नई दिल्ली : शीर्ष अदालत ने जम्मू कश्मीर में एक आतंकी हमले के दौरान भागने वाले बर्खास्त सैनिक की याचिका ठुकरा दी है।
2006 में हुए हमले के दौरान सैनिक डटकर मुकाबला करने की जगह वहां से भाग गया था। शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता की उस दलील को भी खारिज कर दिया जिसमें उसने कहा था कि पहले उसने ऐसे कई अभियानों में बहादुरी के साथ शौर्य दिखाया था।
शीर्ष अदालत ने कहा कि एक सैनिक पर देश की सुरक्षा का दायित्व होता है। वह केवल पूर्व में दिखाई बहादुरी के भरोसे नहीं रह सकता।
बर्खास्त सैनिक की याचिका को ठुकराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, ‘एक सैनिक पूर्व में दिखाए अपनी बहादुरी के आधार पर नहीं रह सकता।
देश की अखंडता को बचाने के लिए प्रत्येक परिस्थिति में सैनिक से डटकर खड़े रहने की उम्मीद जताई जाती है क्योंकि सैनिक पर देश यही विश्वास रखता है।
न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की बेंच ने यह फैसला सुनाया। याचिकाकर्ता सैनिक को आतंकी हमले के दौरान जंग से भागने के लिए कोर्ट मॉर्शल के तहत सजा सुनाई गई थी। उसे बर्खास्त करने के साथ 6 वर्ष की सश्रम कारावास की भी सजा दी गई थी।
जवान ने सशस्त्र बल ट्राइब्यूनल,चंडीगढ़ के 2011 के निलंबन के निर्णय को एसजीसीएम में चुनौती दी थी।
2006 में जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों से एनकाउंटर में डटकर सामना करने की जगह पर जवान ने कायरता दिखाई थी। आतंकियों के साथ हुए इस एनकाउंटर में जवान का एक साथी शहीद हो गया था।
बर्खास्त जवान को अपने हथियार एके-47 और पिस्तौल का उपयोग नहीं करने का भी दोषी पाया गया था। जवान द्वारा तत्परता नहीं दिखाने की वजह से आतंकियों ने चेकपोस्ट पर कब्जा कर लिया और लाइट मशीनगन भी हथिया ली।