न्यायालय ने कहा कि राज्यपाल ऐसा विधानसभा के सत्र के दौरान भी आदेश दे सकते हैं और फ्लोर टेस्ट करने के लिए सरकार को बाध्य कर सकते हैं। बीजेपी और कांग्रेस के बागी विधायकों की ओर से उस दौरान की गई शक्ति परीक्षण की मांग सही थी और राज्यपाल ने शक्ति परीक्षण के लिए सही निर्देश दिए थे।
मध्य प्रदेश में तकरीबन एक महीने पहले सरकार बनाने के लिए चले सियासी घमासान और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचे मामले में सोमवार को न्यायालय का अहम फैसला आया।
मामले की सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि कांग्रेस नीत मध्य प्रदेश की सरकार बहुमत खो चुकी थी, ऐसे में राज्यपाल की ओर से फ्लोर टेस्ट करवाने के आदेश को गलत नहीं कहा जा सकता।
शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्यपाल का वह कदम (फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश देना) बिल्कुल ठीक था। राज्यपाल पर इसको लेकर कोई मामला नहीं बनता है। इसके साथ ही शीर्ष कोर्ट ने मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की ओर से दायर याचिका को खारिज कर दिया।
इस याचिका में कहा गया था कि राज्यपाल ज्यादा से ज्यादा विधानसभा के सत्र को बुला सकते हैं, लेकिन वह फ्लोर टेस्ट का आदेश नहीं दे सकते हैं।
बता दें कि कमलनाथ सरकार के अल्पमत में आने के बाद राज्यपाल लालजी टंडन ने फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के साथ यह भी स्पष्ट हो गया कि राज्यपाल भी फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दे सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान कहा कि राज्यपाल को फ्लोर टेस्ट जैसी मांग करने का पूरा हक है और वे ये कभी भी करवा सकते हैं।
इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि राज्यपाल ऐसा विधानसभा के सत्र के दौरान भी आदेश दे सकते हैं और फ्लोर टेस्ट करने के लिए सरकार को बाध्य कर सकते हैं। बीजेपी और कांग्रेस के बागी विधायकों की ओर से उस दौरान की गई शक्ति परीक्षण की मांग सही थी और राज्यपाल ने शक्ति परीक्षण के लिए सही निर्देश दिए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में 68 पेज के फैसले में अब अदालत ने स्थितियों को और साफ कर दिया है।
कोर्ट के अनुसार, इस फैसले में संविधान में दिए गए राज्यपाल के अधिकारों और उनकी शक्तियों का पूरा उल्लेख किया गया है।
कांग्रेस के विधायकों के बागी हो जाने और बाद में पार्टी से इस्तीफ देने के बाद बीजेपी ने राज्यपाल से फ्लोर टेस्ट की मांग की थी। इसके बाद राज्यपाल ने तत्कालीन कमलनाथ सरकार को शक्ति परीक्षण करवाने को कहा था।
लेकिन, कमलनाथ ने इसका विरोध किया था और राज्यपाल के फ्लोर टेस्ट के आदेश के खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।
इस पूरे घटनाक्रम के बीच ही कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद बीजेपी की सरकार बनी थी और शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी।
अब सोमवार को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का कोई सीधा असर तो मध्य प्रदेश में नहीं होगा क्योंकि अब वहां पर कांग्रेस की सरकार नहीं है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला देकर राज्यपाल के अधिकारों को पूरी तरह से साफ कर दिया है।