नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने केरल के सबरीमाला मंदिर में दस से पचास साल की महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक से जुड़ी याचिका पर सुनवाई के दौरान अहम टिप्पणी की।
इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन ने मंदिर में महिलाओं की एंट्री बैन करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। जिसकी सुनवाई पांच जजों की संविधान पीठ जिसमें चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और इंदू मल्होत्रा कर रहे हैं।
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने मंदिर प्रबंध समिति पर नाराजगी जताते हुए पूछा कि, “किस आधार पर मंदिर प्रबंधन ने महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगाई थी। ये संविधान के खिलाफ है। एक बार मंदिर लोगों के लिए खोल दिया जाता है तो फिर उसमें कोई भी जा सकता है।”
वहीं जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सबरीमाला मंदिर में प्रवेश के मुद्दे पर चल रही सुनवाई के दौरान टिप्पणी कि,” एक पुरुष की तरह महिला को भी इस मंदिर में प्रवेश का अधिकार है और इसे करने के लिए किसी कानून पर निर्भर रहने की कोई जरूरत नहीं है।”
क्या है मामला
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। खासकर 15 साल से ऊपर की लड़कियां और महिलाएं इस मंदिर में नहीं जा सकती हैं। यहां सिर्फ छोटी बच्चियां और बूढ़ी महिलाएं ही प्रवेश कर सकती हैं। इसके पीछे मान्यता है कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी थे।
इस मामले में केरल सरकार ने भी अपना रुख साफ किया है, केरल के मंत्री के सुरेंद्रन ने कहा कि, “राज्य सरकार का इस मामले पर रुख बिल्कुल साफ है कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश दिया जाना चाहिए। हमने इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक शपथ-पत्र भी दाखिल किया है। अब फैसला सुप्रीम कोर्ट को लेना है और हम उसे मानने के लिए बाध्य हैं। वहीं मंदिर प्रबंध समिति की भी यही राय है।”
पिछले साल 13 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की खंडपीठ ने अनुच्छेद-14 में दिए गए समानता के अधिकार, अनुच्छेद-15 में धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव रोकने, अनुच्छेद-17 में छुआछूत को समाप्त करने जैसे सवालों सहित चार मुद्दों पर पूरे मामले की सुनवाई पांच जजों की संविधान पीठ के हवाले कर दी थी।
सबरीमाला मंदिर में हर साल नवम्बर से जनवरी तक, श्रद्धालु अयप्पा भगवान के दर्शन के लिए जाते हैं, बाकि पूरे साल यह मंदिर आम भक्तों के लिए बंद रहता है। भगवान अयप्पा के भक्तों के लिए मकर संक्रांति का दिन बहुत खास होता है, इसीलिए उस दिन यहां सबसे ज़्यादा भक्त पहुंचते हैं।
यह मंदिर केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किलोमीटर दूर पहाड़ियों पर स्थित है। यह मंदिर चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है। यहां आने वाले श्रद्धालु सिर पर पोटली रखकर पहुंचते हैं। वह पोटली नैवेद्य (भगवान को चढ़ाई जानी वाली चीज़ें, जिन्हें प्रसाद के तौर पर पुजारी घर ले जाने को देते हैं) से भरी होती है। यहां मान्यता है कि तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनकर, व्रत रखकर और सिर पर नैवेद्य रखकर जो भी व्यक्ति आता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।