्लंघन किया गया है। इस मामले में पहले ही एक अन्य एनजीओ की ओर से डॉक्टर कौशल कांत मिश्रा ने भी अर्जी दाखिल की हुई है।
पूनावाला की ओर से इस मामले में भारत सरकार और अन्य को प्रतिवादी बनाया है। अर्जी में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद-16 में सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर रिजर्वेशन देने की बात है।
केंद्र सरकार ने संविधान में संशोधन कर उसमें आर्थिक आधार भी जोड़ा है जबकि आर्थिक आधार पर रिजर्वेशन का प्रावधान संविधान में नहीं है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी जजमेंट में व्यवस्था दे रखी है कि 50 फीसदी से ज्यादा रिजर्वेशन नहीं दिया जा सकता और मौजूदा ऐक्ट के तहत दिया गया रिजर्वेशन अतिरिक्त 10 फीसदी है।
इसे लागू करने के साथ ही 50 फीसदी की सीमा को पार किया गया है। याचिकाकर्ता की दलील है कि सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक बेंच के फैसले के उलट यह ऐक्ट पास किया गया है। इस मामले में संविधान संशोधन ऐक्ट को रद्द करने की गुहार लगाई गई है ।