नई दिल्ली- “तीन तलाक़” के मामले में सुप्रीम कोर्ट और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के खींचतान के बीच उच्चतम न्यायालय ने आज केंद्र से उस समिति की रिपोर्ट दाखिल करने को कहा जिसका गठन मुस्लिमों सहित विभिन्न धार्मिक अल्पसंख्यकों के विवाह, तलाक और संरक्षण से संबंधित पर्सनल लॉ के विभिन्न पहलुओं पर विचार करने के लिए किया गया था !
इस मामले में प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी एस ठाकुर और न्यायमूर्ति यू यू ललित की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से अदालत में छह सप्ताह के अंदर रिपोर्ट सौंपने को कहा ! पीठ ने अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय से शायरा बानो नामक महिला द्वारा दायर याचिका पर जवाब भी मांगा है !
ज्ञात हो कि शायरा बानो ने मुसलमानों में प्रचलित बहुविवाह, एक साथ तीन बार तलाक कहने (तलाक ए बिदत) और निकाह हलाला के चलन की संवैधानिकता को चुनौती दी है ! मुसलमानों में प्रचलित तलाक प्रथा में पति एक तुहर (दो मासिकधर्मों के बीच की अवधि) में, या सहवास के दौरान तुहर में, या फिर एकसाथ तीन बार तलाक कह कर पत्नी को तलाक दे सकता है !
इस माह के शुरू में उच्चतम न्यायालय ने शायरा बानो की अपील पर केंद्र से जवाब मांगा था ! शायरा बानो ने मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन कानून 1937 की धारा 2 की संवैधानिकता को चुनौती दी है ! शायरा बानो के अनुसार उसके पति तथा ससुराल वालों ने उससे दहेज मांगा, उसके साथ क्रूरता की तथा उसे नशीली दवाएं दीं जिससे उसकी याददाश्त कमजोर होने लगी, वह बेहोश रहने लगी और गंभीर रुप से बीमार हो गयी !
इस बीच कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने ट्वीटर के ज़रिए ऑल इंडिया मुस्लिम लॉ बोर्ड से ये सवाल पूछ कर विवाद को तूल दे दिया है कि क्या “मुस्लिम पर्सनल लॉ” यानि “शरियत” संविधान से ऊपर है…? बोर्ड पहले ही कह चुका है कि सुप्रीम कोर्ट को “मुस्लिम पर्सनल लॉ” की समीक्षा का अधिकार नहीं है क्योंकि ये “क़ुरआन” की रोशनी में बना “अल्लाह” का क़ानून है ! यही राय जमीयत उलमा-ए-हिंद की भी है ! वो इस मालमे में सुप्रीम कोर्ट में बाक़ायदा पक्षकार हो गया है ! जमीयत 1986 में शाह बानो केस में भी पक्षकार था !